ख्वाबों का सफर
ख्वाबों का सफर
सिर पर कली चुनरी और हाथ में एक छोटा सा बैग लिए अस्मा अपने वजूद की तलाश में अनजाने रास्तों पर सहमे क़दमों से आगे तो बड़ रही थी पर उसके ज़हन वोह शादी वाला घर,अम्मी अब्बू चेहरा और वह बारात ही टेहरी हुई थी जिसे छोर कर वो खुद की तलाश में बहुत दूर आ चुकी थी पर जितनी बार उसकी नजर उन मेहंदी लगे हाथों पर पड़ती उसकी रूह कांप सी जाती तो वो टूट कर बिखर सी जाती पर अपने बिखरे हुए ख्वाबों को फिर से सजोने की चाह उसमे कुछ हिम्मत लती और वो फिर उन्ही रास्तों पर चलने लगती।
चलते चलते कब रात बीत गई पता ही नहीं चला उसकी आंख जब सूर्य की पहली किरण के साथ खुलती है तो वह खुद को एक कमरे में बेड पर लेटा हुआ पति है।
कमरा बहुत आलीशान तो नहीं था पर खुशहाल सा था असमा घबराते हुए बेड से उठती है और खड़ी होती है तभी अचानक एक कप कपता हुए हाथ एक धीमी सी आवाज़। के साथ कोई उसके कंधे पर रखता है बेटा तुम बिल्कुल सुरक्षित हो घबराने की जरूरत नहीं है असमा फौरन पीछे मुड़ जाती है तो देखती है कि एक मुस्कुराता हुआ चेहरा आंखों में बहुत मुहब्बत के साथ उसे देख रहा होता है चेहरे पर झुर्रियां ज़रूर थी पर फिर भी असमा को वो दुनिया सबसे खूबसूरत चेहरा लगा और लगता भी क्यों ना हूबहू उसकी दुनिया यानी उसकी माँ की तरहा जो था।
और असमा बिना कुछ सोचे समझे उस औरत के गले लग के खूब रोई।