Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

जयंत 'विद्रोही'

Children Stories Drama

3  

जयंत 'विद्रोही'

Children Stories Drama

टेक्स्ट

टेक्स्ट

2 mins
149


आज भी मैंने रोज़ की तरह उठते ही सबसे पहले अपने फोन पर whatsapp खोला और मैसेज देखने लगा लेकिन मेरी नज़रें उसके टेक्स्ट को ही खोज रहीं थी और रोज़ की ही तरह आज भी उसका कोई टेक्स्ट नहीं था।


आज सालों हो गए हैं इस बात को लेकिन मुझे लगता है जैसे कल की ही तो बात थी। स्कूल में उसके पीछे बैठना, सबसे पहले इसीलिए पहुंचना की कहीं कोई उसकी सीट के पीछे ना बैठ जाए। लंच ब्रेक में दोस्तों से कोई बहाना बना कर क्लास में रुक जाना कि उसको चुप-चाप कोने में अपनी टिफ़िन खाते देख सकूं। वो छुप-छुप कर घर तक उसका पीछा करना। उसके देखने भर से घबरा उठना। ओह कितनी ही तो यादें हैं उसकी दिल में सँजोई हुई।


आज भी मुझे वो उसी तरह याद है, उसकी सारी बातें याद है। 15 साल हो गए हैं मुझे स्कूल छोड़े लेकिन उसकी याद मेरा साथ ही नहीं छोड़ती। सालों से मेरा कुछ ऐसा ही है। मैं रोज़ उसके लिए एक टेक्स्ट लिखता हूँ जो उस तक कभी पहुंचती नहीं। मुझमें हिम्मत ही नहीं होती कि भेज सकूं। ना वो कभी करती है और ना मैं भेज ही पाता हूँ। एक कॉल की दूरी पर हैं हम दोनो लेकिन मन की दूरी शायद जन्मों की रह गई। इन्हीं सब बातों में मैं खो गया। तभी मेरा ध्यान सामने लगे दीवाल घड़ी की ओर गया 8 बज का 25 मिनट हो रहे थे। धत्त तेरे की आज फ़िर से ऑफिस के लिए लेट हो जाऊंगा बोलते हुए मैं बाथरूम की तरफ़ भागा पीछे alexa पर सफ़क़त अमानत अली का गाना बज रहा था ' _जब हम ना होंगे तो पिहरवा बोलो क्या तब आओगे, मोरा सईयां मोसे बोले ना, मैं लाख जतन कर हारी'_ ।।




Rate this content
Log in

More hindi story from जयंत 'विद्रोही'