जयंत 'विद्रोही'

Drama

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जयंत 'विद्रोही'

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ख़बर

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‘तुम मुझसे कितना प्यार करते हो’, यह पूछते हुए रीति ने विवेक का हाथ जोड़ से पकड़ लिया। रीति गौर से विवेक की आँखों मे देख रही थी। शायद वो यह जान लेना चाहती थी की विवेक उससे कितना प्यार करता है। विवेक ने अपने चेहरे के शिकन को छुपाते हुए हल्की मुस्कुराहट लिए, रीति को अपनी बाहों में भर लिया। ‘अरे बुद्धू मैं तो तुमसे ही प्यार करता हूँ, मैं तो कभी सपने में भी किसी और के बारे में नहीं सोच सकता’। लेकीन शायद रीति आज ये तसल्ली कर लेना चाहती थी की विवेक उससे कितना प्यार करता है। रीति और जोड़ से विवेक से लिपट गई और फिरसे पूछ बैठी ‘नहीं, तुम बताओ मुझे की कितना प्यार करते हो’। विवेक ने बड़े प्यार से रीति को देखा और उसके माथे को चूमते हुए बोलाअगर तुम्हारे पास आने के लिए मुझे मौत से भी लड़ना पड़े, तो मैं उसको हरा कर तुम्हारे पास आ जाऊँगा इतना बोलना था की रीति ने विवेक के मुंह पर अपना हाथ रख दिया और दोनों एक दूसरे की बाहों में जैसे खो गए।

शाम भी अब ढल चुकी था, सूरज की लालिमा भी लगभग खत्म हो चली थी। हरे घाँस के चमकते हुए टीले अब काले स्याह होने लगे थे। पंछी अपने घोसले की तरफ वापिस लौटने लगे थे। झील के चमकीले रेत भी अब श्याम पड़ने लगे थे। रंग भरी इस दुनियाँ को रात का अंधकार अब खुद में समेट लेना चाहता था। लेकिन रीति और विवेक वहीं झील के किनारे बैठे हुए थे जहां अब पूरी तरह से शाम ढल चुकी थी।


साल भर ही तो हुए थे रीति और विवेक को मिले हुए। दोनों टायपिंग सीखने एक ही जगह जाया करते थे, टायपिंग सीखते-सीखते आँखें चार हो गईं और दोनों दीवानों सा इश्क कर बैठे। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों का दर्द आप तभी समझ सके हैं जब, आपने खुद भी कभी तैयारी की हो। और यदि की है तो आप ये बात भली भांति समझते होंगे की उनके लिए टायपिंग सीखना कितना जरूरी है। रीति और विवेक के प्यार में कम कांटे नहीं थे, जहां रीति सवर्ण थी वहीं विवेक पिछड़ी जाति से था। हमारे यहाँ आप यह जानते ही हैं की, भले प्रभु राम सबरी के जूठे बेर खा लें लेकिन इंसान जाति से ऊपर आज भी नहीं उठ सका। रीति गणित से स्नातक थी वहीं विवेक रसायन विज्ञान से स्नातक था तथा प्रखण्ड में संविदा पर सहायक की नौकरी करता था जिसमें उसकी महीने की तनख्वा पंद्रह हजार आठ सौ रुपये थी। रीति अभी यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर ही रह थी और इधर रीति के पिताजी, सी.सी मिश्रा अपनी बेटी के लिए रिश्ता ढूंढ रहे थे। ‘रीति तो बचपन से ही बहुत मेधावी रही है। कभी अपने जीवन में सेकंड नहीं आई, हमेशा प्रथम आई है। अरे सारे काम में निपुण है और खाना तो बहुत बढ़ियाँ बनाती है। बाँकी झा जी आप तो अपने सब जानबे करते हैं और मिले हैं ही रीति से’। यह सब बात फोन पर मिश्रा जी किसी रिश्ते के संबंध में कर रहे थे। इधर विवेक (SSC CGL) की तैयारी कर रहा था क्योंकि इस संविदा की नौकरी पर तो रीति उसकी कभी हो नहीं सकती और उनकी जाति भी तो अलग है। यह सब सोच-सोच कर विवेक बहुत परेशान रहने लगा। विवेक अपने घर का अकेला लड़का था और घर में सबसे बड़ा था। उससे छोटी उसकी एक बहन ही थी और प्रधान जी यानी विवेक के पिताजी एक सरकारी मुलाजिम थे। वैसे तो प्रधान जी की मोहल्ले में बड़ी चलती थी और जेब से भी प्रधान जी काफी धनी थे। लेकिन विवेक को बस एक बात अंदर से खाए जाती थी की कहीं रीति की शादी किसी और से ना हो जाए। इधर रीति की भी यही समस्या थी की मिश्राजी उसकी शादी कहीं और ना ठीक कर दें। लेकिन एक दिन रीति ने बहुत हिम्मत कर के अपनी माँ से विवेक के बारे मे बता ही दिया और यह बात जंगल की आग की तरह पूरे घर में फैल गई, और मिश्राजी के कानों तक पहुंची। अपनी लाडली बेटी के बारे में जानकर मिश्राजी थोड़े घबरा गए लेकिन फिर दोनों पति-पत्नी लगे अपनी लाडली को मनाने।

‘बेटी वो अपनी बिरादरी का नहीं है, सोचो हमारे रिश्तेदार क्या कहेंगे?’

‘नाक कट जाएगी समाज में हमारी, हम मुंह दिखने के लायक नहीं बचेंगे।‘

‘बेटे तुम जिससे मर्जी अपनी बिरादरी में शादी करो हमें कोई एतराज नहीं लेकिन उस विवेक से तुम्हारी शादी हम कैसे करवा दें?‘

‘बेटे हमारे बारे में तो सोचा होता!‘

यही सब तरह-तरह की बात बोल कर मिश्राजी लगे अपनी बेटी रीति को समझाने लेकिन रीति ने ना तो कोई जवाब ही दिया ना खाना ही खाया। उसने अपने माता-पिता से बस एक बात कही, ‘अगर आप चाहते हैं मैं विवेक से शादी ना करू, तो मैं नहीं करूंगी। मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी जिससे आप लोगों को ठेस पहुंचे लेकिन मैं जीते जी मर जाऊँगी, अपने प्यार का गला घोंट कर। मैं जिंदा लाश बन जाऊँग। करवा लेना जिससे मर्जी हो शादी मेरी, उसके साथ मेरा जिस्म तो रहेगा लेकिन मेरी आत्मा हमेशा मेरे विवेक के साथ रहेगी’। इतना बोलने के बाद वो फुट-फुट कर रोने लगी।

मिश्राजी ने सभी तरह से अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की, सख्ती भी दिखाई लेकिन इसका कोई असर रीति पर नहीं हुआ। उसका प्रेम सच्चा था जिसने उसे इतनी हिम्मत दी की वो सारे मुश्किलों को सह गई और उसके सच्चे प्रेम ने उसके माता-पिता को उसके मोहब्बत के आगे झुकने को मजबूर कर दिया। वैसे ये बात हम सभी जानते हैं की इस दुनिया के सबसे मजबूर लोग आपके माता-पिता ही हैं क्योंकि बच्चों के जिद्द के आगे हर बार उनको हारना पड़ता ही है। अस्तु इधर विवेक परीक्षा के तनाव और रीति कि शादी के तनाव से जूझ रहा था। सुंदर दिखने वाला लड़का बड़ा ही बुझा और मुरझाया हुआ सा रहने लगा। लेकिन जल्द ही घर में सबको पता चल गया की विवेक, रीति नाम की किसी लड़की से शादी करना चाहता है और उससे बहुत प्यार करता है। प्रधान जी भी चिंतित हो उठे, विवेक उनका एकलौता लड़का जो है। प्रधान जी मन में सोच रहे थे, ‘वो लोग ठहरे ब्रह्मण, हम लोगों के यहाँ अपनी बेटी नहीं ब्याहेंगे’ लेकिन तभी उनके फोन की घंटी बजी, फोन पर कोई अज्ञात नंबर था, प्रधान जी ने फोन उठा लिया, उधर से अवाज आई ‘हैलो, मैं सी.सी मिश्रा बोल रहा हूँ। मैं रीति का पापा हूँ’। 


श्यामा मैया के मंदिर प्रांगण में दोनों परिवार मिल रहे थे। विवेक और रीति के परिवार के लोग वहीं मंदिर प्रांगण में ऐसे मिल रहे थे जैसे कब से बिछड़े संबंधी हों। मिश्रजी और प्रधान जी में तो खासी दोस्त भी हो गई। रीति और विवेक पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ कर बातें करने लगे।

‘रीति, मैं कहता था ना तुमसे कि सब ठीक होजाएगा। हमारे माँ-बाप इतने निर्दय नहीं हैं’।

‘विवेक, मुझे तो अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है की हमारे परिवार वाले मिल रहे हैं। सच कहूँ तो मुझे नहीं लगा था मैं तुम्हें दुबारा देख भी पाऊँगी’।

इतना कहते-कहते रीति की आँखों में आँसू आ गए लेकिन विवेक ने आँसू पोंछते हुए कहा, ‘नहीं पगली, मुझे हमारे प्यार पर पूरा भरोसा था की ऐसा कुछ नहीं होगा। तुम बस मेरी हो और मेरी ही रहोगी, हमारे बीच कोई और नहीं आ सकता कभी’। विवेक ने उस दिन वाली बा‘अगर तुम्हारे पास आने के लिए मुझे मौत से भी लड़ना पड़े, तो मैं उसको हरा कर तुम्हारे पास आजाऊँगा’। रीति विवेक के कंधे पर सर रख देती है और दोनों यूँ ही थोड़ि देर तक उस चबूतरे पर बैठे रहते हैं।

दोनों परिवार वाले मिल कर यह तय करते हैं की जब तक विवेक तैयारी कर रहा है उसको आराम से तैयारी करने दिया जाए क्यूंकी इस सहायक की नौकरी से घर नहीं चल सकता इसिलिए पहले विवेक एक अच्छी सी नौकरी कर ले वहीं इधर रीति का स्नातकोत्तर भी तब तक पूरा हो जाएगा। लेकिन तब तक दोनों की सगाई करवा दी जाए। फिर एक दिन शुभ मुहूर्त पर विवेक और रीति की सगाई परिवार के लोगों के बीच छोटे से फ़ंक्शन में हो गई। रीति बहुत खुश थी, उसकी खुशी उसके चहरे पर साफ झलक रही थी। विवेक भी खुश था और शर्मा भी रहा था। दोनों बहुत खुश थे।

विवेक के SSC CGL का परिणाम आ गया, विवेक इंकम टैक्स ऑफिसर बन गया था। 1 साल की ट्रैनिंग और प्रोबेसन पर उसे इंदौर जाना था। स्टेशन पर सब विवेक को छोड़ने आए थे। रीति भी थी लेकिन उसकी आँखें सुनी थी ना जाने उसका क्या खो गया गया था। विवेक उसकी तरफ देख कर बोल उठा, ‘ मैं जल्दी या जाऊंगा बाबु, बस साल भर की ही तो बात है’। लेकिन रिति कुछ बोल नहीं सकी और इधर ट्रेन धीरे धीरे प्लेटफॉर्म को छोड़ने लगी। विवेक ट्रेन से सबको हाथ हिला कर बाय करने लगा। रीति की आंखो से आँसू की बुँदे टपकने लगे।


रीति के घर में बातें हो रही थी इस बार विवेक के आते ही दोनों की शादी करवा देंगे। ‘अब बहुत दिन दोनों को अलग नहीं रखना चाहिए, रीति की भाभी ने आँख मार कर रीति से ये बात कही’। ‘धत्त भाभी आप भी ना’ यह बोलते हुए रीति अपने कमरे मे आ गई। आज रीति बहुत खुश है क्योंकि पूरे एक साल बाद आज विवेक आ रहा है। इंदौर से पटना की फ्लाइट है उसके बाद वह बस पकड़ कर दरभंगा आएगा। फोन पर, इंदौर एयरपोर्ट पर बात हुई थी रीति की विवेक से उसके बाद से उसका फोन नॉट रीचेबल आ रहा है। ‘हो सकता है फ्लाइट मोड में हो’, रीति ने मन में ये सोचा।

रीति के फोन की घंटी बजती है।

‘हेलो बाबू’ रीति ने कहा।

‘हे सोना’ विवेक ने कहा

‘तुम हो कहाँ गायब, तबसे तुम्हारा फोन ट्राइ कर रही थी लेकिन लग नहीं रहा था; मैं कितनी बेचैन हो गई थी। तुम्हें जरा सा भी अंदाजा है इस बात का’ एक ही सांस मे रीति ये सब बोल गई।

‘अरे सॉरी बाबा, मेरा फोन चार्ज नहीं था, अभी-अभी तो बस में आया हूँ। चार्ज कीया है फोन, 2 घंटे में पहुँच जाऊंगा दरभंगा मैं’

‘अरे ये तुम्हारा हमेशा का ड्रामा है, गुस्सा हूँ मैं तुमसे।। स...झते……….क्य..

‘हेलो’ हैलो’ आवाज....कट रही

…………………………………………………………………….

फोन कट जाता है।


‘5 घंटे हो गए हैं अभी तक विवेक आया नहीं, ना ही उसका फोन लग रहा’ यही सब सोचते हुए रीति घबरा उठती है और प्रधान जी के घर फोन लगाती है।

‘हेलो माँ आपकी बात विवेक जी से हुई क्या देखिए ना उनका फोन नहीं लग रहा’

‘नहीं बेटे, हमें तो लग रहा था की तुम्हारी बात हुई होगी विवेक से, तुम परेशान मत हो, उसका फोन डिस्चार्ज हो गया होगा। तूम अपना ख्याल रखो, वो आ जाएगा’।

रीति फोन रख देती है लेकिन उसका मन व्याकुल हो उठता है और उसकी धड़कनें तेज हो जाती हैं। आखिर क्या हुआ होगा? वो कहाँ होंगे? कोई अनहोनी तो नहीं.... ‘नहीं-नहीं उनके साथ ऐसा नहीं हो सकता’। यही सब बातें उसके मन में चल रही थी और ना जाने कैसे-कैसे विचार उसके दिमाग में आ रहे थे।

तभी उसके फोन की घंटी बजती है।

‘हैलो’

हाँ, हैलो मैं दरभंगा मेडिकल अस्पताल से बोल रहा हूँ आप जल्दी से आजाइए’

‘हैलो, आप कौन बोल रहे हैं? क्या बात है? क्या हुआ है? हेलो हेलो’।

लेकिन फोन रख दिया जा चुका था। रीति का दिल बैठ जाता है। उसके एक कदम सौ कदम जीतने भारी हो जाते हैं, उसका गला सुख जाता है। अनहोनी की आशंका उसके दिलों-दिमाग में बैठ जाती हैं।

जैसे तैसे सब अस्पताल पहुंचते हैं। वहाँ पता लगाने पर उन्हें ये पता लगता है की पटना से दरभंगा आ रही बस का बहुत भीषण एक्सीडेंट हुआ है। पता लगाने पर अस्पताल प्रशासन उन्हें शव-गृह(morgue) जाने को कहता है। भारी कदमों से सब वहाँ पहुंचते हैं। रीति भाव-सून्य सी चल रही है। उसके बाल बिखरे हुए हैं। आँखें सून्य सी है। कदम डगमगा रहे हैं और उसके दिमाग में बस विवेक की कही एक ही बात बार-बार कौंध अगर तुम्हारे पास आने के लिए मुझे मौत से भी लड़ना पड़े, तो मैं उसको हरा कर तुम्हारे पास आजाऊँगा’।)

सब लोग शव-गृह पहुंचते हैं। वहाँ एक-एक लाश पर से चादर हटाया जा रहा है। उधर ही कोने में विवेक का मृत शरीर परा हुआ है....लग रहा है जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं। बस सो ही तो रहा है अभी उठ जाएगा। सब की आँखों से आँसू टपकने लगते हैं। प्रधान जी सर पकड़ कर बैठ जाते हैं, विवेक की माँ चीख कर वहीं मूर्छित हो कर गिर जाती हैं। रीति भी कमरे में पहुँच जाती है, विवेक को देखते ही..... उसके मुंह से बहुत जोड़ की चीख निकलती है और उसके आँखों के आगे अंधेरा छा जाता ह। उसके दिमाग में फिर से विवेक की कही वही बात गूँजती‘अगर तुम्हारे पास आने के लिए मुझे मौत से भी लड़ना पड़े, तो मैं उसको हरा कर तुम्हारे पास आजाऊँगा ’ धम्म से आवाज होती है और रीति वहीं गिर जाती है…….




  

 



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