दोगली सोच
दोगली सोच
आकाश...रिया जल्दी से तैयार हो जाओ शादी में जाना है देर हो जायेगी ऐसा ना हो कि शादी के बदले सीधे बिदाई में पहुंचे। तुम्हें तो दो घंटे पहले ही रेडी होने बैठ जाना चाहिए।
रिया...रेडी हूं बाबा दो मिनट बस आई लाईनर लगाकर आ ही रही हूं।
तुम तो अपनी बड़ी बड़ी आंखों से वैसे ही सबको घायल कर देती हो तुम्हें लाईनर लगाने की क्या जरूरत है... आकाश ने चुटकी ली।
अरे आकाश आप भी ना..शर्म से लाल हुई रिया
आकाश...अरे अब इतना भी मत शर्माओ , चलो अब।
रिया...हाँ चलो ।
शादी का माहौल था सबसे मिलना जुलना चल रहा था। आज बहुत सालो बाद रिया अपनी कजिन और बचपन की सहेली उमा से मिली थी बातों का सिलसिला शुरू हुआ।
रिया...अरे उमा कैसी है तू एक अरसा हो गया तुझसे मिलकर आज भी वैसी की वैसी है जैसे कालेज के दिनों में लगती थी।
उमा...कहा यार मै तो फिर भी मोटी हो गई हूं, तू तो आज भी वैसी की वैसी है कौन कहेगा कि एक शादिशुदा बेटी की मां है तू और जल्द ही नानी बनने वाली है। वैसे हमारी प्रिया बेटी कैसी है। ससुराल में सब ठीक है ना। शादी में तो मैं नहीं आ सकी पर उससे कहना बेटा या बेटी जो भी हो उससे मिलने उसकी उमा मौसी जरूर आयेगी।
रिया...हा हा सब अच्छा है और हमारे जमाई सा तो बहुत ध्यान रखते है उसका। सास भी बहुत अच्छी है।
छोड़ इन सब बातों को अब तू ये बता तेरी लाईफ कैसी चल रही है और बच्चे कैसे है वैसे तो तेरे बच्चे भी अब शादी लायक हो गये होगे।
उमा...हाँ मेरी बेटी ने एम बी ए किया है और बेटा सी ए है। बस बेटी के रिश्ते की बात चल रही है और मेरे बेटे मोहित ने तो अपनी जीवनसाथी चुन ली है।
रिया...तो देरी किस बात की है कब न्योता भेज रही हो।
उमा... वैसे मोहित का तो फिक्स ही है। पर श्वेता बड़ी है तो हम चाहते हैं पहले उसकी शादी कर दे।
रिया....तो कैसा लड़का चाहिए हमारी लाडो बिटिया को।
उमा...वैसे तो कुछ खास नहीं पर वह चाहती है कि उसे ससुराल वाले जाॅब करने दे बस और हम भी उसकी बात से सहमत है आखिर एम बी ए किया है।
रिया...हा ये बात तो सही है, और आजकल ये काॅमन है। और वैसे भी आजकल के जमाने में सरवाईव करने के लिए पति पत्नी दोनों का कमाना जरूरी है।
उमा...पर तू तो जानती है ना ऐसा परिवार ढूंढना थोड़ा मुश्किल है जो बहू को जाॅब करने दे बस इसलिए बात अटकी हुई है।
रिया....अच्छा तो बता कौन है वह खुश नसीब जो तेरे घर आंगन को रोशन करने वाली है।
उमा...तू सीमा मौसी को तो जानती ही है ना जो हमारे पड़ोस में रहते थे। उन्हीं के देवर की बेटी है और हा तेरे शहर से ही है।
रिया....अच्छा तुम उनकी बेटी श्रेया की बात कर रही हो। बड़ी होनहार लड़की है मेरी बेटी धारा की बेस्ट फ्रेंड भी है इसलिए घर पर आना जाना लगा रहता है। रसोई हो या पढ़ाई हर कला में निपुण है तेरे तो भाग खिल गये।
और हा तेरे बेटे मोहित की तरह वह भी सी ए है अच्छा है दोनों पति पत्नी साथ में काम कर सकते है।
उमा....हा रिया तेरी सब बात सही है, पर हमने तो पहले ही कंडिशन रख लिया है कि हमारे यहां बहुएं कमाने नही जाती घर संभालती है। और वैसे भी तू तो जानती है मेरे ससुर जी का समाज में कितना नाम है, इज्जत है।
रिया...पर उमा वह तो आॅल इंडिया रैंक होल्डर भी है । आज वह कितनी मेहनत से इस मुकाम पर पहुंची है तो तुझे नहीं लगता उसे काम करना चाहिए।
उमा....मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लगता। तू ही बता हम बहू कि आस करते क्यो है? इसलिए ना कि अब हम थक चुके है वह आयेगी और घर संभालेगी तो हम भी थोड़ा धर्म ध्यान कर लेगे।
रिया....एक बात बोलूं उमा बुरा मत मानना.. हम चाहते हैं समाज अपनी सोच बदले पर समाज बदलेगा कैसे?
जब हम ही नहीं बदलना चाहते हमारी इसी दोगली सोच की वजह से समाज नहीं बदल रहा, क्योंकि हमारी बेटी के लिए हमें ऐसा खानदान चाहिए जो उसे जाॅब पर जाने दे और बेटे के लिए ऐसी लड़की चाहिए जो चाहे कितनी भी पढ़ी लिखी हो घर का चूल्हा चौका संभाले ।अरे यार जरा सोचो समाज को बदलना है तो शुरुआत खुद से करो।
माफ करना मेरी बात कड़वी लगी हो तो।
उमा...नहीं डियर तुमने तो मेरी आंखें खोल दी तुमने सच ही कहा है और सच तो हमेशा कड़वा ही होता है।
...तो क्या लगता है आपको और समाज की इस दोगली सोच पर क्या कहना है आपका? ये कहानी मैंने अपने जीवन की एक घटना से प्रेरित होकर कल्पना के आधार पर लिखी है। समाज के आंख पर बंधी बहू और बेटी के अंतर की इस पट्टी को हटाने के लिए और उनकी दोगली सोच को मिटाने का एक छोटा सा प्रयास अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई या नहीं भी आई तो अपनी राय कमेंट बॉक्स में साझा करें ।
