ख़ामोशी में पलती हिम्मत
ख़ामोशी में पलती हिम्मत
कुछ डर दिखाई नहीं देते…
वे चुपचाप इंसान के अंदर घर बना लेते हैं।
यह कहानी है एक लड़की की,
जिसका बचपन अंधेरे में खो गया—
लेकिन जिसने हार मानने से इनकार कर दिया।
Trigger Warning:
Childhood trauma, emotional distress, psychological horror.
Story – Part 1
रात बहुत ज़्यादा शांत थी।
इतनी शांत कि उसकी साँसों की आवाज़
उसे डराने लगी थी।
वह सिर्फ 10 साल की थी।
कमरा अंधेरे से भरा हुआ था।
अचानक उसे लगा—
कोई उसके बहुत क़रीब आ गया है।
एक भारी साया।
उसका शरीर जैसे पत्थर का हो गया।
दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था
कि लगा—
अगर वह हिली,
तो सब कुछ टूट जाएगा।
उस पल
उसे समझ आ गया—
यह कोई खेल नहीं है।
यह कुछ गलत, डरावना और गंदा है।
उसकी साँसें जमने लगीं।
आँखों में पानी भर आया।
लेकिन उसने खुद को रोका।
वह अचानक उठी
और अंधेरे को चीरती हुई
अपनी माँ की तरफ भागी।
उस रात
उसने पहली बार जाना—
डर कैसे इंसान के अंदर रेंगता है।
अगले दिन
माँ ने उस लड़के से सख़्ती से पूछताछ की।
उसे बच्ची के पैर छूकर
माफ़ी माँगनी पड़ी।
सबने कहा—
“अब सब ठीक है।”
लेकिन कुछ भी ठीक नहीं था।
उसके बाद
रातें उसकी दुश्मन बन गईं।
हर साया,
हर आहट,
हर बंद दरवाज़ा—
उसे उसी रात की याद दिलाता।
वह सोती नहीं थी।
बस आँखें बंद कर
जागती रहती थी।
उसका बचपन
उसी अंधेरी रात
दम घुटकर मर गया था।
धीरे-धीरे
उसने खुद को पढ़ाई में छुपा लिया।
किताबें अब उसकी ढाल थीं।
उसी दौरान
घर में एक और डर
चुपचाप पनपने लगा।
उसके भाई को
एक गंभीर बीमारी हो गई।
दवाइयों की गंध,
अस्पताल की ठंडी दीवारें,
और माँ की
दबी हुई सिसकियाँ—
घर को
एक ज़िंदा कब्र में बदल रही थीं।
पिता ने हाल ही में घर बनाया था।
सारी पूँजी लग चुकी थी।
अब सिर्फ डर बचा था।
तीन भाइयों की वह इकलौती बहन,
उम्र से पहले
ज़िम्मेदार बन गई।
जब भाई के ऑपरेशन के लिए
माता-पिता बड़े शहर गए,
तो घर में
एक अजीब सन्नाटा भर गया।
ऑपरेशन सफल हुआ।
लेकिन माँ-पापा की कमी
दीवारों से टकराकर
और भारी हो जाती।
पढ़ाई बिगड़ गई।
जैसे-तैसे क्लास पास हुई।
फिर वह आठवीं में पहुँची।
उस दिन
उसने घर को देखा—
और खुद को भी।
उसने तय किया—
अब डर के साथ जीना नहीं है।
उसने दिन-रात पढ़ाई शुरू की।
थकान,
डर,
सबको पीछे छोड़ दिया।
दसवीं अच्छे अंकों से पास हुई।
ग्यारहवीं में
उसने मैथ्स, फिज़िक्स और केमिस्ट्री ली।
बिना किसी ट्यूशन के।
लोगों ने कहा—
“यह मुश्किल है।”
उसने कुछ नहीं कहा।
बस पढ़ती रही।
और पास हो गई।
अब उसे पता था—
बिना प्रोफेशनल डिग्री
ज़िंदगी और डरावनी होगी।
उसने क्रैश कोर्स किया।
परीक्षा दी।
सेलेक्ट हो गई।
सरकारी कॉलेज में दाख़िला मिला।
उस रात
वह देर तक छत को देखती रही।
डर अभी भी था—
लेकिन अब
उस डर के सामने
वह खड़ी थी।
कॉलेज में
उसने खुद को साबित किया।
मेहनत, अनुशासन, चुप्पी।
वह कॉलेज टॉपर बन गई।
लेकिन ज़िंदगी
फिर अंधेरा लेकर आई।
भाई की तबीयत बिगड़ने लगी।
इंटरनशिप के लिए
उसे पहली बार
घर से बाहर जाना पड़ा।
कॉलेज में एक लड़का था।
वह उसे परेशान करता था।
धीरे-धीरे बातें शुरू हुईं।
फिर
उसके बारे में
गलत बातें फैलने लगीं।
उसने दूरी बना ली।
उसी समय
भाई को खून की ज़रूरत पड़ी।
उसी लड़के ने खून दिया।
लेकिन भाई नहीं बचा।
उस दिन
घर की दीवारें
जैसे और क़रीब आ गईं।
वह बोलती नहीं थी।
बस
हर रात
छत को घूरती रहती थी।
दर्द
उसे अंदर से खाता रहता।
रिज़ल्ट आया—
वह फिर टॉपर थी।
आगे की पढ़ाई के लिए
वह बाहर रहने लगी।
पिता छोड़ने आए।
वह लड़का
फिर हदें पार करने लगा।
इस बार
वह चुप नहीं रही।
शिकायत हुई।
मामला परिवार तक पहुँचा।
बैठक हुई।
मामला सुलझा।
डिग्री पूरी हुई।
और फिर—
उसे बैंक में नौकरी मिल गई।
शादी हुई।
लेकिन शादी के बाद
डर ने नया चेहरा ले लिया।
उसका पति
अपने अतीत को
भूल नहीं पाया था।
यह दर्द
चिल्लाता नहीं था—
बस
धीरे-धीरे
उसकी रूह को
खोखला कर रहा था।
जब उसकी पुरानी प्रेमिका की शादी हुई,
तब जाकर
ज़िंदगी ने थोड़ी साँस लेने दी।
उसने काम सीखा।
खुद को बदला।
और आगे बढ़ी।
लेकिन यह कहानी
यहाँ खत्म नहीं होती।
क्योंकि असली लड़ाई
अब शुरू होने वाली है…
End of Part – 1
Part – 2 | New Year Special
Healing, strength & the ghosts that still return at night…
