धर्म

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मैं कड़ाके की ठंड में लखनऊ से अयोध्या के लिए निकला। अभी लखनऊ छूटा भी नहीं था मुश्किल से १० कि.मी. गाड़ी चली होगी की अचानक गाड़ी लहराने लगी।

मेरे वाहन चालक जिनका नाम श्री धर्म यादव है, उन्होंने कार को कुशलता से नियंत्रित किया और किनारे खड़ा करके कार चेक की तो पाया की पिछला चका पंक्चर हो गया है।

संयोग से कार जहाँ पंक्चर हुई उसके ठीक सामने टायर का शो रूम था उन्होंने तुरंत निर्णय लिया और पंक्चर ना बनवाते हुए टायर ही बदलवा दिया।

मैं चुपचाप उनकी कार्यप्रणाली को देखता रहा।

कार जब चली तब मैंने उनसे पूछा की आपने टायर बदल दिया ? पंक्चर बनवा लेते ? या स्टेपनी लगा लेते।

श्री धर्म बोले- भैया ( जी वे पहले दिन से ही मुझे साहब ना कहकर भैया जैसे आत्मीय सम्बोधन से पुकारते हैं जबकि वे मेरे नहीं उस ट्रैवल कम्पनी के ड्राइवर हैं। ) जो टायर चार बार पंक्चर हो जाए उसका पंक्चर जोड़ने का प्रयास ना करते हुए उसे बदल देना ही ठीक रहता है, ख़ासकर तब, जब आपकी यात्रा लम्बी हो। यदि आप उस टायर के मोह में पड़ जाएँगे तो आपको कभी भी धोखा हो सकता है।

फिर अपनी बात को कमाल का दार्शनिक अन्दाज़ देते हुए बोले- यही हमें अपने रिश्तों में करना चाहिए भैया क्योंकि हमारा जीवन भी एक यात्रा है हम लोग कार हैं और हमारे सम्बंधी यार मित्र रिश्तेदार उसके टायर के जैसे होते हैं, बार-बार रूठने वाले हमारे सम्बंधी पंक्चर - टायर के जैसे होते हैं, एक टायर का बीच में फट जाना पूरी गाड़ी को दुर्घटनाग्रस्त कर सकता है। इससे अपनी जीवन यात्रा गड़बड़ा जाती है।

मैं उनका दर्शन सुनकर विस्मय में पड़ गया कि कितनी सटीक बात इन्होंने की जबकि वे मात्र ११ वीं पास हैं किंतु किसी भी पढ़े लिखे व्यक्ति से अधिक शिक्षित हैं।

मेरे मन में अचानक रूपक खड़े हो गए लखनऊ हमारे व्यवहार और संस्कार के जैसा हो गया, अयोध्या जो मेरा गंतव्य थी वह जीवन की आध्यात्मिक चेतना, और उपलब्धियों में बदल गयी। और मुझे लगा की यदि हमारे जीवन रूपी वाहन का ड्राइवर धर्म हो तो वह हमारे जीवन रूपी लहराते हुए वाहन को कुशलता से नियंत्रित कर लेता है, परिणामस्वरूप हमारा जीवन दुर्घटनाग्रस्त नहीं होता, और हम सुरक्षित अपनी उपलब्धियों की मंज़िल तक पहुँच जाते हैं।

धर्म स्वभावगत निर्मोही होता है उसका यही निर्मोह हमारी सुरक्षित यात्रा की गारंटी है।

मुझे लगा की आप सब सदमित्रों से यह अनुभव साझा करना चाहिए जिससे हम सभी धर्मनिष्ठ निर्मोह को धारण करते हुए जीवन को प्रेमपूर्वक बिता सकें, क्योंकि जहाँ धर्म का अभाव हमारे जीवन में मोह की सृष्टि करता है, वहीं धर्म का प्रभाव हमें प्रेमयुक्त करता है।

मोह जहाँ हमें बंधनयुक्त करता है तो प्रेम हमें बंधनमुक्त करता है। मोह हमें अपने सम्बन्धों को पकड़ के रखने के लिए प्रेरित करता है, तो प्रेम हमें अपने स्वजनों से जड़े रहने की क्षमता प्रदान करता है।

इसलिए ना तो अपने स्वजनों से बार-बार रूठिए और ना ही बार-बार रूठने, टूटने वालों को मनाने में अपनी ऊर्जा को नष्ट कीजिए, क्योंकि यह जीवन को आहत ही नहीं हत भी कर सकता है।

अपने मित्रों, सम्बंधियों, स्वजनों को पकड़िए नहीं उनसे जुड़े रहिए।


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