जलियांवाला बाग
जलियांवाला बाग
किसको पता था कि 13 अप्रैल 1919 की ये सुबह इतिहास के पन्नो में एक ऐसे सामूहिक बलि के रूप में दर्ज होने वाली है जिसमे सम्मिलित लोगों के नाम भले ही धूमिल हो गए पर अथिति के रूप में उनके पास आये इस नरसंहार के प्रतिफल ने उनकी आने वाली पीढ़ियों को सदियों से परतंत्र एक सभ्यता के स्वतंत्रता का वरदान दे देगा।ये एक ऐसा अवसर था जिसके नायक बहुत सामान्य लोग थे।ये गीत उन्ही सामान्य लोगों को उन भावों को समर्पित है जो वो अपनो को अपने अंतिम समय मे कुछ कहना चाह रहे होंगे कुछ के अपने उनके साथ थे जिनका मुझे नाम तो नही ज्ञात पर संभवतः पद प्रतिष्ठा की कल्पना अवश्य की जा सकती हैै।
बाग की आग में राख वे हो गए..आजादी को एक उर्वरक मिल गया
साथ मिलकर हमेशा को वे सो गए..सुप्त भारत को जागने का हक मिल गया
बाग की आग में....
युवा होने के नाते सर्वप्रथम मुझे उस हॄदय में गोली खाने वाले युवा की वेदना सुनाई दी जो एक पुरूष बनने के अपने संगनी से किये वादे को न निभा पाया...वो वादा क्या था...
माफ करना प्रिये न स्वप्न पूरा हुआ
बाग की आग से धुंध कोहरा हुआ
मांग भरने का तुझसे था वादा किया
आंख भरके ही वादा अधूरा हुआ
बाग की आग में....
एक श्रृंगाररहित माँ जिसके पति को विदेशी सत्ता ने पहले ही राख कर रखा था और समाज उसे हर दिन उसको हर दिन जलाया..गोलियों की तड़तड़ाहट से डरे अपने बच्चे को मौत के मुँह में जाते हुए भी कैसे शब्द-सहारा दे रही थी...
वीर बेटा है तू ऐसे रोता है क्यों
ये पटाखे दीवाली के हैं फूटते
अब न डाटूंगी फिर से कभी मैं तुझे
तू तो हँस दे..हैं मुझसे सभी रूठते।
क्रमशः