होली की हुडदंग अपनो के संग
होली की हुडदंग अपनो के संग
होली के एक दिन पहले दोपहर के समय मेरे मोबाइल फोन की गण्टी बजी, मैंने फोन उठाया- दक्ष बोल रहा हूँ, ज्योति दीदी कल होली खेलने बापू नगर आ जाना 10 बजे और कुछ बहाने नहीं चलेंगे आपके। एक ही श्वास में सब कुछ कहे डाला और फिर कुछ इधर उधर की बातें करके फोन रख दिया। आप सोच रहे होंगे की ये दक्ष कौन है तो मैं बता देती हूँ, मेरे बड़े भैया का लड़का है।
होली के दिन हम सब सुबह 10:15 बजे खाना खा रहे थे तभी डाॅ अमित दाधीच (भैया) और दक्ष दोनों हमको बुलाने आ गये थे। हम सभी ने एक दूसरे के गुलाल लगाया और हैप्पी होली कहा।
फिर हम सभी होली खेलने बापू नगर चले गये। वहाँ जा के देखा तो क्या खूब माहौल जमा रखा था होली का।
इस बार पानी से होली खेलने के लिए एक वाटर टंक भी पानी से भर रखा था और सभी रंगो की गुलाल वहाँ सजा रखी थी । फिर तो सभी को होली के रंग में रंगना ही था।
भैया -भाभी, दीदी, दोस्तों के साथ का मजा ही कुछ और था । वैसे इस बार एक की कमी खल रही थी वो थे पटना वाले भैया क्योंकि इस बार छुटी लेकर होली खेलने नहीं आये थे। गुलाल व पानी से इस बार तो खेलने का मजा ही आ गया। साथ ही वो रंगो के हाथों से ही मिठाई और ओलिया खाने का मजा ही कुछ और था।
सभी ने खुब मस्ती की एक दूसरे पर पानी डाला व गुलाल में इतना रंगा की मजा ही आ गया।
इस बार की होली की मस्ती अपनो के संग खेलने का मजा ही अलग था।