चुनाव प्रचार और धनिया
चुनाव प्रचार और धनिया
चुनाव का प्रचार अभियान जोड़ों पर है, हर प्रतिनिधि अपने को आम जनता बताकर उनका विश्वास जितने का भरषक कोशिश कर रहे हैं, पर जनता यह सोच रही है क्यों मैं इसे अपना प्रतिनिधि बनाऊं। क्या यह मेरे देश के लिए काम करेगा, क्या हुआ था पिछले चुनाव में ? पहले भी तो कुछ आज के तरह बोल रहे थे, लेकिन क्या हुआ चुनाव के बाद ये नजर ही नहीं आये ओर एक-दो बार नजर भी आये तो हमारे लिए सिर्फ हाथ हवा में लहरा दिए। और आज देखो तो ये हर चौक - चौराहे, नुक्कड़ पर नजर आने लगे। हाथ में हाथ डालकर चलने का वादा करने लगे। रैलियां निकालने लगे।
हाँ, रैलियां की बात से याद आया, की कैसे हम घरों से सत्तू बांधकर बस-रेलगाड़ी में सफरकर इनकी रैली में पहुंचते हैं। चिल-चिलाती धुप में कई घंटों भूखे - प्यासे रहकर नेताओं आने का इंतज़ार करते - करते गाला सूखने लगता है, मैं पानी के लिए चापकल ढूंडते-ढूंडते जब पहुँचता हूँ, तो वहां भी हमारी संख्या इतनी है कि बड़ी मशक्कत के बाद दो घूंट पानी मिलपाती है।
खैर छोडों अब आते हैं मुद्दे की बात पर, हाँ तो घंटों इंतज़ार करने के बाद नेता लोग हेलीकाप्टर या वातानुकूलित गाड़ी में आते हैं और रट - रटाया भाषण देकर, अपने आप को आम जनता बताकर निकल लेते हैं। और हम फिर वही ट्रेन, बस या पैदल ही घर निकल पड़ते हैं। यहाँ भी हमारी संख्या इतनी है की बाथरूम में खड़े रहकर, पायदान पर लटकर,छतों पर बैठकर जाते हैं।
खैर मैं भी ट्रैन में किसी तरह पायदान पर लटक जाता हूँ। ट्रैन छुक-छुक करते हुए एक हाईवे के पास से गुजर रहा है तभी नेताजी जिंदाबाद मेरी ध्यान अपनी ओर खींचती है। जब मैं देखा तो नेताजी वतानिकुलित गाड़ी से हवा हाथ लहराते हुए, बगल वाले हाइवे से जा रहे हैं। और हम नेताजी जिंदाबाद - नेताजी जिंदाबाद का रट लगाए हुए हैं। उधर नेताजी हाथ फहराते हुए शायद अपने बगल में बैठे साथी से कह रहे हैं, देखो तो कैसे ये अनपढ़- गवांर लोग लटक कर जा रहे हैं। खैर हम तो आदि हैं इस बात की।
(धनिया की एंट्री )
जैसे-तैसे लटके-झटके मैं देर शाम/रात घर पहुंचता हूँ। और धनिया कि ताने-बाने चालू - लो आय गेले कमाय के, कि देलक नेताजी ने ? कोई साग-सब्जी नय छै घर में, बच्चा कानय(रो) रहे खायले, सोनी के माय से चावल लेके माड़-सटका(चावल माड़ के साथ) बानाय के खिला देलिए।
अच्छा ठीक है कहकर मैं आराम करने चला गया और सोचने लगा मैं गया क्यूँ रैली में, मेरी समझ में नहीं आ रहा था मैं गया क्यूँ रैली में, बार-बार यही सोचे जा रहा था गया क्यूँ ? और आँखें लग गयी। धनिया कि आवाज से अचानक से नींद खुली, शायद खाने कह रही थी, सत्तू की थैला यूँ देखकर बोली अरे सतुओ राखल छै, एकर मतलब दिनो में नय खल्के, जल्दी चलु खाय ले।
खाना खाने के बाद जब सोने लगे तो धनिया पूछने लगी, नेताजी कि सब बोल लय, कि ई नेताजी देश के लिये ठीक छै, कि इ नेता हमरा सब के लिए काम करते... आदि जैसे कई सावल एक ही साँस में पूछ डाली। मैं झुंझलाकर बोला सो जा, बड़ी आयी देश के लिये सोचने वाली। और वो चुपचाप दुसरे और करवट लेकर सो गयी। मैं सोचने लगा,जब मेरी धनिया देश के बारे में सोच रही है तो क्या नेताजी नहीं सोचेंगे। चलो एकबार इन्हें भी आजमाते हैं कई मौकों से तो आज़मा ही रहे हैं, एक बार ओर सही। और एक बार पुनः रैली,भीड़ वाली दृशय आँखों के सामने से गुजरने लगी। मैं ट्रेनों में लटका, नेता जी का ए.सी. गाड़ी में बैठे हाथ लहराते हुए और कुछ बुदबुदाते हुए दृश्य। ना जाने कब मेरी आँख लग गई।
