दहेज़
दहेज़
किसी नगर में एक भिखारी अपनी अठारह साल की गूँगी और अपाहिज बेटी के साथ रहता था। वह नगर के बाज़ार में स्थित एक मंदिर के आँगन में बैठकर रोज भीख माँगता था। वह विकलांग था और बूढ़ा भी हो चुका था। वह नित सुबह जल्दी ही मंदिर पहुँच जाता था ताकि कोई और उसकी जगह न ले पाए। उसकी बेटी घर का सारा काम करती थी। उसी नगर के एक प्रतिष्ठित व्यापारी जो एक आभूषण दुकान का मालिक था, रोज दुकान खोलने से पहले मंदिर माथा टेकने आता था। उस व्यापारी की मुलाकात रोज उस बूढ़े भिखारी से होती थी पर एक सामान्य तरीके से।
उन दोनों की मुलाकात तब खास हो गई जब एक दिन वह व्यापारी उस बूढ़े को कुछ देकर आगे बढ़ रहा था तभी बूढ़े ने उसे पीछे से टोका। वो व्यापारी उस दिन काफी खुश था। वापस आकर उसने बूढ़े से उसे टोकने का कारण पूछा तब भिखारी ने अपने फटे कटोरे से कुछ सिक्के उठाकर कहा- "साहब, ये लीजिये आपके बचे रूपये।"
आज आपने मुझे पिछले दिनों के मुकाबले कुछ ज्यादा दान दे दिया है बस पैसे लौटाने हेतु टोका था आपको। व्यापारी ने मुस्कराते हुए भिखारी से कहा- "बाबा, मैं आज मंदिर आकर जितना खुश हुआ हूँ उतना पहले कभी नहीं हुआ। आज आप पूरे पैसे रख लीजिये।
"नहीं साहब, ईश्वर का आशीर्वाद ही मेरा ब्याज है। ये पैसे मैं नहीं लूँगा और वैसे भी आपकी पूजा अभी समाप्त नहीं हुई है। बूढ़े ने धूप जलने वाले कुंड की ओर इशारा करते हुए कहा। उसने उसे याद दिलाया कि वो रोज उस कुंड में धूप जलाया करता है और आज वह भूल गया है।
व्यापारी तुरंत उठा और धूप खरीदने हेतु अपनी जेब को टटोला। जेब में अब सिर्फ बड़े नोट बचे थे। सारे खुल्ले पैसे खर्च हो गए थे। फिर उसने बूढ़े की ओर ताका। बूढ़े की हथेली में वो सिक्के अभी भी चमक रहे थे। व्यापारी ने सिक्के लेकर धूप ख़रीदा और अपनी श्रद्धा पूरी की। वह उस भिखारी का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया और चला गया।
इस तरह दिन बीतने लगे। वो व्यापारी रोज बूढ़े भिखारी से मिलता, हाल समाचार लेता और दान देकर चला जाता पर एक दिन उसने देखा कि वो बूढ़ा भिखारी अपने स्थान पर नहीं था। व्यापारी ने सोचा कि हो सकता है कि वो बीमार हो गया हो। इस तरह कुछ और दिन बीत गए। फिर एक दिन अचानक उसने उस भिखारी के स्थान पर किसी दूसरे भिखारी को भीख माँगते देखा। रोज की तरह वो व्यापारी अपना दान देकर चला गया। छुट्टी वाले दिन व्यापारी सपरिवार कहीं घूमने निकला। पहले वह मंदिर दर्शन के लिए आया। दर्शन के बाद उसने एक नज़र उस स्थान की ओर लगाया जहाँ वो बूढ़ा भिखारी बैठा करता था। उस स्थान पर अभी भी वो दूसरा भिखारी बैठा था। वो उतना बूढ़ा तो नहीं था पर था उम्रदराज। उसकी पत्नी ने उससे उसकी बेचैनी का कारन पूछा, पर उसने कुछ नहीं कहा।
वे लोग अब गाड़ी में बैठ चुके थे। शहर से कुछ दूर जाने के बाद एक चौराहे के पास व्यापारी ने अचानक से गाड़ी रोक दी। उसने देखा कि वो बूढ़ा भिखारी उस चौराहे पर भीख माँग रहा था। वो व्यापारी तुरंत उस बूढ़े के पास गया।
व्यापारी की पत्नी अब अपने पति की बेचैनी को समझ पा रही थी। उसने बड़ी विनम्रता से बूढ़े से पूछा- "बाबा, आप काफी दिनों से मंदिर क्यों नहीं आ रहे थे ?" और वो कौन है जो आपकी जगह लिए हुए है ? मैं अपनी बेटी की शादी में व्यस्त था साहब और आप जिसे मेरी जगह पर बैठा देखते हैं वो कोई और नहीं मेरा दामाद है। उसने दहेज़ स्वरूप मेरी जगह माँगी और मैंने दे दी l बूढ़े ने बड़ी सहजता से उत्तर दिया। व्यापारी करुणा से भर गया और उसकी आँखों से आँसू निकल आये।।