Shikhaa Sharma

Inspirational

4.4  

Shikhaa Sharma

Inspirational

जीवन - संध्या

जीवन - संध्या

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त्योहारों की शुरुआत हो गई है। उमा आस-पास के लोगों के यहाँ चहल-पहल रौनक देख कर बहुत खुश हो जाती है। सबके यहाँ रौनक देख कर वो घर के अंदर आती है तो बिस्तर पर चुपचाप पड़े उस निढाल से शांत - शरीर को देखती है जो न जाने किन लोगों के इंतजार में हैं। धीरे से लम्बी साँस छोड़ और अचानक से पुराने दिनों की यादों में खो जाती है। उसे अपना पुराना समय याद आता है। भीड़ से भरा घर सास-ससुर और हर किसी की फरमाइश पूरी करती वो खुद अपने -आपको बहुत खुश किस्मत समझती थी। उसने सोचा भी नहीं था कि जिंदगी की शाम उसे यूँ अकेलेपन में बितानी होगी।


क्या-क्या नहीं किया था उसने अपने परिवार को बनाने के लिए अपने और अपने पति से जुड़े हर रिश्ते को संजो कर रखा था। वह सबकी चहेती बहु थी।सुबह ठाकुर जी के स्नान के साथ जो उसकी सास की हिदायत शुरू होती ‘’उमा जरा जल्दी से अपने पिताजी के लिए गरम हलवा बना और देख छोटा तैयार हुआ कि नहीं उसे भी फटाफट नाश्ता खिला।एक बोली चार काम मांगती हूँ मैं समझी’’। वही गुसलखाने ससुरजी की आवाज़ आती आज हलवा नहीं खाना है हरी चटनी के साथ गरम पकोड़े बनवाओ और वो हँसते- हँसते सब काम करती थी।


धीरे-धीरे समय बदला बच्चे भी हो गये कब इस आप धापी समय बीतने लगा पता ही नही चला, सासुजी-ससुर जी परलोक सिधार चुके थे। अब वो स्वयं उस पदवी को पा चुकी थी। लेकिन उसने पाया समय भी पंख लगा कर उड़ चुका है। पर उसकी स्थिति नहीं बदली। आवाज़ लगाने वाले बदल गये हैं। ख़ुशी-ख़ुशी काम करने वाली वो वैसे ही है।आज भी उसके पास अपने पति के पास बैठ कर दो घड़ी चैन से बात करने की फुर्सत नही है। भुवन वैसे ही व्यस्त हैं।जब कभी पूछती हैं ‘हम अपना जीवन कब जीयेंगे तो मुस्कुरा कर कहतें हैं रिटायर्मेंट के बाद तुम्हारी सब शिकायत पूरी करूँगा।’’ एक बार बच्चे सेट हो जाएँ।


हम्म!!! अचानक एक घुटन भरी आवाज़ से उसकी तन्द्रा टूट जाती है। कमरे में दौड़ कर जाती है भुवन बिस्तर पर लेटे हुए कुछ अजीब सी आवाज़ निकाल रहे हैं। उमा जल्दी से भुवन का मुंह साफ कर चम्मच से पानी देने की कोशिश करती है। भुवन उमा को देखते तो है पर पहचान नहीं पाते।उमा के कानों में आवाज़ गूंजती है रिटायर होने दो सब शिकायत दूर कर दूँगा और आज वही भुवन उसे पहचान भी नहीं पा रहे हैं।

बच्चे अपनी-अपनी दुनिया में मगन हो गये। शायद आज की पीढ़ी ज्यादा समझ दार है वो जानती है जीवन कैसे जीया जाता है। जो उमा और भुवन ने जीया वो आज की पीढ़ी कहाँ समझेगी। बच्चों से दूरी ने ही भुवन को असमय बीमार कर दिया था।मगर ये आधुनिकता कहाँ जानती है ‘परिवार और मूल्य’ सब कुछ तो पैसा ही है। अरे रिश्ते भी क्या मोल माँगते हैं। क्या हमने अपने सारे दायित्व पूरे नहीं किये ?? क्या परिवार को जिम्मेदारियों को छोड दिया ?? मन-मन ही सोचती उमा आने वाले समय की कल्पना कर के काँप उठती है वो जानती है कि भुवन की हालत धीरे-धीरे बिगड़ रही है।वो जीवन की इस संध्या में अकेली कैसे जियेगी ??क्या वर्तमान में समाज का बुजुर्गों के लिए कोई दायित्व नहीं है ???

 

उमा ने मन में आये ख्यालों को झटका और धीरे धीरे काम को समेटने लगी। अभी कुछ दिनों पहले ही इस नई सोसायटी में शिफ्ट हुई है उमा बस जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है। तभी तेज़ घंटी की आवाज़ उसके कानों को चुभती है । वो दरवाज़ा खोलती है दो औरतें दिखती हैं।

उमा – "बेटा नमस्कार मैने आपको पहचाना नहीं।"

वो दोनों हंसती हुई "आंटी पहचानोगे कैसे ? आज ही तो मिले हैं। हम आपके साथ वाली बिल्डिंग में रहते हैं ।हमारे यहाँ सुन्दर-कांड का पाठ है आप जरूर आना।" उमा हिचकिचाते हुए !!" बेटा जरूर आती पर तुम्हारे अंकल जी की तबियत ठीक नहीं है। मुझे मना करना अच्छा नहीं लग रहा पर मजबूरी है।" "आंटी जी अंकल जी की चिंता मत करो हम उनका भी ध्यान रखेंगे आप पहुँच जाना अंकल जी को मेरा बेटा आकर ले जायेगा।" उमा;" बेटा बहुत-बहुत खुश रहो।" उनके जाने के बाद उमा भगवान का धन्यवाद करने लगी और मन में सोचने लगी जरूरी तो नहीं जहाँ से चाहे वहीँ से सुख मिले। मुझे निराशा को छोड़ नए हौंसले और उम्मीद से इस जीवन संध्या को जीना चाहिए। 

 

 



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