दो क़दम जीत की ओर....
दो क़दम जीत की ओर....
बात उन दिनों की है जब नीरा स्कूल में पढ़ने जाया करती थी और नीरा को भी लड़कों की तरह स्पोर्ट्स शूज़ पहनना और उन्हें पहन कर रेस में दौड़ना बहुत पसंद था और वो एक धावक बनना चाहती थी। परंतु उसके पिता को यह सब बिल्कुल पसंद ना था जबकि उसकी मां हमेशा उसे प्रोत्साहित करती थी कुछ समय तक तो छुपते-छुपाते वह दौड़ती रही और मेडल जीतती रही परंतु जब उसके पिता को पता चला, तो उन्होंने उसके स्पोर्ट्स शूज फेंक दिए और कहा “यह सब लड़कियों के बस की बात नहीं है” किंतु एक दिन जब उसके पिता को अचानक अस्पताल में भर्ती कराया गया और पैसों की जरूरत हुई तब उसी बेटी ने अपने गोल्ड मेडल बेचकर पैसे जमा किए और अपने पिता की जान बचाई उस दिन उसके पिता को समझ में आया कि मेरी बेटी कितनी योग्य और काबिल है उसके बाद उन्होंने स्वयं अस्पताल से आने के बाद उसे स्पोर्ट्स शूज ला कर दिए और उसके लिए खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।