हरिवचन : भाग 6
हरिवचन : भाग 6
मुफ्तखोरी की लत
आज लॉकडाउन का 21वां दिन है और लॉकडाउन 1.0 का अंतिम दिन है। आज 10 बजे प्रधानमंत्री जी देश को एक बार पुनः संबोधित करेंगे और उम्मीद है कि लॉकडाउन 2.0 आज घोषित हो जायेगा जो संभवतः 30 अप्रैल तक रहेगा।
आज मैंने कुछ वीडियो देखे। मन विचलित हो उठा। इंसान इतना गिर जायेगा, ये सोचा नहीं था। पहले मैं उन वीडियो के बारे में बता देता हूं फिर आज के विषय पर चर्चा करेंगे।
पहला वीडियो
इंदौर शहर के किसी मौहल्ले में प्रशासनिक अधिकारी पुलिस के साथ खाने के पैकेट लेकर जाते हैं। वहां पर स्थानीय महिलाओं की भीड़ लगी होती है। एक महिला खाने का पैकेट लेने से मना कर रही है। अधिकारी पूछता है कि क्यों मना कर रही हो ? वो कहती है कि आप खाना 12 बजे लाते हो और तब तक हम लोग भूखे से बिलबिलाते रहते हैं। घर में खाने को कुछ भी नहीं है। बच्चे भूख से मर रहे हैं।
अधिकारी कहता है कि पैकेट रोज बनते हैं और बांटने में थोड़ा समय तो लगता है। 12 बजे कोई विलंब तो नहीं है। लेकिन महिला मानती नहीं है और बहस करती है। लोगों को भी भड़काती है।
दूसरा वीडियो
इतना सब कुछ होने पर वह अधिकारी पुलिस के साथ उस महिला के घर जाता है। पूरे घर की तलाशी ली जाती है तो आश्चर्यजनक तथ्य प्रकट होते हैं। उसके घर में कम से कम 20-25 किलो चावल, 20 किलो आटा, 10 किलो आलू, 10 किलो प्याज और न जाने क्या क्या मिलता है। अधिकारी पूछता है कि यह सब खाद्य सामग्री कहां से आई तो वह बताती है कि प्रशासन ने दी है। रोज आती है। जितनी काम में आती है ले लेते हैं बाकी ये बची पड़ी है। सबका माथा घूम गया।
तीसरा वीडियो
एक दुकानदार का है जो प्रोविजनल स्टोर का संचालक है। उसके पास एक ग्राहक आता है। वो ग्राहक उस दुकानदार को दाल, चावल आदि के पैकेट देता है और कहता है कि इनके बदले क्रीम, शैम्पू, लक्जरी आइटम दे दे। वह दुकानदार कहता है कि यह सामान कहां से आया ? तब वह बताता है कि सरकार से। इतना ज्यादा सामान आ गया है कि अब इस सामान की आवश्यकता नहीं है। अब आवश्यकता है क्रीम, शैम्पू जैसे लग्जरी आइटम की। इसलिए इनके बदले में ये आइटम चाहिए।
इन तीनों वीडियोज को देखकर मेरी तो रूह कांप उठी। इंसान कितना मुफ्तखोर हो चुका है ? चोरी और सीनाजोरी ! अद्भुत दृश्य है ये। बहुत सारे टीवी चैनल्स इस लोगों की भूख का रोना रो रहे हैं। सरकारों को कोस रहे हैं। हां, वो ऐसा कर रहे हैं क्योंकि यही उनका एजेंडा है।
हमने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी। एक साधू था। उसके पास एक घोड़ा था। बहुत सुंदर। बहुत मजबूत। वह साधू उस घोड़े पर ही आता जाता था। एक डाकू ने एक दिन उस घोड़े को देख लिया। उसका मन घोड़े पर आ गया। उसने साधू से घोड़ा बेचने को कहा पर साधू ने मना कर दिया। उसने उस घोड़े को हथियाने की एक योजना बनाई।
एक दिन वह साधू कहीं जा रहा था। उसने देखा रास्ते में कोई आदमी पड़ा पड़ा कराह रहा है। उसने घोड़ा रोका और उससे पूछा। भिखारी बने डाकू ने कहा कि वह लंगड़ा है। चल फिर नहीं सकता। कुछ दिनों से भूखा है। कुछ खाने को मिल जाता तो जान में जान आ जाती। साधू ने अपने पास से कुछ खाने की सामग्री उसे दे दी। पानी भी पिला दिया। भिखारी कहने लगा कि एक उपकार और कर दें, महानुभाव। मुझे गांव तक ले चलो जिससे वहां मेरा खाने पीने का बंदोबस्त हो जायेगा।
साधू को इसमें कोई आपत्ति नजर नहीं आई और वह घोड़े से नीचे उतर गया। लंगड़े भिखारी को बड़ी मुश्किल से घोड़े पर बैठाया और खुद पैदल चलने लगा। इतने में भिखारी बना डाकू अपने असली रूप में आ गया और घोड़े को ऐड़ लगाता हुआ भाग खड़ा हुआ। साधू को सब माजरा समझ में आ गया। उसने पीछे से आवाज देते हुए कहा।
" सुन। तू घोड़ा ले जा रहा है, ले जा। मगर किसी से यह मत कहना कि तू यह घोड़ा एक गरीब लंगड़ा भिखारी बन कर लाया है। इससे लोग गरीब, बेबस, लाचार, मजबूर लोगों की मदद करना बंद कर देंगे क्योंकि तूने ऐसे लोगों का विश्वास भंग किया है।"
आज यह कहानी पुनः सार्थक नजर आ रही है। लोग अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो गए हैं कि इस महासंकट के अवसर पर भी नीचता की हद तक उतर आये हैं। कुछ राजनेता ऐसे लोगों के पक्ष में उतर कर सरकार को कटघरे में खड़ा करने का कोई अवसर नहीं चूक रहे और लोगों को भूख का हौव्वा दिखाकर भड़का रहे हैं और अपनी रोटी सेंक रहे हैं। कुछ टीवी चैनल्स ऐसे मक्कार लोगों के ऐसे ऐसे प्रायोजित इंटरव्यू ले रहे हैं कि अच्छे अच्छे कलाकार शर्मा जायें। इन जैसे चैनल्स का एक ही एजेंडा है, सरकार का विरोध करना।
बहुत से स्वयं सेवी संगठन ऐसे मक्कार लोगों की सेवा में दिन रात लगे हुए हैं। मेरा तो मत यह है कि मदद भी उन्हीं की करनी चाहिए जिसे मदद की वास्तव में आवश्यकता हो। कुछ लोगों को छपास की बीमारी इस कदर होती है कि एक केला वितरित करते हुए पांच लोग फोटो खिंचवाते हैं और सोशल मीडिया पर उसे शेयर कर यह दर्शाते हैं कि उन जैसा दानवीर ना पहले कभी हुआ है और ना भविष्य में कभी होगा।
कल ही कुछ फोटो आई हैं जिनसे पता चलता है कि अपने वोट बैंक को पुख्ता करने के लिए ऐसे लोगों को 700 रुपये की थाली मुफ्त में परोसी जा रही है। लोगों को इस पर भी ध्यान देना चाहिए।
अब संभवतः लॉकडाउन 2.0 में ऐसी घटनाएं ज्यादा देखने को मिलेंगी। सरकार कोरोना से लड़े या ऐसे मक्कारों से ? मुफ्तखोरी की लत इस कदर लग चुकी है कि झूठ मक्कारी सब जायज हो गई है। हम सबको भी इन मक्कारों से लड़ने की आवश्यकता है।
