गुरु नानक : कथनी और करनी
गुरु नानक : कथनी और करनी
जन्म 15 अप्रैल 1469 कार्तिक पूर्णिमा विक्रम संवत् १५२७ राय भोई की तलवंडी (वर्तमान ननकाना साहिब , पंजाब , पाकिस्तान )
मृत्यु 22 सितंबर 1539 करतारपुर
समाधि स्थल : करतारपुर
सक्रिय वर्ष : 1499 से 1539
उत्तराधिकारी : गुरु अंगद देव
पूर्वाधिकारी : जन्म से
धर्म : सनातन धर्म , सिख धर्म की स्थापना
परिजन : मेहता कालू जी , माता तृप्ता जी
गुरू नानक सिखों के प्रथम गुरु (आदि गुरु) हैं। इनके अनुयायी इन्हें गुरुनानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से
संबोधित करते हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी,गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु -सभी के गुण समेटे हुए थे।
परिचय
इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वानइन की जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलिततिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवालीके १५ दिन बाद पड़ती है।इनके पिता का नाम कल्याणचंद या मेहता कालू जी था,माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकरनानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम
नानकी था।
बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपनही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा। ७-८ साल की उम्र में स्कूल छूट गयाक्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापकने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए।तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे।बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहननानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे।
इनका विवाह सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गतलाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। ३२ वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ।दोनों लड़कों के जन्म के उपरांत १५०७ में नानक अपने परिवार काभार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला औररामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिय निकल पडे़।
उदासिया
ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। १५२१ तक इन्होंने तीनयात्राचक्र पूरे किए, जिनमें भारत , अफगानिस्तान , फारस औरअरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं कोपंजाबी में "उदासियाँ" कहा जाता है।
दर्शन
नानक सर्वेश्वरवादी थे। मूर्तिपूजा को उन्होंने निरर्थक माना।रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में वे सदैव तीखे रहे। ईश्वर कासाक्षात्कार, उनके मतानुसार, बाह्य साधनों से नहीं वरन्आंतरिक साधना से संभव है। उनके दर्शन में वैराग्य तो है ही साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नजर डाली है। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्तिपुजा,बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था। लोगों ने तत्कालीन इब्राहीम लोदी से इनकी शिकायत की और ये बहुत दिनों तककैद रहे। अंत में पानीपत की लड़ाई में जब इब्राहीम हारा और बाबर के हाथ में राज्य गया तब इनका छुटकारा हुआ।
मृत्यु
जीवन के अंतिम दिनों में इनकी ख्याति बहुत बढ़ गई और इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। स्वयं विरक्त होकर ये अपने परिवारवर्ग के साथ रहने लगे और दान पुण्य, भंडारा आदि करनेलगे। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई। इसी स्थान पर आश्वन कृष्ण १०, संवत् १५९७ (22 सितंबर 1539 ईस्वी) को इनका परलोकवास हुआ।मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
कवित्व
नानक अच्छे कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकीभाषा "बहता नीर" थी जिसमें फारसी , मुल्तानी , पंजाबी ,सिंधी, खड़ी बोली , अरबी , संस्कृत और ब्रजभाषा के शब्द समागए थे।
