गर्व के क्षण
गर्व के क्षण
,"इतनी मेहनत क्यों करते हो खेतों में पिताजी ?" खेत से लौटे हुए पिता के लिए पानी लाते हुए रश्मि बोली , हाथ मुंह धोते हुए दीनू बोला," मेहनत नहीं करूंगा, तो काम कैसे चलेगा ? तेरा भाई तो साहिबगिरी करता है शहर में, किसी ना किसी को तो मेहनत करनी ही होगी ना ।
'पर पिताजी आप की तबीयत ठीक नहीं रहती, आप तो पहले ही जिगर की बीमारी से परेशान हैं! अब आगे ऐसे कैसे चलेगा ?
मां बोली ,"तू चिंता मत कर, बस तेरी शादी हो जाए और हमें क्या चाहिए ।
पर रश्मि को चैन कहां? रात दिन वह परिवार की उन्नति के बारे में सोचती रहती और मन ही मन योजना बनाती , उन्हें कार्यान्वित करने की कोशिश करती रहती थी।
वह मन में ऐसी योजना बनाती थी कि उसके साथ गांव की आर्थिक तंगी से जूझती हुई अनेक औरतों को भी काम मिल सके और उनके परिवार भी अच्छे से चल सके, उसने अखबार और टीवी के माध्यम से खेती के नए गुर सीखने शुरू कर दिए। वह किसान चौपाल पर अपने मोहल्ले की औरतों के साथ जाती एवं वहां खेती की नई नई विधियां जैसे जीरो टिलेज एवं श्री विधि जैसी खेती की नई-नई विधियों की जानकारी प्राप्त कर पहले खुद सीखती ,फिर अपने सभी बहनों को गांव की सभी औरतों को आय के साधन समझाने की भरसक कोशिश करती ।
पहले तो उसने अपने गांव की कुछ औरतों से बात की , जिनके घरों में गाय भैंस जैसी दुधारू पशु थे और वह दूध बेच कर अपना घर चलाती थी, गरीबी के कारण अपने बच्चों के लिए बहुत कम दूध रखती थी और काफी हद तक बच्चे कुपोषण के शिकार थे ।
रश्मि ने उन्हें राय दी कि तुम दूध का घी बनाकर बेचो, इससे तुम्हें बच्चों को दही और छाछ का पोषण भी मिलेगा और कुछ अतिरिक्त आमदनी होगी ।अगर चाहो तो दही छाछ भी बेच सकते हो।
पहले एक दो ने इस पर अमल किया फिर आपस में उन्होंने बात की और उन्हें इसमें फायदा दिखा तो काफी औरतो ने इस तरह से अपना अपनी आमदनी बढ़ा ली, एवं रश्मि की बहुत तारीफ की।अब रश्मि की हिम्मत बढ़ गई और अब अपनी आगे की योजना के बारे में सोचने लगी। लेकिन रश्मि की मां को उसका घर से अक्सर यूं बाहर रहना पसंद नहीं आता था। वह रश्मि को रोकती रहती ,लेकिन रश्मि उनसे कहती कि मैं चाची और काकी के साथ ही तो हूं आप चिंता मत किया करो।
परंतु रश्मि की मां को तो जैसे उसकी शादी की धुन सवार थी, किंतु पर्याप्त धन के ना होने के कारण दीनू से ज्यादा कह नहीं पाती थी ,एक दिन बेटे को फोन कर जिक्र किया तो जवाब मिला कि शहर में उनका ही खर्चा मुश्किल से पूरा हो पाता है ।
उसने एक दो लड़के देखे भी, पर उन्हें लड़की के साथ पैसा भी चाहिए था, रश्मि यह सब देखती सुनती रहती थी, उसने दुखी मन से बस इतना कहा कि मां मुझे अभी कुछ वक्त दो।
दीनू की पेट दर्द की परेशानी बढ़ती जा रही थी उसने जिगर की बीमारी के कारण ऐसी खाट पकड़ी कि बस उठना बैठना भी मुश्किल से ही हो पाता था ।वह गांव के ही किसी वैद्य से इलाज करा रहा था। और उसे रश्मि के विवाह की चिंता भी सता रही थी।
परन्तु रश्मि भाई भाभी के शहर में रहने के कारण घर और खेत की सारी जिम्मेदारी अपनी महसूस करती थी ।
वह हिम्मत हारने वालों में से नहीं थी और उसने नेट के माध्यम से आधुनिक कृषि के उपकरण, बीज, दवा, खाद आदि के बारे में समुचित जानकारी प्राप्त कर ली और गांव के कुछ जानकार बुजुर्गों की सलाह लेकर गेहूं की जगह चने की फसल उगाने की योजना बनाई,कुछ कामगारों एवं मजदूरों की मदद से वह अपनी खेती का पूरा ध्यान रखने लगी।
यहां पर भी उसने खुद को काम देने के साथ-साथ और भी कई बेसहारा और जरूरतमंद औरतों को काम देने की व्यवस्था की और उसने बाजार में चना ,चने की दाल ना बेचकर औरतों से चक्की पर पिसवा कर शुद्ध बेसन के बड़े पैकेट बनवाएं और नेट के माध्यम से सीधे दुकानदारों से संपर्क बनाकर उनके पास पैकेट बंद माल भेज दिया, इस तरह उसे मंडी से मैं गेहूं, चना ,दाल बेचने से चार- पांच गुना ज्यादा फायदा हुआ ।
उसने अपने साथ काम करने वाले सभी औरतों को उनकी आशा से अधिक पैसे दिए और घर में भी खुशहाली आ गई और पिता का इलाज भी अब अच्छे डॉक्टर से कराया जाने लगा। घर और खेती के हालात पहले से काफी बेहतर होने लगे। दीनू भले ही मेहनत नहीं कर पाता हो परंतु देखभाल के कार्य में वह और उसकी पत्नी अपनी बिटिया का भरपूर सहयोग देते और गांव के प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा की गई उनकी बेटी के प्रति प्रशंसा भरी बातें सुनकर बहुत खुश होते ।
और सोचते कि अच्छा हुआ जो हमने शादी के लिए अपनी बिटिया पर अनावश्यक दबाव नहीं डाला। और यह सोचते वक्त उनकी आंखों में अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य की उम्मीद की किरण जगमगा उठती।
उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था।
