जीवन एक नदिया Life is a river)
जीवन एक नदिया Life is a river)
मैं पहाड़ों का सीना चीरकर हँसती-खिलखिलाती, इठलाती-बलखाती एक झरने के रूप में बड़ी-बड़ी उछालें भरती, पूरे जोश से हरे-भरे जंगलों के बीच से छोटी-मोटी चट्टानों को तोड़ अपने में समाहित करते हुए, आगे बढ़ते हुए, एक स्वच्छ पावन मीठा जल लेकर, एक झरने के रूप में सबको तृप्त करती हुई।
पता नहीं था, मैदानों में आते ही मुझे हर कोई अपने हिसाब से बांधने लगेगा। कोई बाँध लगा कर मुझे रोक लेगा और अपनी इच्छानुसार मेरा उपयोग करेगा!
कोई मेरे द्वारा तोड़े गए चट्टानों के महीन कणों को बालू के रूप में चुरा लेगा। हर कोई अपनी गंदगी मेरे मत्थे मढ़ देगा। कोई क्या जाने की धरती के गर्भ से बाहर आने के लिए मैंने कितनी चोटें खाईं। ठोकरें खाईं, लोगों ने तो देखा तो बस एक सुन्दर उछालें भरता झरना।
चाल धीमी हो गई, उछालें थम गईं, रह गई एक अंदर से कल-कल करती नदी।
खामोश सी मैं बहती रही, सारी गंदगी समेटते, और जब गुस्सा आता तो उछाल भर कर कुछ गंदगी किनारों पर फेंक देती।
कहीं-कहीं तो अस्तित्व ही समाप्त होता रहा।
आखिर में सारी गंदगियाँ समेत मैं, सागर की गोद में समा गई।
लोग कहते हैं- ये नदी और सागर का संगम, मन को बहलाने को ये ख्याल अच्छा है।
पर नहीं समझ पाते लोग की ये एक नदी के अस्तित्व का समाप्त हो जाना है।
और एक स्त्री की कहानी भी नदी की ही तरह शुरू और ख़त्म होती है। वो पैदा होती है तो माता-पिता, भाई-बहन सबके प्यार-दुलार से खिली हुई कली की तरह ख़ुश और मस्त रहती है।
जैसे-जैसे बड़ी होती है, बंदिशें और रोक-टोक से उसके पैरों में बेड़ियों की शुरुआत हो जाती है। फिर उसे अपनी जड़ों से उखाड़ कर दूसरी जगह रोप दिया जाता है। ज़माने का दस्तूर यही है। ऐसा तो होना ही है लेकिन, इसका मतलब ये नहीं होता की लड़कियाँ हृदयहीन होती हैं। उन पर कोई असर नहीं होता। यहाँ मैं केवल बेटी की बात नहीं पूरी स्त्री जाति की बात कह रही हूँ।
फिर तमाम जिम्मेदारियाँ, कभी अनावश्यक दोषारोपण, ढेर सारा दुःख थोड़ा सा सुख और अक्सर ऐसा होता है जिन्हें हम बहुत प्यार करते हैं वो एहसासों में ही होते हैं साथ नहीं होते।
इस तरह स्त्रियों को भी मुक्ति अंतिम परिणति में ही होती है, जैसे नदी अपना अस्तित्व खोकर ही मुक्त होती है।
स्त्रियां भी जब उनका अस्तित्व समाप्त होकर ब्रम्हलीन हो जाती है तभी उसे मुक्ति होती है।