गहरी जड़ें
गहरी जड़ें
जफर आ जाएं तो फैसला कर लिया जाएगा।
जैसे ही असगर भाई कुछ समर्थ हुए, उन्होंने अपना मकान मुस्लिम बहुल इलाकों में बनवा लिया था।
जफर तो नौकरी कर रहा है किन्तु उसने भी कह रखा है कि भाईजान मेरे लिए भी कोई अच्छा सा सस्ता प्लॉट देख रखिएगा।
अब अब्बा को समझाना है कि वे उस भूत-बंगले का मोह त्याग कर चले आएं इसी इब्राहीमपुरा में।
इब्राहीमपुरा ‘मिनी-पाकिस्तान’ कहलाता है।
असगर भाई को यह तो पसंद नहीं कि कोई उन्हें ‘पाकिस्तानी’ कहे किन्तु इब्राहीमपुरा में आकर उन्हें वाकई सुकून हासिल हुआ था। यहां अपनी हुकूमत है। गैर दब के रहते हैं। इत्मीनान से हरेक मजहबी तीज-त्योहारों का लुत्फ उठाया जाता है। रमजान के महीने में क्या छटा दिखती है यहां। पूरे महीने उत्सव का माहौल रहता है। चांद दिखा नहीं कि हंगामा शुरू हो जाता है। ‘तरावीह’ की नमाज़ में भीड़ उमड़ पड़ती है।