एक दिन ज़िन्दगी का
एक दिन ज़िन्दगी का
बात करीब छब्बीस साल पहले की है मगर आज और ज़िन्दगी के हर लम्हे में मुझे कुछ यूं याद रहती है जैसे मानो बस अभी में इस पल को जी कर आ रहा हूं।बात ज़्यादा ख़ास ना सही मगर मेरे लिए काफी मायने रखती है।
आज की तरह ही मैं उस वक़्त भी होनहार बच्चों की कतार से काफी पीछे था और जैसा कि अब तक होता आया है, अध्यापक महोदय अपने कमजोर स्टूडेंट्स की तरफ ज़्यादा ध्यान देते हैं, हम क्लास में ज़रूर थे मगर हमें पता नहीं था कि क्या पढ़ाया जा रहा है और तभी अचानक अध्यापक महोदय ने हम में से एक को पूछा कि "बताओ फिरोज, इस कहानी से तुमने क्या सीखा?" वो शांत रहा फिर एक के बाद एक चार बच्चे ऐसा ही व्यवहार करते हैं और आख़िर मे मेरा भी नंबर आया वही सवाल मुझे भी पूछा गया और अनायास ही मेरा जवाब ज़बान पर आ गया और मैंने कहा कि " जी किसी को कुछ देना ही सही खुशी है" और हम क्लास में पहली बार वाहवाही बटोर रहे थे। बाद में घर आकर पता चला कि वो कहानी दानवीर कर्ण की थी, मगर उस लम्हे ने मेरे अस्तित्व को इस बात से जोड़ दिया कि ज़िन्दगी में किसी को कुछ देने से कमी नहीं आती मगर एक एहसास जो हमारी रूह को जीने के लिए तालाब देता है ज़रूर मिलता है।