खुशियों की दीवाली
खुशियों की दीवाली
बात उन दिनों की है जब मैं अपने पति के साथ यात्रा पर थी, उसी बीच दीवाली का त्यौहार पड़ा मैं अपने बच्चे के लिए बाज़ार से उसकी पसंद की चीज़ें, पटाखे और मिठाई ले आई दीवाली की रात हमने दिए जलाए, पटाखे फोड़े,जमकर मस्ती की।दोपहर हमें निकलना था,मैं होटल की बालकनी से गंगा मैया के दर्शन कर रही थी तभी मेरी नज़र कुछ छोटे, मासूम, गंदे कपड़ो में लिपटे बच्चे पर पड़ी उनके हाथ में कुछ सामान और थैली थी वे सब गली में हर घरों के बाहर कुछ उठाते और अपनी थैली में डाल लेते फिर आगे बढ़ जाते, मुझसे रहा न गया मैं नीचे उतर आई क्योंकि वो सब मेरी तरफ ही बढ़ रहे थे, मैं जैसे उनके स्वागत के लिए गली में खड़ी हो गई।मैंने ऐसे ही पूछ लिया क्या कर रहे हो सब,थोड़ा संकोच के बाद एक ने कहा पटाखे बीन रहा हूँ उसे सुन दूसरे ने कहा अनार, फुलझड़ी, मोमबत्तीऔर दिए भी ।मासूमियत भरे उन जवाबों को मैं अवाक होकर सुनती रही, मैंने कहा क्या करोगे इनका ये सब तो जल चुके है अब ये दोबारा नही जलेंगे।एक छोटी सी बच्ची ने कहा हम इनको इकट्ठा करके रात में दीवाली मनाएंगे फिर वो शर्माते हुए मुस्कुरा दी।ये जवाब सुनकर जैसे मैं सुन्न रह गई इतनी कच्ची उम्र में इतना धैर्य इतनी समझ। शायद परिस्थितियां परिपक्व कर देती हैं। लेकिन दिल को कचोट गई ये बात की जो दीवाली हम मना चुके उन बुझे दियों, अधजली मोमबत्तियों, दगे पटाखों के बारूदऔर मिठाइयों के खाली पड़े डिब्बों से वो एक नई दीवाली मनाने की तैयारी कर रहे थे। उनके चेहरे पर सुकून था लेकिन मैं अंदर से हिल गई थी,मैंने उनसे कहा एक जादू देखोगे सब उछल पड़े,, मैं उन्हें पास ही एक दुकान पर ले गई, उन्हें पटाखे, मोमबत्ती, मिठाई बिस्किट, चॉकलेट दिलाई और कहा आज रात में इन्हें जलाना ये सब जलेंगे, पटाखे भी फूटेंगे, और मिठाई भी खाना, वो खुश हुए इतने खुश की ज़ुबान नही बोली लेकिन उनकी मासूम मुस्कुराहट और आंखे जैसे बहुत कुछ कह गई मुझसे। वापस होटल आकर न जाने क्यों दिल बहुत खुश था, एक सुकून सा, लगा शायद जीवन की सबसे अच्छी दीवाली रही। तब से लेकर आज तक मेरी हर दीवाली ऐसे ही बच्चों के साथ होती है जो मुझे सीखा गए की वास्तव में खुशियों की दिवाली क्या है ?
