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Vijay Kumari

Inspirational Others

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हिन्दी हमारी संस्कृति की पहचान

हिन्दी हमारी संस्कृति की पहचान

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हिन्दी के प्रचार - प्रसार पर आधारित लघुकथा 


रिया का आज स्कूल में पहला दिन था। उसके मम्मी - पापा ने उसे शहर के अंग्रेजी स्कूल में प्रवेश करवा दिया था। रिया बहुत खुश थी। रिया के मम्मी - पापा भी बहुत खुश थे कि हमारी बेटी अब अंग्रेजी स्कूल में पढ़ेगी और अंग्रेजी बोलेगी।


शुरू- शुरू में बेटी के मुंह से गुड मॉर्निंग और गुड नाईट शब्द सुनकर रिया के मम्मी - पापा बहुत खुश होते। रिया के मम्मी - पापा भी नौकरी पेशा थे। उन्हें बेटी के साथ बिताने को समय नहीं था। अतः स्कूल से छुट्टी के बाद भी रिया को कुछ समय तक स्कूल में ही रहना पड़ता था। उन्होंने बेटी को खुश रखने की बहुत कोशिश की जो - जो रिया मम्मी - पापा से मांग करती उसे सब कुछ मिलता।


रिया बड़ी होने लगी थी। वह बहुत जिद्दी स्वभाव की हो गई थी। वह घर में मम्मी - पापा से भी अंग्रेजी में ही बात करती तो उन्हें बहुत बुरा लगता था। उसके चाल - ढाल और कपड़े पहनने का ढंग बिल्कुल बदल चुका था।


रिया के मम्मी - पापा उसे हिन्दी में बात करने के लिए कहते परंतु रिया अब हिन्दी में बात करना अपनी शान के खिलाफ समझती थी। वह उसे अपनी सभ्यता और संस्कृति के बारे में कुछ भी बताते तो वह उन्हें पुराने और दकियानूसी विचारों के कहकर चुप करवा देती थी। अब उसे सही राह पर लाने के लिए बहुत देर हो चुकी थी।


अपने किए का पश्चाताप करने के लिए रिया के मम्मी - पापा ने अब हिन्दी भाषा उत्थान केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया जिसमें वे

हिंदी भाषा का प्रचार - प्रसार कर सकें, अपने देश की सभ्यता और सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रख सके। इसमें बहुत से युवाओं ने रिया के मम्मी - पापा का साथ दिया।जल्दी ही रिया को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अपने मम्मी - पापा से क्षमा मांगी।


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