जीवन
जीवन
दिन बाद बरात... शायद लड़कियों की जिंदगी इतनी ही छोटी होती है।सब हँसी खुशी गाने बजाने व शादी मनाने को तत्पर हैं शायद माँ बाप भी उसी खुशी का अनुभव करते हों जो बच्चे बचपन में गुड्डे - गुड्डी की शादी रचा कर करते थे। हाँ उसमें और इसमें सिर्फ फर्क इतना है कि खेल खत्म होते ही, सभी अपनी जिम्मेवारी व परेशानी से मुक्त पर इस खेल में ऐसा नही है।यहाँ खेल के बाद ही परेशानियों का नया सिलसिला शुरू हो जाता है.... सपने की तरह शादी की रौनक हटते ही, माया पर भी जिम्मेवारी, संबधो, आदर्षो, परंपपराओ, न जाने किन किन शब्दों की गठरी की बोझ सर पर लाद दिया गया....
बुआ, मामी, मौसी, चाची, ताई, नानी, दादी सभी ने सलाह व सीख की की पोटली के साथ- साथ दो कुलों की लाज की बड़ी जिम्मेवारी को झोले में रख कर ससुराल के रंग ढंग को अपनाने व सभी को खुश रखने का काम सौंपते हुए, अंतिम रस्म विदायी को रोते पीटते पूरा किया। मुझे यह समझ नही आ रहा था, सभी इतना कोहराम क्यों मचा रहे थे।
लड़कियों के साथ रोने का क्या संबध जुड़ा है समझ से परे होता जा रहा था। करीब चार दिन पहले मोहल्ले के शंभु काका को तीसरी पोती हुई तो सभी का मुंह लटका नजर आ रहा था, जब शंभु काकी बहु और पोती संग घर आयी तो बधाई व मिठाई की जगह गालियों और बदुआ के शब्दों के तीर ने बहु को पोती समेत कुँआ तक पहुँचा ही दिया था, वह तो मैं ही था जो उसे रोका और तीनों लड़कियों के भविष्य का हवाला देते हुए... जीवन नामक अपमान के घूंट को एकबार और चखने के लिये शायद उसे रोक लिया.... अररे आप भी सो़च रहें होगे.... मैं कोन हूँ..... तो अगले भाग का इंतजार करे !
