अनजान रास्ते : भाग -1
अनजान रास्ते : भाग -1
आज रविवार का दिन था | सुबह का समय था, रवि बहार अपने छोटे से बगीचे में एक कुर्सी पर बैठकर अख़बार पढ़ रहा था | रवि अख़बार में इतना मगन था की उसे पता भी नहीं चला की कब उसकी पत्नी चाय लेकर आ गयी।रवि चाय का कप लेता है, और अपनी पत्नी सुधा से कहता है," अरे सुधा, देखो ये आज कल के बच्चे दिल से कितने कमजोर होते हैं, अरे ! छोटी छोटी बातों पैर कोई आत्महत्या करता है कोई भला."
रवि की पत्नी उससे कहती है," अरे छोड़िए न, आप भी क्या इस अख़बार में लगे रहते हैं, आजकल समय बड़ा ख़राब है, बच्चे भी क्या करें"
"क्या करें मतलब? अरे उन्हें मुश्किलों का सामना करना चाहिए, आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं होता सुधा।" रवि सुधा से कहता है।सुधा विषय को परिवर्तित करने का प्रयास करती है
और रवि से कहती है ," आप ये अख़बार छोड़िए और अंदर आ जाइये, आपके नहाने का पानी गरम हो गया है |"
रवि खामोश हो जाता है और अपना अख़बार वहीं कुर्सी पैर रखकर अंदर चला जाता है।सुधा भी अंदर जा ही रही थी की तभी उसकी नजर अख़बार की एक खबर पर पड़ी, उसने अख़बार उठाया और उस खबर की हैडिंग पढ़ी ' परीक्षा में काम अंक आने से परेशान हो छात्र ने की खुदखुशी '
फिर सुधा की नजर उस छात्र के फोटो पे पढ़ी, वो एकदार हैरान हो गयी, वो फोटो उसके बेटे साकेत का सबसे अच्छा दोस्त मयंक का पहतो था।सुधा ने अखबार वहीँ फैका और दौड़कर अपने बेटे साकेत के कमरे की और दौड़ी।सुधा ने साकेत के कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश करी, लेकिन दरवाज़ा अंदर से बंद था| सुधा परेशान हो गयी, उसकी आँखों के सामने वो अख़बार की खबर घूमने लगी| वो जोर जोर से दरवाज़ा पीटने लगी लेकिन कमरे से लोई उतर नहीं मिला।सुधा की आवाज़ सुनकर रवि भी वहां पहुंच गया| उसने देखा की सुधा और उससे पूछा," क्या हुआ सुधा? "
सुधा ने रवि से कहा," देखिये न, साकेत दरवाज़ा नहीं खोल रहा है, कहीं उसे कुछ हो न। .."
रवि सुधा की बात को बीच में रोकता है और कहता है ," दरवाज़ा नहीं खोल रहा, जरा हटो मुझे देखने दो|"
सुधा पीछे हाथ जाती है और अब रवि दरवाज़ा खटखटाता है," साकेत, बीटा दरवाज़ा खोलो, साकेत |"
तभी दरवाज़ा खुलता है और साकेत बहार आता है. उसका चेहरा थोड़ा उदास था|
रवि साकेत से कहता है ," दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रहे थे, तुम्हारी माँ कितनी परेशान हो गयी थी पता है |"
साकेत जवाब देता है," सॉरी पापा, वो नींद नहीं खुली |"
रवि गुस्से में सुधा से कहता है," लो देख लो अपने लाडले को, 19 साल को हो गया है, लेकिन सोने बैठने का कोई टाइम टेबल ही नहीं है साहब का, जब मन करता है सो जाते है, कॉलेज से घर लेट आते है , जो मन में आता है वो करते है, मुझे दफ्तर के लिए देर हो रही है, तुम संभालो अपने लाल को."
रवि गुस्से से अपने बेटे साकेत की और देखता और और वहां से चला जाता है|
सुधा रवि के सर पैर हाथ फेरती है और बिना कुछ कहे वहां से चली जाती है।
आगे की कहानी जानेगे अगले भाग में, अब तक की कहानी आपको कैसी लगी, अवश्य बताएं
एवं इस भाग को पढ़ने के लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद
