Nand Lal Mani Tripathi

Inspirational

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Nand Lal Mani Tripathi

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हिंदी दिवस प्रतिस्पर्धा नहीं उत्सव

हिंदी दिवस प्रतिस्पर्धा नहीं उत्सव

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हिंदी दिवस हर वर्ष चौदह सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है चौदह सितम्बर सन् उन्नीस सौ उनचास को हिंदी को राज भाषा के रूप में स्वीकार किया गया था।भारत शायद विश्व का प्रथम देश है जिसकी आजादी के चौहत्तर वर्ष बाद भी कोई राष्ट्र भाषा नहीं है।जबकि भारत के अधिकतर भाग में हिंदी बोली जाती है।प्रश्न यह उठता है की राज भाषा का क्या अर्थ है राज भाषा का स्पष्ठ तात्पर्य यह है की

राजकीय कार्यालयों एवम् क्रिया

कलापों को हिंदी में किया जाय

मगर सच्चाई यह है की आज भी भारतीय सरकारी कार्यालयों में अंग्रेजी ही प्रभावी है।हिंदी आज भी हीनता का प्रतिनिधि करती है

कान्वेंट कल्चर घर घर में रचा बसा है ऐसे में हिंदी को भारतीय जन मानस की स्विकार्यता तो है

मगर प्रसंगिगता नहीं है यही हिंदी

भाषा के साथ विडम्बना है।ऐसे में

हिंदी दिवस औपचारिकता ही बन कर रह गया है।

हिंदी दिवस दिवस न मनाकर हिंदी को दिलो में प्रभाहित करने का वातावरण चेतना जागृति का नित्य निरंतर अनुष्ठान होना अनिवार्य है।हिंदी उत्सव भी गणपति पूजन जैसा नहीं होना चाहिये की गणेश चतुर्थी को गणपति जी को प्रतिस्थापित कर

कुछ दिन पूजा अर्चना कर सागर या नदी में यह कहते गणपति बाप्पा मोरिया अगले वर्ष जल्दी आ कहते विसर्जित कर दिया जाय हिंदी उत्सव नव रात्रि की नौ दिन की माँ आराधना भी नही है की जीती जागती माँ दुःख पीड़ा झेलती रहे और माँ दुर्गा की नौ दिन आराधना कर माँ का भक्त कहलाये।हिंदी दिवाली का एक दिनी प्रकासोत्सव भी नहीं है या हिंदी का उत्सव होली के बहुरंगी 

उल्लास की तरह एक दो दिन या

सप्ताह भर रहकर पुनः मुसुको

भव् हो जाय।हिंदी उत्सव है अंतर मन से प्रवाहित संस्कारिक उर्जा का प्रबाह है।हिंदी का उत्सव प्रतिदिन भारत के प्रत्येक परिवारों

घरो से सूर्य की लालिमा के साथ प्रारम्भ होनी चाहिए भारतीयता को समेटे हिंदी हिंदुस्तान की सामजिक पहचान है।मम्मी डैडी का प्रचलन समाप्त होना चाहिए 

गुड़ मार्निक गुड ईवनिंग गुड नाइट की जगह शुप्रभात शुभ रात्रि माता जी पिता जी से हिंदी के नित्य प्रतिदिन का उत्साह उत्सव प्रारम्भ होनी चाहिए हिंदी को उत्साह का उत्सव युवा वर्ग ही बना सकता है जो सर से पाँव तक अंग्रेजियत की नकल में

डूबा है आज का युवा हिंदी में बात करना अपनी तौहीन समझता है यही हिंदी हिंदुस्तान में

हिन् और महत्वहीन हो जाती है

भारत एक और मामले में विश्व का प्रथम राष्ट्र है जहाँ न्यायालयों की प्रक्रिया में अरबी उर्दू अंग्रेजी हिंदी खिचड़ी भाषा का प्रयोग राष्ट्र के विद्वान न्यायाधीशों द्वारा किया जाता है जो स्वयं हिंदी भाषा के पर्वोकार तो है परंतु स्वीकारते नहीं है।भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी में है हिंदी दिवस तो अवश्य मनाया जाता है जो महज औपचारिकता के लिये यह याद करने के लिये की हिंदी ही हिंदुस्तान की भाषा है।किसी भी संप्रभुता संपन्न राष्ट्र की पहचान उसके ध्वज भाषा धर्म और समाज संस्कृति के आधार पर होती है इसी पहचान को अक्षुण रखने के लिये एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के मध्य भौगोलिक सीमाओं का निधारण होता है और इसी धन्य धरोहर को बचने के लिये बड़े बड़े युद्ध लड़े जाते है।वास्तव में जो राष्ट्र या व्यक्ति अपनी पहचान खो

देते है उनका या तो समापन हो जाता है या उनकी हस्ती दूसरे में विलीन हो जाती है।यहाँ इसके तीन ज्वलंत उदाहरण विश्व समुदाय के समक्ष है आजादी के बाद यदि धर्म के आधार पर भारत दो भागो में बाँट कर हिंदुस्तान पाकिस्तान बना तो पुनःभाषा के आधार पर पाकिस्तान से बांगला देश बना

तिब्बत अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई अपनी धार्मिक और भाषायी विरासत के आधार और हथियारों से लड़ रहा है।भारत ने भी अपनी आजादी की लड़ाई हिंदी उत्सव उत्साह के भावो भावनावों से लड़ी गयी थी हिंदी के नारों ने हिन्दुस्तानियो के लहू में जोश ज्वाला भर दिया था तुम 1-मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा 2-अंग्रेजो भारत छोड़ो 3-स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है 

मगर जब देश आज़ाद हुआ तो हिंदी अपने ही लोगो के बीच अनजान हो गयी अपनी पहचान को तरस रही है।हिंदी का उत्सव पल प्रति पल जन जन की आत्मा

का स्वर से समग्र राष्ट्र में संचारित होनी चाहिये हिंदी को रोजगार परक और व्यवसायिकता के व्योम तक ले जाना चाहिए आज भी यदि क़ोई नौजवान हिंदी माध्यम से किसी प्रतियोगी परीक्षा को देता है या साक्षात्कार देना चाहता है तो उसके प्रति दोयम नजरिया हिंदी की संवेदना को ठेस पहुंचता है।

आप भारत के किसी कोने में जाय अंग्रेजी से सुगमता होगी हिंदी से कठिनाई आ सकती है आज भी भारत के दक्षिण के राज्य द्वी भाषा पद्धति को नहीं स्वीकार करना चाहते हिंदी एवम् स्थानीय भाषा पता नहीं भारतीय जन मानस हिंदी भाषा को किस दिशा दशा में ले जाना चाहती है यह भी सच है की आज के परिदृश्य में दक्षिण भारत में भी।बहुत परिवर्तन आया है वहां आज

हिंदी को अपनाने और हिंदी के प्रति आदर भाव रखने वाले अधिक है और वचनबद्ध भी।

कोई भी विदेशी राजनयिक या राष्ट्राध्यक्ष जब कीसी भी दूसरे देश जाता है तब वह् अपनी मातृ भाषा में ही बात करता है भारतीय राज नेताओं को हिंदी बोलने में संकोच आती है जबकि आदरणीय अटल बिहारी बाजपेई जी ने सयुक्त राष्ट्र महाअधिवेशन में हिंदी में व्यख्यान देकर हिंदी को सयुक्त राष्ट्र संघ की छठी भाषा बनाने की सार्थक पहल की थी।वर्तमान में नई शिक्षा निति जिसमे हिंदी को कुछ आशाएं जगी है कारगर होने की प्रबल संभावना है।हिंदी उत्सव मनाने के

के लिये हिंदी क्रांति का शंख नाद करना होगा जीवेत जाग्रतं की हिंदी हिंदुस्तान का जय घोष होना होगा क्योकि हिंदी को मजबूरी भय या विवशता में स्वीकारोक्ति नहीं मिल सकती और कोरोना जैसा कोई विषाणु भी हिंदी को उत्सव बनाने के लिये नहीं आने वाला क्योकि माना की कोरोना बहुत खतरनाक विषाणु है मगर उसने सम्पूर्ण विश्व मानवता को संस्कारिक जीवन जीने को विवश कर दिया प्रदूषण कम हुआ अनाप शनाप खर्चो में कमी आई नदियां साफ़ हुई सड़को पर हादसे में कमी आई लोगो में स्वस्थ के प्रति जागरूकता बड़ी। हिंदी की कर्म क्रांति ही हिंदी उत्साह का उत्सव होगी हिंदी हर हिंदुस्तानी के ह्रदय के अंतर प्रकोष्ठ से प्रवाहित सम्पूर्ण विश्व जन मानस को आकर्षित करेगी विगुल बज़ चूका है शंख नाद हो चूका हा हिंदी हिंदुस्तान के गांडीव की प्रत्यंचा पर हिंदी प्रेम प्रवाह के वाण चहु और निकल कर हृदयों

में पुष्पो की महक की हिंदी विखेर रहे है विश्वाश है की हिंदी उतथान की रथ यात्रा का महाउत्सव का चमोत्कर्ष माँ भारती के मंदिर में गूँज की तरह बोलेगा---

हिंदी तो आपनी बोली है इसे

अंतर मन से बहने दो।

रस है उमंग है छंद अलंकार है।

कहती है दुनियां सारी हिंदी 

हिंदुस्तान है।

हिंदी तो अविरल गंगा है इसे

निर्मल निर्झर बहने दो।


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