Aisha Hasan

Others

2.0  

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ख़्वाबों का सफर

ख़्वाबों का सफर

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सिर पर काली चुनरी हाथ में एक बैग और आँखों में हजार ख्वाबों को लिए असमा अपने वजूद की तलाश में उन अनजाने रास्तों पर आगे तो बड़ रही थी पर उसके ज़हन में वही शादी वाला घर, अम्मी अब्बू का चेहरा , और वो बारात ठहरी हुई थी जिसे छोड़ कर वो अपने ख़्वाबों की तलाश में बहुत दूर आ चुकी थी पर उसकी नज़र जितनी बार उन मेंहदी लगे हाथों पर पड़ती उसकी रूह काँप सी जाती और वो एक पल में जैसे बिखर सी जाती पर अपने बिखरे हुए ख़्वाबों को फिर से सजोने की। चाह उसमे हिम्मत देती और वो फिर उन्ही रास्तों पर आगे चलने लगती ।

इसी उलझन में रात कैसे गुज़री पता ही नहीं चला जब सुबह आँख खुली तो खुद को एक पलंग पर पाया असमा ने चारों तरफ आँखें घूमा कर देखा कमरा भी कुछ खास तो नहीं था पर सुकून बहुत था, असमा अचानक से घबराकर पलंग से नीचे उतरी और खड़ी हो गई तभी पीछे से एक मीठी सी आवाज़ के साथ कंप कपाते हुए हाथ किसी ने उसके कंधे पर रखा।

असमा अचानक से पीछे मुड़ी तो देखा एक मुस्कुराता हुए चेहरा मोहब्बत भरी आँखों से उसे देख रहा है भले ही चेहरे पर झोर्रियाँ थी पर असमा को वो दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा लगा और लगता भी क्यों ना हूबहू उसकी माँ की तरह जो था।

बिना कुछ सोचे समझे असमा घंटों तक उस औरत के गले लग के रोई रिश्ता तो कोई नहीं था पर फिर भी पता नहीं क्यों उसे अपनापन लगा।

बस कर मेरी बच्ची कितना रोएगी कहते हुए उस औरत से असमा के आँसू पोंछे और उसे गले लगा कर कहा "बाता तो हुआ क्या तुम कल रात में मुझे बेहोशी की हालत में रोड पर मिली तो मैं तुम को अपने घर ले आयी। मेरी नहीं पर किसी की तो बेटी हो। उठो और लो खाना खा लो और हाँ तुम जितने दिन यहां रहना चाहती हो रह सकती हो क्यों की मैं भी तुम्हारी तरह अकेली ही हूं।"

असमा मुस्कुराते हुए उस औरत को देखती है और कहती है "मैं भाग कर आई हूं पर मैं गलत नहीं हूं बस कुछ ख़्वाब देखे थे जिनको मेरे अपनों ने ही तोड़ा उनको ही समेटते हुए आज यहां पहुंच गई शादी थी मेरी कल पर नहीं की भाग आई मैं क्यों की मुझे किसी और का नाम अपने नाम के आगे जोड़ने से पहले खुद का नाम चाहिए था। मैं सिर्फ इसलिए भागी क्यों की कुछ लोगो को ये दिखाना था कि एक लड़की सिर्फ खाना बनाने के लिए ही नहीं होती देश भी बना सकती है परेशान हो गई थी ये सुनकर की तुम पराए घर की हो मुझे अपना घर बनाना था। बस इसी वजह से मैं भागी। बंदिशे तोड़ी है रिश्ते नहीं" कहते हुए असमा कब सो गई पता ही नहीं चला पर अफसोस उसकी आँख फिर कभी नहीं खुली क्यों की वो अंदर से इतना टूट चुकी थी कि शायद अब जुड़ पाना नामुकिन था।

असमा के सपनों सफर तो अधूरा रह गया पर जाते जाते उसकी आत्मा ने तड़प कर हर उन माँ बाप को ये ज़रूर कहा की "अपनी बेटी को समझो मत तोड़ो उनके सपने वरना रोज़ एक असमा ऐसे ही इस दुनिया से रुखसत हो जाएगी।"



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