*लघुकथा* हिंदी भाषा पर गर्व है
*लघुकथा* हिंदी भाषा पर गर्व है
अशरफ बारहवीं का छात्र है, उसे पढ़ाई के साथ-साथ एक जॉब की भी जरूरत है, चूंकि वो बहुत ही ग़रीब घराने से ताल्लुक रखता है, उसके पिता कुछ दिन पहले ही बीमारियों के चलते उसे छोड़ कर इस दुनिया से चले गये, पिता के जाने के बाद मां पर घर की सारी जिम्मेदारी है। अशरफ दो भाई और दो बहन है, घर में अशरफ ही सबसे बड़ा है, मां की सारी तकलीफें देख कर उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, वह चाहता है कि पढ़ाई के साथ-साथ अगर छोटा-मोटा जॉब करेगा, तो उसकी मां के कंधे का भार कुछ हल्का हो जायेगा।
रोहन, अशरफ का बेहद ही क़रीबी दोस्त है, जो अशरफ के हर सुख-दुख में शरीक होता है, अशरफ के बहुत कहने पर रोहन ने अपने ऑफिस में बात की तो रोहन के सर ने कहा कि कल तुम अपने दोस्त को लेकर आ जाना तुम्हारे दोस्त का इंटरव्यू भी ले लेंगे और वो डियूटी भी ज्वाईन कर लेगा। रोहन अशरफ से मिलते ही उसे खुशखबरी सुनाता है कि कल मेरे साथ चलना तुम्हारा इंटरव्यू है, समझो तुम्हारी नौकरी पक्की है। दूसरे दिन दोनों दोस्त एक साथ ऑफिस के लिए रवाना होते हैं, वहाँ पहुँचते ही रोहन सर से कुछ कह पाता इससे पहले ही अशरफ ने कहा नमस्ते सर अब सर को तो जैसे हिंदी से नफ़रत हो उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा, क्योंकि रोहन के सर जी तो अंग्रेजियत के बहुत बड़े भक्त हैं।
रोहन के ऑफिस में हर शख़्स को चाहे काम कम आता हो पर अंग्रेजी जरूर आनी चाहिये, सर ने अशरफ से अंग्रेजी में दो चार सवाल किये अशरफ ने उन सवालों का जवाब एकदम सही-सही दिया मगर हिन्दी में, उसने अंग्रेजी को तो बिल्कुल ही तरजीह नहीं दिया। अब सर को तो इतना बुरा लगा मानों थप्पड़ मार दिया हो, सर ने तीखे स्वर में कहा तुम्हें तो अंग्रेजी भी नहीं आती तुम यहाँ नौकरी करने के काबिल नहीं हो,
अशरफ ने मधुर स्वर में कहा- सर अगर आप मुझे हिन्दी भाषा बोलने पर जॉब नहीं देना चाहते तो मैं आपसे बेहतर अंग्रेजी बोल सकता हूँ, और हाँ अगर आप हमारी मातृ भाषा हिन्दी को नीचा दिखाने के लिए अंग्रेजियत को तरजीह देते हैं, तो मैं ख़ुद ही यह जॉब नहीं करना चाहूंगा। शायद आपको पता भी है या नहीं?, आज हिन्दी दिवस है, और आप जैसे लोगों की वजह से हमारी मातृ भाषा हिन्दी विलुप्त होती जा रही है।