डायरी जून 22
डायरी जून 22
सत्यमेव जयते
डायरी सखि,
बड़ा गजब तमाशा था आज। दिल्ली की सड़कें निहाल हो गई आज तो। एक राजा के कदम चूमने का सौभाग्य आखिर दिल्ली की सड़कों को मिल ही गया। आजकल तो यह सौभाग्य ज्यादातर विदेशी सड़कों को ही नसीब होता है क्योंकि राजा साहब आजकल विदेशों में ही तो रहते हैं। यहां तो कभी कभी घूमने आ जाते हैं या कोई ईवेंट करने के लिए जिससे मीडिया की सुर्खियां मिल सके उन्हें। मीडिया में रहना ज्यादा जरूरी है बजाय लोगों के बीच में रहने के। आज के जमाने में सफल होने के लिए मीडिया मैनेजमेंट बहुत जरूरी है वरना तो पलक झपकते ही मैदान पलट सकता है।
सखि, तुम्हें तो पता है ही कि जब राजा साहब आते हैं तो प्रजा को तो उनकी अगवानी के लिए आना ही पड़ता है। पर आजकल तो प्रजा पर भी भरोसा नहीं है पता नहीं आये या नहीं आये ? इसलिए "पीले चावल" भेजकर उन्हें बुलाना पड़ता है। अभी प्रजा में थोड़ी बहुत आंखों में शर्म बची है इसलिए वह आ भी जाती है। वरना कौन आता है आज के जमाने में किसी के बुलावे पर। लेकिन वफादारी तो रग रग में भरी पड़ी है प्रजा में।
तो राजा साहब की बारात सज गई। "सत्यमेव जयते" के बोर्ड लग गये चारों तरफ । कुछ बैलून भी आसमान में उड़ा दिए बड़े बड़े, जिन पर भी "सत्यमेव जयते" लिखा था। सखि, एक बात समझ में नहीं आई कि ये बड़े बड़े अक्षरों में सत्यमेव जयते किसके लिए लिखवाया गया था ? कुछ लोग बता रहे थे कि राजा साहब के लिए ही ये होर्डिंग लगाये गये थे। उन्हें शायद यह पता नहीं है कि सत्यमेव जयते क्या है ? इसलिए लिखवाया गया था। पर मजा तो तब आया जब एक "चमचे" से पूछ लिया कि यह "सत्यमेव जयते" क्या है ? तो वह तपाक से बोल पड़ा "हिन्दी की एक फिल्म है जो विनोद खन्ना की है "। सखि, उस "चमचे" के इस "विलक्षण" ज्ञान से पूरी प्रजा धन्य धन्य हो गई और आसमान में गगनभेदी नारे गूंज उठे।
"हमारा राजा अमर रहे।
ना सीबीआई का और
ना ई डी का कोई डर रहे"
बड़ी मुश्किल से एक पक्का वाला चमचा राजा साहब को यह समझा पाया कि ई डी और सीबीआई की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह एक राजा को गिरफ्तार कर सके। ऐसी कोई जेल इस देश में बनी ही नहीं कि वे "हुजूर" को उसमें रख सकें। इसलिए आप तो बेधड़क होकर जायें।
प्रजा पागल हो रही थी और राजा "घायल"। "पता नहीं ई डी क्या क्या पूछेगी ? वहां बताने के लिए ना तो कोई चमचा होगा और ना कोई वकील । खुद ही बताना पड़ेगा। व्हाट्सएप पर भी प्रश्न नहीं भेज सकते। अब कैसे करें ? जान आफत में फंसा दी सालों ने। इसलिए पक्के वाले को बुलाकर कह दिया कि "जमकर बवाल काटो। क्या पता बिना जवाब दिए ही काम चल जाये"। इसलिए सब लोग अपनी "वफादारी" दिखाने के लिए खूब बवाल काटने लगे।
मगर ई डी वाले भी पक्के वाले ही निकले। जरा भी टस से मस नहीं हुए। उनका कहना है कि "जब आप सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल रहे हैं तो फिर जांच से क्या घबराना" ? अब राजा साहब ये कैसे बताएं कि "सत्य और अहिंसा तो लोगों को बरगलाने के लिए प्रयोग करते हैं। खुद कभी इसका प्रयोग नहीं करते हैं। इसलिए उन्हें सब पता है कि आखिर में तो उन्हें "वहां" जाना ही होगा। बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी ?
तो अभी पूछताछ चल रही है। सुना है कि लंबी चलेगी। चलनी भी चाहिए । मगर लोग ई डी का लोहा तो मान ही गये ना।