एक कहानी
एक कहानी
कहते हैं जब हम किसी काम को करने की ठान लेते है, तो वो काम और भी आसान हो जाता है।
ऐसा ही कुछ हुआ मयंक के साथ
मयंक ने अभी अपनी ग्रेजुएशन पूरी ही करी थी और उसे नौकरी के ऑफर मिलने शुरू हो गए। लेकिन मयंक बचपन से ही एक सरकारी अफसर बनना चाहता था। और इसलिए उसने ये फैसला किया कि वो एक साल अपनी तैयारी की देगा। उसके माता पिता भी उससे राजी हो गए थे। बस फिर क्या था, मयंक ने अपनी तैयारी शुरू कर दी । अब उसे बस अपना लक्ष्य दिख रहा था और कुछ नहीं।
एक दिन वो एक किताब खरीदने बाजार गया था। वो बुक स्टॉल पर खड़े होकर किताब देख रहा था तभी उसकी नजर पास खड़े एक छोटे से लड़के पर पड़ी, जिसकी उम्र शायद 5-6 साल के करीब होगी,वो रास्ते में आने वाले हर व्यक्ति से पैसे मांग रहा था।
मयंक ने वो किताब वही रखी और उस लड़के के पास गया उस लड़के ने मयंक से भी कहा,
"भईया,कुछ पैसे दे दो,बहुत भूख लगी है, दो दिन से कुछ नहीं खाया।"
मयंक ये सुनकर थोड़ा असमंजस में पड़ गया क्योंकि उसके पास जो पैसे थे, उनसे वो किताब खरीदने वाला था। लेकिन उसका दिल कह रहा था कि ये पैसे इस लड़के को दे दे। थोड़ी देर तक असमंजस में रहने के बाद उसने उस लड़के से कहा,"तुम मेरे साथ चलो, मै तुम्हे खाना खिलाऊंगा।"
फिर मयंक उस लड़के को पास के एक रेस्टोरेंट में ले गया, और उसे पेट भरकर खाना खिलाया और उसके पैसे मयंक ने खुद दिए। आज मयंक को दिल से अच्छा लग रहा था, लेकिन फिर उसे याद आया कि वो घर पर अब क्या कहेगा? शायद कोई उसकी बात पर भरोसा भी ना करे, लेकिन आज वो खुश था।
मयंक घर जाकर क्या कहेगा,आगे क्या होगा?
ये पता चलेगा कहानी के अगले भाग में।
