खत आया है
खत आया है
मोहन काका जिनकी उम्र ६० साल थी, उम्र के साथ उनके काम करने का जज्बा भी बढ़ता जा रहा था। मोहन काका सफाई विभाग में कर्मचारी थे। वे रोज सुबह ८ बजे सड़कों को साफ करने आ पहुँचते थे। वे रोज सड़क साफ करने में व्यस्त हो जाते थे और कमला आंटी, जो सड़क के बाएँ ओर के अपार्टमेंट में रहती थी, उनका काम रोज सड़क पर कचरा फैंकना था। मोहन काका रोज कमला आंटी को कचरा फैंकते देखते थे फिर भी वे उन्हें कुछ नहीं कहते थे। वहीं सड़क के दाहिने ओर एक चाय की किटली थी, जहाँ हरीलाल नामक डाक खाने का कर्मचारी बैठा यह दृश्य देखता रहता था।
रोज की तरह उस दिन भी सुबह मोहन काका सड़क की सफाई करने में व्यस्त थे और कमला आंटी सड़क पर कचरा फैंकने में व्यस्त थी। उसी समय एक नौजवान जिसका नाम रॉकी है, चाय की किटली से चिप्स का पैकेट खरीद कर खाता है और वहीं सड़क पर कचरा फैंक कर चला जाता है। यह पूरा दृश्य मोहन काका देखते हैं, पर वे उस नौजवान को कुछ नहीं कहते हैं और कचरा उठा लेते हैं।
जब हरीलाल ने यह सब देखा,
तब हरीलाल ने मोहन काका से कहा- "आप सड़क का कचरा साफ करते रह जाओगे और ये लोग गंदगी फैलाते रह जायेंगे।"
मोहन काका ने हरीलाल को प्रतिउत्तर दिया- "अभी मैंने सब्र नहीं खोया है।"
हरीलाल मोहनकाका के इस संदर्भ को समझ नहीं पाया।
कुछ दिनों बाद हरीलाल ,कमला आंटी के घर जाते हैं।
हरीलाल ने कमला आंटी से कहा- "आपके नाम पे खत आया है।"
जब कमला आंटी ने खत हाथ में लिया और देखा तो खत पर भेजने वाले का नाम "भारत" लिखा हुआ थ।
तब कमला आंटी ने कहा- "मैं भारत नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानती।"
इस पर हरीलाल ने कहा- "एक बार आप यह खत पढ़कर तो देखो।"
ऐसा कहकर वे वहाँ से चले जाते हैं। कमला आंटी खत खोलती है, और पढ़ना शुरू करती है। खत में कुछ इस प्रकार लिखा हुआ था-
"सादर प्रणाम,
शायद आप मुझे नहीं पहचानती है, पर मैं आपको बहुत करीब से पहचानता हूँ। कई बार हम मिल चुके हैं। हर एक मुलाकात याद बन चुकी है। याद है वो दिन जब आपकी पड़ोसन इन्दू घर का कचरा सड़क पे फैंकने जा रही थी, तब आपने उसे डाँटा था। आपने उसे समझाया था कि, सड़क पे कचरा फैंकना अच्छी बात नहीं है, इससे बीमारियाँ फैलती है।
याद है ना आपको ये सभी बातें ?"
आपका शुभचिंतक,
भारत"
कुछ दिन के बाद रॉकी के घर पर भी खत आता है, जिसे भारत नाम के व्यक्ति ने भेजा था। रॉकी ने यह खत पढ़ना शुरू किया तो, उस में कुछ इस प्रकार का लिखा हुआ था-
"प्रिय रॉकी,
शायद तुम मुझे पहचानते नहीं हो, पर मैं तुम्हे बहुत अच्छी तरह से पहचानता हूँ। वो रोज का मिलना मेरे जेहन में अभी भी जिंदा है। शायद तुम्हें याद होगा कि, एक दिन जब तुम्हारा दोस्त पिन्टू दुकान से नमकीन का पैकेट खरीद कर खाता है और कचरे को सड़क पर ही फैंक देता है, यह देखकर तुम उस पर गुस्सा करते हो।
उसे गंदगी ना फैलाने की सलाह देते हो। तुम उसे स्वच्छता के फायदे भी समझाते हो, और उसकी अज्ञानता को दूर करते हो जिसका असर कुछ ऐसा होता हैं कि तुम्हारा दोस्त पिन्टू उस कचरे को सड़क पर से उठा के सार्वजनिक कचरे के डिब्बे में डाल आता है।
याद है ना तुम्हें ये सभी बातें ?
तुम्हारा शुभचिंतक,
भारत"
दूसरे दिन मानों चमत्कार ही हो गया। मोहन काका रोज की तरह सड़क साफ करने में लगे हुए थे। उसी समय कमला आंटी घर का सारा कचरा कचरे के डिब्बे में लेकर सड़क के किनारे रखे हुए सार्वजनिक कूड़ेदान में डाल के चली जाती है। यह पूरा नज़ारा हरीलाल चाय की किटली पर बैठा देख रहा था। फिर जब उसने मोहन काका की ओर देखा तो मोहन काका की आँखों में ख़ुशी की चमक दिखाई देती है और दोनों एक दूसरे की ओर देखते रह जाते हैं।