Salil Saroj

Drama Fantasy

2.5  

Salil Saroj

Drama Fantasy

फ़रिश्ते

फ़रिश्ते

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"बाबा, वो गली में सब बोल रहे थे कि मेरा धर्म तुम्हारे धर्म से अच्छा है। तुम्हारे धर्म में बर्बरता, धूर्तता और कपट है। तुम्हारे धर्म की नींव ही मक्कारी और अत्याचार पर टिकी है। तुम्हारे धर्म की गलत हरकतों की वजह से दूसरे धर्मों को भी बदनाम किया जाता है।" रहीम सहमी हुई निगाह से अपने बाबा नसीर आलम की गोद में छिपते हुए बोला।

"तुमने कहाँ सुना ये सब ?" नसीर बाबा ने डरी निगाहों से रहीम से पूछा।

जिन बच्चों के साथ मैं खेलता हूँ, उसी में से कुछ ये बातें कर रहे थे। मैं छुप कर सुन रहा था।" रहीम ने बाबा को जोर से पकड़ते हुए कहा।

" बाबा, क्या हमारा धर्म सचमुच इतना बुरा है कि वो इस तरह की बातें करते हैं। क्या हमारे धर्म में कुछ भी अच्छा नहीं? क्या हमारा धर्म इस देश से अलग है?" रहीम के तीखे सवालों ने एक बार नसीर बाबा को भी झकझोड़ कर रख दिया। फिर उन्होंने रहीम के सर पर अपना हाथ फेरा और कहा, " बेटे, हमार धर्म या कोई भी धर्म बुराई नहीं सिखाता। सभी धर्म अमन की वकालत करते हैं। लेकिन कुछ लोग अपने स्वार्थ की खातिर लोगों को बरगलाते हैं और धर्म के नाम पर लोगों को लड़वाते हैं। अगर ऐसे लोगों को सही वक़्त पर रोक लिया जाए तो कोई दंगा-फसाद नहीं होगा। और बेटे हमारे धर्म में मिठास, ख़ुशी, हँसी, तहज़ीब, भाईचारा, मज़ाक सब है। हिन्दू और मुस्लिम इस देश में दाँत काटी रोटी जैसा सम्बन्ध रखते हैं। हमारे ईद की सेवइयाँ वो खाते हैं और उनकी होली में हम रंग जाते हैं। जब भी वक़्त का तकाज़ा हुआ है हमने मिलकर इस देश को आगे बढ़ाने का काम किया है। ज़ाकिर हुसैन, खान अब्दुल गफ्फार खान और अबुल कलाम जैसे अनेकों नामों ने इस देश की शोभा में चार चाँद लगाए हैं। पर कुछ लोग...."

"तो क्या बाबा, लोग समझते नहीं। मैं तो बहुत सारी बातें समझ जाता हूँ अब। मैं तो किसी से झगड़ा नहीं करता। मैं तो सबसे प्यार करता हूँ। ये लोग आपस में बिना झगड़ा किए नहीं रह सकते।" रहीम ने पूरी मासूमियत से पूछा।

" बेटे, तुम अभी पाक साफ़ हो और तुम अभी खुदा के बन्दे हो। लोग जैसे-जैसे बड़े होते हैं, तो वो राजनीतिक तो कभी सामाजिक दवाबों में आकर ऐसी हरकतें करते हैं।" नसीर बाबा ने अपनी बात रहीम को समझाई।

"तो क्या, बाबा ये ऐसा ही चलता रहेगा ?"

"नहीं बेटे, जिस दिन लोग अपने धर्मों को सही ढंग से समझ लेंगे, उसी दिन इस तरह के उत्पात का अंत हो जाएगा"

तभी दरवाजे पर ज़ोर-ज़ोर से धक्के की आवाज़ आने लगी। कुछ लोग चिल्लाकर बोल रहे थे - "अबे, रहीम। कहाँ है तू, बाहर निकल। तुझे पता है तूने क्या किया है?

रहीम और बाबा डर के मारे काँप रहे थे लेकिन नसीर बाबा ने हिम्मत कर के दरवाज़ा खोला।

उधर रहीम चिल्ला रहा था - मुझे मत ले जाओ। मैंने कुछ नहीं किया।

"अबे चुप। जल्दी बाहर आ।" इतने ही देर में कुछ बच्चों ने रहीम को कंधे पर उठा कर घर से बाहर ले आए और घेर कर खड़े हो गए। अभी तक मोहल्ले के कई लोग जमा हो चुके थे। सबकी आँखों में एक ही सवाल था कि क्या आज फिर कोई बवाल होगा।

कुछ लोगों ने रहीम से पूछा, "बेटे, तुमने कुछ गलत किया है क्या ? ये लोग तुम्हें इस तरह क्यों ले जा रहे हैं ?"

"नहीं चाचा, नहीं किया" रहीम की आवाज़ शोर में दब गयी।

"भाई ,मैंने क्या जुर्म कर दिया। तुम लोग मुझे ऐसे क्यों लेके आए हो घर से बाहर ?" रहीम ने हिम्मत करके पूछा।

"अबे, तुझे बिलकुल नहीं पता कि तूने क्या किया है ?"

"नहीं, भाई"

"तूने आज शाम के मैच में जिसका विकेट लिया था, पता है वो कौन है ?"

"भाई, गलती हो गई। अगली बार से नहीं लूँगा।"

"अबे, घनचक्कर। वो पूरे जिले का स्टार बैट्समैन है और ये देख उसने खुश होकर तेरे लिए तेरे नाम की टी-शर्ट भेजी है और कल सबको पार्टी पे बुलाया है। अब समझा क्या ?"

अपने नाम की टी शर्ट पाकर रहीम फूला नहीं समा रहा था और अब जाकर लोगों के मन का भय दूर हुआ।

"भाई, मैं तो अलग धर्म का हूँ। मेरे आने से दिक्कत तो नहीं होगी ?"

"अबे , तेरी वजह से हमें पार्टी मिल रही है और तू क्या बात कर रहा है। अपना एक ही धर्म है - खेलो और मस्त रहो। बाकी किसी को फर्क नहीं पड़ता कि हम में से कौन किस मजहब, जात, प्रांत का है। ये सब छोड़ और कल टाइम से आ जाना।"

नसीर बाबा ये सब अपनी बालकनी से देख रहे थे और सोच रहे थे कि बड़े लोग भी ऐसे फ़रिश्ते क्यों नहीं हो जाते ?


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