जाको राखे साइयां मार सके ना कोई।
जाको राखे साइयां मार सके ना कोई।
एक बार एक राज्य में पारसमय नाम का एक लकड़हारा रहता था। वह एक सीधा साधा एवं मेहनती व्यक्ति था। एक दिन वह जंगल में लकड़ी काटने गया। उस दिन उसने बहुत लकड़ियां काटने का तय किया था ताकि अगले दिन उसे बेचकर पैसे ला सके क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। उस दिन उसने बहुत लकड़ियां काटी। थकान होने के बावजूद भी वह अपने कार्य में जुटा रहा। देखते-देखते उसकी भूख उजागर होने लगी, इसीलिए उसने एक पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का निश्चय किया। वह खाना खाने के लिए जैसे ही बैठा उसे एक औरत की रोने की आवाज आई। आवाज सुनकर वह उसी दिशा में ढूंढने के लिए आगे बढ़ा जिस दिशा में से आवाज आई थी। जब वह वहाँ पहुंचा तो उसने देखा कि एक औरत रो रही थी। लकड़हारे ने औरत से उसके रोने का कारण पूछा उस औरत ने लकड़हारे को अपने हाल से परिचित कराया। उसने बताया कि कई दिनों से भोजन ना मिलने के कारण उसका यह हाल है। लकड़हारे के हाथ में भोजन देखकर उस औरत ने उससे भोजन मांग लिया। सुबह से परिश्रम करने के कारण लकड़हारा थकान से ग्रस्त था जिसके कारण उसे बहुत भूख लगी थी किंतु फिर भी औरत की स्थिति के बारे में सोच कर उसने उसे भोजन दे दिया। भोजन देने के बाद जब वह वापस उस दिशा में लौटा जिस स्थान पर वह था तो वहाँ लौटकर उसने देखा कि जिस स्थान पर वह बैठकर भोजन करने वाला था, उस जगह पर एक पेड़ गिरा हुआ था। लकड़हारे को अनुभव हुआ की कैसे भगवान ने उसके प्राणों की रक्षा की। यह सोचकर उसने भगवान को धन्यवाद दिया और वहाँ से प्रस्थान किया। इसीलिए कहते हैं जाको राखे साइयां मार सके ना कोई।
