दौड़ प्रतियोगिता
दौड़ प्रतियोगिता
प्रातःकाल का समय था। ठण्डी ठण्डी बयार चल रही थी। सूर्य की किरणें पेड़ों के झुरमुट से होकर तालाब के पानी से परावर्तित होकर जब वापस आ रही थीं तो ऐसा लग रहा था मानो इन्द्रधनुष ने अपने सातों रंगों की सुन्दरता उस तालाब के आसपास बिखेर रखी हो। तालाब के किनारे घास की हरी हरी पत्तियों पर ओस की बूंदें, आसमान में बिखरे हुए तारों की तरह या हरी मखमल पर बिखरे हुए सफेद मोती की तरह चमक रहे थे। उसी घास की कोमल कोमल पत्तियों को खाकर स्वाद लेते हुए दो खरगोश चीकू और मीकू आपस में चर्चा कर रहे थे कि आज नन्दू खरगोश बिल से बाहर नहीं आया। कछुआ से दौड़ हारने के बाद उसे किसी को मुंह दिखाने की हिम्मत नहीं हो रही होगी। चीकू को शरारत सूझी। चीकू और मीकू दोनों उसी तालाब के किनारे आम के पेड़ की खोखली जड़ में बिल बनाकर रह रहे नन्दू खरगोश के पास पहुंचे और चिढाने लगे। क्या नन्दू भैया आप भी न एक कछुए से रेस हार गए। कई और खरगोश भी वहां आ गए। सभी नन्दू का मजाक उड़ाने लगे । कछुए से दौड़ हारकर इसने खरगोश जाति की नाक कटवा दी। नन्दू शर्म के मारे कुछ बोल नहीं पा रहा था। तभी एक बूढा खरगोश ज्ञानी चाचा वहाँ आये। वह सभी खरगोशों को डांटने लगे। नन्दू के बिल में जाकर उन्होंने उसे समझाया कि हर जीव की अपनी अपनी विशेषता होती है। यह प्रतियोगिता सही मायने में प्रतियोगिता ही नहीं थी। सही प्रतियोगिता में प्रतिद्वन्दी सामान होने चाहिए। लेकिन अब भविष्य के लिए जान लो कि लक्ष्य तक पहुँचने से पहले आराम हराम है। अचानक बाहर खरगोशों के चीखने की आवाज आयी,फिर कुत्ते के भौंकने की आवाज के साथ साथ दौड़ने भागने कि सरसराहट भी सुनाई दी। ज्ञानी और नन्दू के कान खड़े हो गए। नन्दू ने झट से बिल के बहार झाँका। उसने देखा शिकारी कुत्ता राका ने चीकू को दौड़ा लिया है। अन्य सभी खरगोश डर के मारे थर थर काँप रहे थे।
अचानक नन्दू ने दौड़ लगायी और राका की दिशा में दौड़ने लगा। उधर चीकू राका कुत्ते से बचने कि पूरी कोशिश कर रहा था,पर राका भी शिकारी कुत्ता था। काफी देर की दौड़ भाग के बाद राका ने चीकू को धर दबोचा। उधर नन्दू ने देखा कि चीकू पकड़ लिया गया है तो वह और तेज दौड़ने लगा,और राका के पास तक पहुँच गया। राका चीकू को अपने मुँह में दबोचे हुए था। नन्दू ने पूरी ताकत के साथ राका के मुँह पर टक्कर मारी। एक ही टक्कर में राका के मुँह से चीकू दूर जा गिरा। राका का सिर भिन्न गया। राका के मुँह से छूटते ही चीकू दौड़ कर झाड़ियों में छिप गया। अब राका ने नन्दू को पकड़ने के लिए झपट्टा मारा। नन्दू मारता हुआ दौड़ने लगा। अब आगे आगे नन्दू खरगोश और पीछे पीछे राका कुत्ता।
खूब दौड़ भाग होने लगी। नन्दू सीधे घनी झाड़ियों की तरफ दौड़ा चला जा रहा था । उसे मालूम था कि एक बार उन झाड़ियों तक पहुँच जाये तो उसे कोई खतरा नहीं,क्योंकि उन झाड़ियों में ज्ञानी चाचा ने एक सुरंग बना रखी थी जो जमीन के अन्दर अन्दर उस तालाब के पास तक पहुँचती थी। नन्दू ने पूरी ताकत लगा दी और दौड़ कर झाड़ियों तक पहुँच गया और उसी बिल में पहुँच गया जहाँ वह सुरंग थी । राका अपना सा मुँह लेकर धीरे धीरे एक तरफ को चला गया। संध्या समय सारे खरगोश उसी तालाब के किनारे एकत्र हुए। चीकू ने हाथ जोड़कर नन्दू को उसकी जन बचाने के लिए धन्यवाद किया और अपने द्वारा किये गए सवेरे के उस व्यवहार के लिए क्षमा भी माँगी। सब खरगोश सवेरे किये गए अपने अपने व्यवहार के लिए पश्चाताप कर रहे थे।तभी मीकू खरगोश ने कहा उधर देखो कोई दो व्यक्ति इधर आ रहे हैं। सारे खरगोश घनी घास में छिप गए। दो मछुआरे उस तालाब तक आये, उन्होंने पानी में जाल फेंका और खींचा। उनके जाल में कुछ मछलियाँ और दो कछुए फंस गए। उनमे से एक मछुआरे ने कहा कि हमें तो सिर्फ मछलियाँ ही चाहिये, तब दूसरे ने कहा कि आज एक व्यक्ति ने कछुआ ही लाने की मांग की है इनके बदले में हमें बहुत सारा धन मिलेगा। इतना कहकर उसने एक थैले में मछलियाँ डाल लीं तथा दूसरे थैले में कछुए डाल लिये एवं अपना जाल समेट कर दोनों चले गये । सभी खरगोश छिपकर यह सब देख रहे थे।
मछुआरों के जाने के बाद ज्ञानी चाचा ने सभी खरगोशों को अपने पास बुलाया और कहा कि कछुआ दौड़ तो जीत गया लेकिन ऐसी रेस जीतने से क्या फायदा जो अपने जीवन की रक्षा भी न कर सके । ज्ञानी चाचा की आँखों में आँसू आ गये उन्होंने नन्दू कि पीठ थपथपाई और सभी खरगोशों से कहा- अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। तुम आपस में अपना मुखिया चुन सकते हो। सभी ने सर्वसम्मति से नन्दू को अपना मुखिया चुन लिया तथा एक स्वर में जोर से नारा लगाया –नन्दू मुखिया जिंदाबाद, नन्दू मुखिया जिंदाबाद।
