दोपहर की घटना और गीता का सार

दोपहर की घटना और गीता का सार

2 mins
1.8K


आज दोपहर डेढ़ बजे के आस पास, बच्चे , हमारी विंग के नीचे की कार पार्किंग में खेल रहे थे। तभी, 7 वर्षीया अदा जैसवाल ने जोर से खुशी में कूदते हुए गैस पाइपलाइन वाली डक्ट को देखते हुए कहा,

"वो देखो सब ऊपर कबूतर के बेबी हैं" ,

इतने में अभिज्ञान, पीहू, अरायना, नीलांशी ने कुर्सी लगाई और बारी बारी से डक्ट में बने छोटे से घोंसले को देखने लगे।

पर वहाँ कोई और भी थी, जिसके बारे में अरायना के पिताजी श्री सोमैया जी ने बच्चों को आगाह किया कि तभी, मेरी भी नजर उन मोहतरमा पर पड़ी।

वो थीं गोल मटोल बड़ी सी कबूतरी।

दुबके हुए अपने बच्चों की बड़ी सी अम्मा। एकदम गम्भीर, मुस्तैद, चाक चौबंद पहरेदार सी। कितने खतरे होते हैं एक भूख के अलावा, सबसे बचाने के लिए चौकस रहती है कबूतरी, लाल आँखें तरेरती।

लेकिन जैसे वहाँ कूद रहे इंसान के बच्चों को उसने एक प्रकार की आज्ञा दे दी थी, "आओ आओ देख लो" वाली प्यारी आज्ञा , वो भी बिना किसी भंगिमा के।

अदा, अरायना बड़े समझदार से सबको चिल्लाने से मना करने लगे, उन्होंने कहा , "अरे मत बोलो ज़ोर से बच्चे मर जायेंगे" ये शायद लड़की होने में आनुवांशिकी गुण आता है।

अभिज्ञान ठहाके लगाने लगा, कहने लगा

"कुछ भी , क्या चिल्लाना सुनने से कोई मर जाते हैं ?"

ये ममत्व पे तर्क था, जिसपे बच्चों ने आगे

"नहीं पर डर गए तो" कर के सहमती कर ली ।

फिर कबूतरी और उसके बच्चों का आनंद चुप चाप लिया।

आदमी में एक खासियत होती है, अन्य प्राणियों के दर्द को समझने की खासियत, ये हमारी प्रजाति के न्यूरॉन में सर्वाधिक पाई जाती है, और ये हमको पृथक करती है;

पशु जगत के अन्य जानवरों से, हमको श्रेष्ठ बनाती है। जब मनुष्य अपनी इस प्रवृत्ति को या कहिये शक्ति को भूलने लगता है तब पड़ती है भगवान की जरूरत ।

किसी का विनाश करने के लिए नहीं होती जरूरत भगवान की वो बस इसीलिए आते हैं हमारे मन में ताकी आदमीयत की ताकत बनी रहे, ताकत बनी रहे प्राण रक्षा की क्योंकि यही हमारे होने का मतलब है ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama