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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

दूसरा प्यार

दूसरा प्यार

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क्या गजब करती हो प्रतिलिपि जी ? हमसे यह पूछकर कि मेरा दूसरा प्यार कौन है ? लगता है कि आज सुबह सुबह ही पिटवाने का प्रोग्राम बना लिया है तुमने । जोर से कह मत देना नहीं तो चकला, बेलन, चिमटा सब टूट जायेंगे और मुझे अभी जाकर नये लाने पड़ेंगे । अभी थोड़े दिन पहले ही तो लाया था । तब दुकानदार पूछ भी रहा था कि भाईसाहब, आप ये चकला बेलन रोटी बनाने के ही काम लेते हो या कोई और काम में भी लेते हो ? एक बार मन तो किया कि कह दूं , "नहीं हम तो इन्हें खाने के काम में लेते हैं । तू भी चाहे तो तू भी खाने आ जाना" । मगर हिम्मत नहीं पड़ी उसे घर बुलाने की । मेरी खाल तो मजबूत हो गई है मगर उस बेचारे की ऐसी थोड़ी है ? 

अभी तो हम पहले प्यार की चोटों से ही उभर नहीं पाये हैं तो दूसरे प्यार के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं ? साला, पहला प्यार ही जी का जंजाल बन गया है । अब तो ऐसा लगता है कि ईश्वर ने हमें बनाया ही क्यों था ? शायद इसीलिए बनाया था कि हम बस "उनकी" सुनते रहें और मुण्डी "हां" में हिलाते रहें । अब तो सरकार , सुप्रीम कोर्ट सब उनके पक्ष में खड़े हैं । हमारे साथ तो हमारी परछाई भी नहीं है । सबसे पहले वह ही गायब हुई थी । हमारी पहचान तो उसी दिन खत्म हो गई थी जिस दिन हमने "शेरनी" से प्यार करने का दुस्साहस कर लिया था । 


भाई लोगों ने बहुत समझाया भी था कि बेटा शादी लड्डू मोतीचूर का होता है , इसे बिखरने में देर नहीं लगती है । पर हम तो "मिठाई के दास" ठहरे । जिद पर अड़ गए कि "मैया ए ही खिलौना लूंगा" और मैया ने वो खिलौना हमारे पल्ले बांध दिया । अब बजाते रहो झुंझुना जिंदगी भर । 


क्या बताएं आपको कि हम झुनझुना बजाते हैं या झुनझुना हमें बजाता है ? शरीर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है जो खटारा गाड़ी की तरह बजता नहीं हो । ऐसा नहीं है कि वह यह काम चोरी छुपे करती है , वह तो पूरे लाव लश्कर के साथ करती है यह काम । कहती है कि हमारे खानदान में तो "बजाने" में महारथ हासिल है , बचपन से ही बजाने का प्रशिक्षण दिया जाता है सबको । तो सब लोग एक से बढकर एक विशेषज्ञ बन गए हैं बजाने में । आज महसूस होता है कि भैया गाने बजाने और बजाने वालों, दोनों से दूर ही रहो इसी में भलाई है, मगर तब तो लड्डू मोतीचूर का "गप्प" से खा गये । अब वह गले की फांस बनकर अटक गया है और आवाज भी नहीं निकालने देता है तो हम क्या करें ? सिवाय गुलाम अली की गजल गाने के 


चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है 

हमको अब तक आशिकी का वो जमाना याद है 


अब तो अगले जनम में ही सोचेंगे कि दूसरा प्यार करें कि नहीं । 



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