ईमानदार बालक
ईमानदार बालक
माता पिता ने बढ़िया लालन पालन किया और अच्छे संस्कार दिए, जिन्हे बालक ज्ञानप्रकाश ने पूर्ण रूप से ग्रहण किए। एक दिन पिता जी ने कुछ सामान पड़ोसी बीरबल को देने हेतु भेजा। पड़ोसी बीरबल के नौकर ने ज्ञानप्रकाश को बैठक में बिठाया। पडोसी उस समय नहा रहे थे, अतः आने में कुछ विलम्ब हो गया। बैठक में सेंटर टेबल में फलों की टोकरी में उच्च कोटी के सेब, संतरे सजा कर रखे थे। ज्ञानप्रकाश ने उनको हाथ नहीं लगाया। कुछ देर बाद बीरबल बैठक में आए। शांत भाव से ज्ञानप्रकाश को बैठा देख बीरबल ने कहा,
"मुझे आने में देर हो गई। तुम को सेब, संतरे पसन्द है, तुम खा लेते"
ज्ञानप्रकाश ने उठ कर बीरबल को नमस्ते किया और पिता जी का सामान दिया। बीरबल को पता था कि ज्ञानप्रकाश को फल पसन्द है, लेकिन उसने अकेले में भी किसी फल को हाथ नहीं लगाया। बीरबल ने स्नेह से पूछा,
"तुम्हे फल पसन्द है, टोकरी में से कोई भी पसन्द का फल ले सकते थे। अपने घर और यहां कोई अन्तर नहीं है"
ज्ञानप्रकाश ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया, "यह ठीक है कि मैं बैठक में अकेला था। कोई भी देखने वाला नही था, कोई भी फल खा सकता था, लेकिन मैं अपने माता पिता के दिए संस्कारों को भूल नहीं सकता। घर आपका है, मैं तो पिता जी का कुछ सामान आपको देने आया हूँ। बिना आपकी अनुमति मुझे कोई अधिकार नहीं है, कि आपके घर किसी भी चीज या वस्तु को हाथ लगाऊं। यह काम अनैतिक है। मेरी शिक्षा और संस्कारों ने मुझे रोका और मेरे विवेक ने धैर्य से आपके आने तक इन्तजार करने की अनुमति दी"
बालक ज्ञानप्रकाश की बात सुन कर बीरबल ने उसे गले से लगाया और फलों की टोकरी उपहार में दी।