anil verma

Drama Inspirational

5.0  

anil verma

Drama Inspirational

हल्की सी पुकार

हल्की सी पुकार

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मैं अपनी बात अपने शीर्षक हल्की सी पुकार के सन्दर्भ में अपने विचार प्यारें मित्रों, इक्कीसवीं सदी के नवयुवक एवं सम्माननीय क्रान्तिकारी कर्मठों से करता हूँ ।

मैं नहीं जानता हूँ कि जो विषय मैं आपके सामने रख रहा हूँ उसे मैं क्या नाम दूँ । जैसा कि शीर्षक को पढ़ने से जो मार्मिक अनुभूति होती हैं वह हमारे हृदय में हजारों प्रश्न सहज ही उठ आते हैं । वे प्रश्न क्या हैं, आइए इन्हें हम अपने अतीत के झरोंखे से देखने का प्रयास करें । मैं नहीं जानता कि जो प्रश्न मेरे मन में उठते हैं वह प्रश्न केवल मेरा हैं, अथवा सभी का । लेकिन मैं इतना जरुर जानता हूँ कि यह प्रश्न आपके जहन में कभी न कभी अवश्य ही आतीतिक उत्साह जागृत करता रहा होगा । मैं जानता हूँ कि आप ये 6-7 पँक्तियां पढ़कर आपके मन मस्तिष्क में सस्पेन्स बन चुका होगा आखिर ये क्या विचार हैं । अब मैं आपको उलझाने के बजाय शीर्षक हल्की सी पुकार बताता हूँ । जब मैं जूनियर हाईस्कूल का विधार्थी हुआ करता था तो मुझे लगता था कि जब मेरा देश प्यारा भारत महान, अंग्रेजों के शासन में जकड़ा था तो मैं उस समय क्यों नहीं था । हमारे देश हिन्दुस्तान को आजाद कराने में महान नेता राजनेता और क्रान्तिकारियों का योगदान रहा । मैं जब उन नेता, राजनेता और कर्मठ क्रान्तिकारियों की जीवनी पढ़ता हूँ या सुनता हूँ तो मेरे मन मस्तिष्क में वही प्रश्न उठता है कि यदि मैं होता तो मैं भी अपनी देश की आजाद करवाने में अहम भूमिका निभाता । मैं ये करता वो करता और न जानें क्या-क्या करता ।

हमारे हृदय में उनकी (नेता, राजनेता एवं कर्मठ का क्रान्तिकारियों) हल्की सी पुकार मानों हमें चीख-चीख कर कह रही हों । क्या कह रही हो कि हे इक्कीसवीं सदी के नायकों तुम क्या हमारी कुर्बानियों को यूहीं बर्बाद एवं तहश-नहश कर दोगे । हमने (क्रान्तिकारी, नेता एवं राजनेता) तो भारत देश को आजाद करवा लिया और आपको पिंजरे से उड़े पक्षी की तरह आजाद मुल्क में सांस लेने के लिए छोड़ दिया । हल्की सी पुकार के माध्यम से मैं कहना चाहूँगा कि आज मैंने 21वीं सदी के खुलें आकाश में आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार्य, जातिवाद, सम्प्रायिकवाद तथा दूषित राजनीति के काले बादल आसमान पर छायें हुए हैं । हमारे प्यारे देश को सोने की चिड़िया से विभूषित किया जाता हैं । लेकिन दुर्भाग्यवश आज हम अपने ही हाथों अपने देश को खोखला करते जा रहे हैं ।

क्या यदि आज हमारे जगह मेरे देश के सुपरहीरो (नेता, राजनेता एवं कर्मठ का क्रान्तिकारियों) होते तो क्या ये सब यूँही होने देते । जब आप अपने कमरे में अँधेरे में बैठ कर विचार करेंगे तो हृदय में एक बिजली सी दामिनी उठ जाती हैं । जैसा कि आपकों मालूम है कि मेरा शीर्षक केवल 2-4 पन्नो में अपनी जगह दृढ़ रखने में सफल रहता हैं तो यह मेरा उद्देश्य नहीं है, मेरी इस सोच में मैं अकेला हूँ किन्तु जानता हूँ कि मैं को हम में बदलने के लिए इस 21वीं सदी के कर्मठो से निवेदन है कि इस मुहिम में शामिल होकर हमारे भारत देश को आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, सम्प्रदायिकता एवं दूषित राजनीति को खत्म करने के लिए मेरे साथ जुड़े और देश को फिर से सोने की चिड़िया से विभूषित करने का गौरव हम 21वीं सदी के लोग आगे बड़े ।

आज हम भलें ही अपनी मातृभूमि के लिए उस तरह से समर्पित नहीं है जैसा कि हमारे क्रांतिकारी भाइयों ने अपनी देश के लिए अपने प्राणों को समर्पित करने के सदैव तत्पर रहते थे । आज हम आजाद हैं लेकिन सत्य यह है कि आज हमारी स्थिति दयनीय है और अपने को असहाय और ठगा महसूस करते हैं । आज का युवक बेरोजगार हैं और वह अपनी बेरोजगारी से मुक्ती पाने के लिए सही गलत कदम उठाने में जरा भी झिझक नहीं रहा हैं । जिसके फलस्वरुप नक्सलवाद, आतंकवाद जैसी समस्याए हमारे समाज के सामने जटिल स्थिति उत्पन्न करती जा रही हैं । आज हम देश में भले ही लोकतंत्र हैं लेकिन राजनीतिक दलों ने उसे अपने जागीर समझकर जनता को गुमराह करके अपनी ऊल्लू सीधा कर रही हैं । हमें इस असंतोष से उबरना होगा और अपने सपनों का भारत निर्माण हम नौजवानों को साथ मिलकर कदम उठाने होंगे ।

आप सभी पाठकों को लग रहा होगा कि मैं इतनी बड़ी-बड़ी बातें जो कर रहा हूँ क्या खुद कभी मैंने समाज को परिवर्तित करने का कोई कदम उठाया हैं । मेरा जवाब नहींं हैं क्योंकि मैं अकेले इस काम को कर पाने में असहाय और असमर्थ समझता हूँ क्योंकि मै, मै पर नहीं हम पर विश्वास रखता हूँ । लेकिन मैं इतना जरुर करता हूँ कि मैं जो भी काम करता हूँ उसे पूरी ईमानदारी से करता हूँ क्योंकि मुझे यह एहसास हो गया हैं कि सारी समस्याओं का आरम्भ हमारी अकर्मण्यता हैं जो बाद में हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती हैं । अब आप यह सोच रहें होंगे कि कोई व्यक्ति जब ऐसी विचारधारा रखने वाला व्यक्ति ही कुछ परिवर्तन करने में असफल हो रहा हैं तो क्यों दूसरें लोगों से अपेक्षा कर रहा है कि कोई न कोई व्यक्ति इस परिवर्तन का सहारा बनेगा और उसके साथ इस विचारधारा से प्रभावित होकर और लोगों को जोड़ेगा।

मैं इस दुविधा को समझता हूँ कि हम ही क्यों इस पचड़े में पड़ कर अपना समय खराब करें । ऐसी बाते सिर्फ सुनने या पढ़ने में अच्छी लगती हैं न कि उसे जीवन में उतारने से । इस समाज में जहां तक मैं समझता हूँ लोग ऐसे कार्य से दूर रहतें लेकिन उनमें ये ललक जरुर होती हैं कि इस समाज को विकास के पथ पर अग्रसर होने में उनकी भी भागीदारी हों ।

आज हम अपने जीवन-यापन में ऐसे उलझें हैं जिसके फलस्वरुप हमें जो विचारधारा या वस्तु हमारे लिए उपयोगी हैं वह ही सही हैं चाहे उसका अन्त भलें ही दुखदायी हों हम उसे बिना जाँच पड़ताल किए उस विचारधारा को अपना लेते हैं । आज हम अत्याधिक स्वार्थी हो गयें हैं हमारे हृदय में परोपकार जैसी भावना का आभाव हो गया हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में कुछ लक्ष्य बना उसे ही जीवन का सत्य मानकर आगे बढ़ता हैं ।

शायद मैं इसको एक उदाहरण देकर समझा सँकू जैसे "जब हम किसी रास्ते को ऊँचाई (ज्ञान) से देखते हैं तो हम उस रास्ते के बारे यह जान लेते हैं कि ये रास्ता सीधा (उपयुक्त) हैं, यह टेढ़ा (उपयुक्त नहीं) हैं । लेकिन जब हम उसी रास्ते पर पथिक बनकर चल पड़ते हैं तो हमें टेढ़ा रास्ता भी उपयुक्त समझ आता हैं क्योंकि हम अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए साधन नहीं साध्य को उचित मानते हैं ।"

"महात्मा गाँधी जी की फिलोसोफी का फलसफा भी यही कहता हैं कि साधन और साध्य उचित होना चाहिए तभी सही मायने में हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकतें हैं ।"

"वही हिन्दू धर्मग्रन्थ गीता के अनुसार स्वयं श्री कृष्ण जी ने उपदेश देते हुए कहा हैं कि यदि साध्य उचित अथवा लाभकारी अथवा जनहितकारी हो तो साधन का महत्व समाप्त हो जाता हैं ।"

लेकिन मैं इन बातों को लेकर अपने शीर्षक हल्की सी पुकार के माध्यम से अपने पाठकों से निवेदन करता हूँ कि किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए ताकि हमें समय निकल जाने के बाद उस वस्तु का पक्षतावा न हों । अगर मैं ज्यादा नहीं बस इतना सवाल आपके सामने रख दूँ तो शायद इस प्रशन का उत्तर मिल जायें।

ये वो सवाल हैं जैसे कि क्या हमारा जीवन इस पृथ्वी लोक पर सिर्फ खाना-पीना, सोना और रोज की दिनचर्या में व्यस्त रहना हैं । क्या हम और आप में से किसी न किसी के मन में ये प्रशन एकाद बार अवश्य ही उठते हैं । लेकिन हम ऐसे प्रशनों के ज्यादा भाव न देकर अपने जीवन के मोल को बिना समझे फिर से उसी तरफ आगे बढ़ जाते हैं । आखिर कब तक हम ऐसे प्रशनों से भागते रहेगें । एक दिन आपके जीवन में ऐसा आएगा कि हम ऐसे सवालों से घिरें होगें लेकिन उन प्रशनों को चरितार्थ करने के लिए हमारा भौतिक शरीर या मन शायद साथ न दें । क्योंकि हमने अपने जीवन के मोल को समझा ही नहीं जिसके फलस्वरुप हमें जीवन का मूल उद्देश्य क्या हैं शायद यह मनुष्य कभी समझ ही नहीं पाता शायद मैं भी ऐसे प्रश्नों से दूर भागता हूँ क्योंकि मैं भी आप लोगों की तरह एक साधारण सा मानव हूँ जो इस संसार में अपने जीवन के उद्देश्य को समझने के लिए तत्पर रहता हैं । लेकिन मेरे मन में एक विचार आता हैं कि क्या मैं अपने जीवन के उद्देश्य को कभी समझ पाऊँगा कि नहींं, अगर मैं अपने जीवन के मोल को समझा नहीं तो क्या मेरा यह जीवन व्यर्थ की भागदौढ़ में ही व्यतीत हो जाएगा मैं ऐसा नहीं होने दूँगा क्योंकि मुझे यह एहसास हो गया हैं कि यह मनुष्य जीवन जो हमें मिला हैं उसका कुछ उद्देश्य है क्योंकि यदि हम बिना अपने जीवन के उद्देश्य को समझें बिना ही देह त्याग दिया हैं तो जो हम करने आए थे वो तो अधूरा ही रह जाएगा । मैं अपनी बात को और अधिक तटस्थता से कहना चाहता हूँ कि यदि हमारे जीवन उद्देश्यहीन होता हमें मनुष्य जीवन न मिलता क्योंकि हम किसी और योनि में जन्म लेते ।


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