चर्चा: मास्टर & मार्गारीटा 9

चर्चा: मास्टर & मार्गारीटा 9

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तो, मॉस्को में वोलान्द की गतिविधियाँ आरम्भ हो चुकी हैं। सबसे पहले उसने सादोवाया स्ट्रीट पर बिल्डिंग नं। 302 के फ्लैट नं। 50 में अपना डेरा जमा लिया जहाँ स्वर्गीय बेर्लिओज़ स्त्योपा के साथ रहता था।

वोलान्द और उसकी मण्डली इस फ्लैट में तीन दिनों तक रहते हैं और हम देखेंगे कि वे क्या-क्या करते हैं; मॉस्को को किस प्रकार अपनी उपस्थिति का एहसास कराते हैं।

चलिए, देखते हैं कि बेर्लिओज़ की मृत्यु के दूसरे दिन क्या-क्या हुआ-

स्त्योपा को याल्टा फेंक दिया जाता है;

इवान की सोच में परिवर्तन का प्रारम्भ हो जाता है।

यह सब सुबह के करीब बारह बजे होता है।

बिल्डिंग नं। 302 में क्या होता है ?

बिल्डिंग नं। 302 की हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेण्ट निकानोर इवानोविच बासोय बुधवार और गुरुवार के बीच की रात को काफी व्यस्त थे। करीब आधी रात को बिल्डिंग नं। 302 में एक कमिटी आती है, जिसमें झेल्दीबिन भी था जो बेर्लिओज़ के स्थान पर मासोलित (MASSOLIT) का प्रेसिडेण्ट बनने वाला था। वे निकानोर इवानोविच को बेर्लिओज़ की मृत्यु की सूचना देते हैं। उसके कागज़ात एवम् अन्य चीज़ों को सील कर दिया जाता है, वे दो कमरे भी, जिनमें बेर्लिओज़ रहता था, सील कर दिए जाते हैं। बेर्लिओज़ की मृत्यु का समाचार आग की तरह फैल जाता है। हर कोई इस मौके का फ़ायदा उठाना चाहता है। हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेण्ट के दफ़्तर में इन दो कमरों को प्राप्त करने के लिए अर्ज़ियों का ताँता लग गया। यहाँ हमें यह पता चलता है कि उपन्यास का घटनाक्रम बुधवार को आरम्भ हुआ है – बेर्लिओज़ मर जाता है; इवान को स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में भेज दिया जाता है। गुरुवार की सुबह स्त्योपा लिखोदेयेव फ्लैट नं। 50 से बाहर फेंक दिया जाता है और आँख खुलते ही वह स्वयम् को याल्टा में पाता है।

निकानोर इवानोविच की ओर चलें।

निकानोर इवानोविच को फ्लैट नं। 50 के लिए जो अर्ज़ियाँ प्राप्त हुई हैं उनसे पाठकों को पता चलता है कि सामूहिक आवास-गृहों में लोग किस तरह रहते थे और एक अच्छी जगह पाने के लिए वे क्या कुछ करने को तैयार थे- बेर्लिओज़ की मृत्यु का समाचार पूरी इमारत में अद्भुत तेज़ी से फैल गया। गुरुवार सुबह सात बजे से ही बासोय के टेलिफोन की घण्टी बार-बार बजने लगी। लोग स्वयँ दरख़्वास्त लेकर आने लगे, यह साबित करने के लिए कि मृतक के रिहायशी मकान पर उन्हीं का हक है। दो घण्टों के भीतर निकानोर इवानोविच के पास ऐसी 32 अर्ज़ियाँ आ गईं।

इन अर्ज़ियों में क्या कुछ नहीं लिखा था - प्रार्थना थी, धमकी थी, शर्तें थीं, लालच था, अपने खर्चे से मरम्मत कराने की बात थी, जगह की कमी का शिकवा था और लुटेरों के बीच एक ही घर में रहने की लाचारी तथा उससे जुड़ी असमर्थता थी। इन अर्ज़ियों में आँखों में आँसू लाने वाला वर्णन था - कोट की जेबों से पैसे चोरी होने का फ्लैट नं। 31 में, फ्लैट न मिलने की सूरत में दो व्यक्तियों द्वारा आत्महत्या कर लेने का वादा और एक नाजायज़ रूप से गर्भ ठहरने की स्वीकृति भी। निकानोर इवानोविच को उसके फ्लैट के बाहरी कमरे में बुलाया गया, उसकी बाँह पकड़कर फुसफुसाहट के स्वर में, आँख मारकर यह वादा किया गया कि वह अपने विभिन्न कर्ज़ों से मुक्त हो जाएगा। यह मानसिक यातना दिन के लगभग एक बजे तक चलती रही, जब निकानोर इवानोविच अपना फ्लैट छोड़कर हाउसिंग सोसाइटी के दफ़्तर भाग गया। मगर जब उसने देखा कि वहाँ भी उसकी ताक में लोग खड़े हैं, तो वह वहाँ से भी भाग गया; किसी तरह पीछा करने वालों से जान बचाकर, जो सीमेंट के आँगन में उसका पीछा कर रहे थे, वह छठे प्रवेश द्वार में छिप गया और लिफ्ट से पाँचवीं मंज़िल पर पहुँचा, जहाँ यह अभिशप्त फ्लैट नं। 302 स्थित था। आवास समस्या के बारे में ग्रिबोयेदोव भवन वाले अध्याय में भी काफी कुछ लिखा गया है।आगे भी कई बार इसके बारे में आप पढेंगे।

मगर जैसे ही निकानोर इवानोविच आधिकारिक भाव से ताला खोलकर भीतर पहुँचता है मृतक की लिखने की मेज़ पर टूटे काँच वाली ऐनक और चौख़ाने की कमीज़ पहने एक लम्बू को देखकर भौंचक्का रह जाता है।यह वही तो था जो हवा से बनता नज़र आया था और जिसने बेर्लिओज़ को पत्रियार्शी पार्क से बाहर जाने का रास्ता बताया

घुसने को तो वह घुस गया मगर दरवाज़े पर ही विस्फारित नेत्रों से ठहर गया, और तो और, काँपने भी लगा।

मृतक की लिखने की मेज़ पर एक अनजान व्यक्ति बैठा था, चौख़ाने वाला कोट पहने एक लम्बू, जिसने जॉकियों जैसी टोपी पहन रखी थी और डोरी वाला चश्मा लगा रखा था।हाँ, एक शब्द में, वही ।

“आप कौन हैं, श्रीमान?” घबराते हुए निकानोर इवानोविच ने पूछा।

 “ब्बा! निकानोर इवानोविच।” पतली-सी आवाज़ में अकस्मात् प्रकट हुआ नागरिक चिल्लाया और उसने बड़े जोश में अचानक प्रमुख से हाथ मिलाया। इस स्वागत से निकानोर इवानोविच ज़रा भी खुश नहीं हुआ।

 “मैं माफ़ी चाहता हूँ,” वह सन्देह भरी आवाज़ में बोला, “आप कौन? आप क्या कोई शासकीय अधिकारी हैं? 

“ओफ, निकानोर इवानोविच!” अजनबी ने हृदयपूर्वक मुस्कुराकर फिकरा कसा, “शासकीय और अशासकीय क्या होता है? यह तो इस बात पर निर्भर है कि आप किसी वस्तु को किस नज़र से देखते हैं; यह परिस्थितिजन्य और काफी सारी शर्तों पर निर्भर है। आज मैं एक अशासकीय अधिकारी हूँ, और कल, शासकीय! इससे विपरीत भी हो सकता है, निकानोर इवानोविच। और क्या कुछ नहीं हो सकता!”इस तर्क ने हाउसिंग सोसाइटी के प्रमुख को ज़रा भी संतुष्ट नहीं किया। मूल रूप से ही शक्की होने के कारण उसने अन्दाज़ लगाया कि उसके सामने खड़ा बड़बड़ाता हुआ यह व्यक्ति अवश्य ही अशासकीय है, और साथ ही निकम्मा, डींग मारने वाला भी है।

 “आप हैं कौन ? आपका उपनाम क्या है ?” प्रमुख ने संजीदा होते हुए पूछा और वह अजनबी की दिशा में बढ़ने लगा। “मेरा उपनाम।” प्रमुख की संजीदगी से ज़रा भी विचलित हुए बिना उस नागरिक ने कहा, “समझ लीजिए, कोरोव्येव। क्या आप कुछ खाना चाहेंगे, निकानोर इवानोविच? बिना किसी तकल्लुफ के! हाँ?”

 “माफ़ी चाहूँगा,” कुछ अभद्रता के साथ निकानोर इवानोविच ने कहा, “खाना क्या चीज़ है! (मानना पड़ेगा, हालाँकि यह अच्छा नहीं लग रहा, कि निकानोर इवानोविच स्वभाव से ही कुछ असभ्य थे।) मृतक के आधे हिस्से को दबोच लेने की इजाज़त नहीं है! आप यहाँ क्या कर रहे है “आप बैठ तो जाइए, निकानोर इवानोविच, ज़रा भी डरे बिना।” वह नागरिक दहाड़ा और उसने प्रमुख की ओर कुर्सी खिसका दी।निकानोर इवानोविच आपे से बाहर हो गया, उसने कुर्सी एक ओर धकेल दी और ऊँचे स्वर में पूछा, “आप हैं कौन ?”

 “मैं, जैसा कि आप देख रहे हैं, इस फ्लैट में रहने आए विशिष्ठ विदेशी अतिथि का अनुवादक हूँ,” अपने आप को कोरोव्येव कहने वाले उस व्यक्ति ने अपना परिचय दिया और गन्दे जूते की एड़ियों से टकटक करने लगा।     

अब हमें पता चलता है कि उसका नाम है कोरोव्येव और वह शाम को वेरायटी थियेटर में काले जादू का शो करने जा रहे विदेशी का दुभाषिया है। निकानोर इवानोविच को सूचित किया जाता है कि स्त्योपा लिखोदेयेव ने प्रोफेसर वोलान्द (रहस्यमय प्रोफेसर का यही नाम था) एवम् उनकी टीम को एक सप्ताह के लिए अपने फ्लैट में रहने की दावत दी है और निकानोर इवानोविच को इस बारे में पहले ही सूचित किया जा चुका है। अब तो स्त्योपा का इस बारे में निकानोर इवानोविच को लिखा गया पत्र भी उनके ब्रीफ केस में पड़ा मिल जाता है।

निकानोर इवानोविच विदेशियों के ब्यूरो में इस विचित्र विदेशी के बारे में सूचना देता है मगर उसे टॆलिफोन पर बताया जाता है कि उन्हें इस बारे में जानकारी है और उन्हें विदेशी के स्त्योपा फ्लैट में एक सप्ताह के लिए रहने पर कोई आपत्ति नहीं है।

।और आपको तो, निकानोर इवानोविच, काफ़ी फ़ायदा है। पैसों के मामले में वह आगे-पीछे नहीं देखेगा,” कोरोव्येव ने कनखियों से इधर-उधर देखते हुए कहा और फिर प्रमुख के कान में फुसफुसाया, “करोड़पति है!अनुवादक की पेशकश में एक व्यावहारिक अर्थ छुपा हुआ था। प्रस्ताव काफ़ी ठोस था, मगर अनुवादक के कहने का ढंग कुछ कमज़ोर था; कुछ सन्देहास्पद बात थी उसकी बातचीत के लहज़े में, उसकी वेशभूषा में, उसके दयनीय नासपीटे चश्मे में। इसके परिणामस्वरूप कोई अज्ञात भय प्रमुख की आत्मा को दबोचे जा रहा था; मगर फिर भी उसने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने की ठान ली। इसका कारण यह था कि यह सोसाइटी घाटे में चल रही थी। शिशिर ऋतु तक घरों को गरम करने के लिए पेट्रोल ख़रीदना आवश्यक था। उसके लिए क्या कुछ करना पड़ेगा, कुछ ख़बर नहीं। विदेशी के पैसों से यह काम आसानी से हो जाएगा और काफ़ी कुछ बच भी जाएगा। मगर चतुर और सावधान प्रकृति के निकानोर इवानोविच ने कहा कि पहले उसे इस विषय पर विदेशी ब्यूरो में बात करनी “मैं समझ सकता हूँ!” कोरोव्येव चहका, “बिना बात किए कैसे? करना ही पड़ेगा, यह रहा टेलिफोन, निकानोर इवानोविच, शीघ्र ही बात कर लीजिए! पैसों के बारे में फिकर न कीजिए,” 

उसने प्रमुख को सामने के कमरे में रखे टेलिफोन की ओर ले जाते हुए फुसफुसाहट के साथ कहा, “उससे नहीं तो किससे लेंगे! काश, आपने देखा होता कि नीत्से में उसका कितना शानदार बंगला है! अगली गर्मियों में, जब आप विदेश जाएँ, तो ज़रूर देखने जाइएगा – हैरान हो जाएँगे!विदेशी ब्यूरो का काम टेलिफोन पर ही अप्रत्याशित और प्रमुख को विस्मित करने वाली तेज़ी से हो गया। यह पता चला कि वहाँ पहले ही वोलान्द महाशय के लिखोदेयेव के फ्लैट में रहने के इरादे की जानकारी है और उन्हें कोई आपत्ति भी नहीं है। “सुन्दर, अति सुन्दर !” कोरोव्येव ख़ुशी से चिल्लाया।

उसकी इस प्रसन्नता से थोड़ा घबराकर प्रमुख ने कहा कि हाउसिंग सोसाइटी एक सप्ताह के लिए फ्लैट नं। 50 कलाकार वोलान्द को किराए पर देने के लिए तैयार है। किराया होगा।निकानोर इवानोविच ने कुछ सोचकर कहा, “500 रुबल्स प्रतिदिन।”अब कोरोव्येव ने पूरी तरह प्रमुख को चित कर दिया। चोरों की तरह आँख मारते हुए उसने शयनकक्ष की ओर देखा, जहाँ से भारी बिल्ले की हलके कदमों की आवाज़ आ रही थी, वह सीटी बजाती-सी आवाज़ में बोला, “मतलब, एक सप्ताह के लिए – 3500?”

निकानोर इवानोविच ने सोचा कि अब वह कहेगा, “कितने लालची हैं आप, निकानोर इवानोविच!” मगर कोरोव्येव ने एकदम दूसरी बात कही,” यह भी कोई रकम है! पाँच माँगिए, वह देगा।”

विस्मित, भौंचक्का निकानोर इवानोविच समझ ही नहीं पाया कि वह कैसे मृतक के लिखने की मेज़ तक पहुँचा, जहाँ कोरोव्येव ने बड़ी फुर्ती और सहजता से इस अनुबन्ध की दो प्रतियाँ तैयार कीं। तत्पश्चात् वह मानो हवा में तैरते हुए उन्हें लेकर शयन-कक्ष में गया और वापस आया; दोनों प्रतियों पर विदेशी के हस्ताक्षर थे। प्रमुख ने भी अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए। कोरोव्येव ने रसीद माँगी पाँच।। “बड़े अक्षरों में, बड़े अक्षरों में, निकानोर इवानोविच!।हज़ार रुबल्स।” और वह बड़े हल्के-फुल्के अन्दाज़ में बोला, “एक, दो, तीन।” और उसने पाँच नए-नए नोटों की गड्डियाँ प्रमुख की ओर बढ़ा, नोटों को गिना गया कोरोव्येव के मज़ाकों और फिकरों के बीच, जैसे कि ‘पैसों को गिनती पसन्द है’,‘अपनी आँख – सच्चा पैमाना’ इत्यादि।

निकानोर इवानोविच को इस एक सप्ताह के लिए किराया दिया जाता है, और करकराते रुबल्स का एक बण्डल भी उसकी ‘सेवाओं’ के लिए पेश किया जाता है, जिसे वह इस बात का पूरा इत्मीनान लेने के बाद रख लेता है कि इस लेन-देन के कोई गवाह नहीं हैं-

पैसों को गिनने के बाद प्रमुख ने कोरोव्येव से अपने कागज़ात में दर्ज करने के लिए विदेशी का पासपोर्ट लिया, तत्पश्चात् पासपोर्ट, पैसे तथा अनुबन्ध ब्रीफकेस में रखने के बाद वह कुछ देर मँडराया और शर्माते हुए कुछ टिकट माँगने लगा। “क्या बात है!” कोरोव्येव चीखा, “आपको कितने टिकट चाहिए, निकानोर इवानोविच, बारह, पन्द्रह ?”

विस्मित प्रमुख ने स्पष्ट किया कि उसे केवल दो टिकट चाहिए, एक अपने लिए और एक अपनी पत्नी, पेलागेया अंतोनोव्ना के लिए।

कोरोव्येव ने उसी समय एक नोटबुक निकाली और एक कागज़ पर दो व्यक्तियों के लिए पहली पंक्ति में दो सीटों के लिए एक पुर्जा लिखकर दिया। वह कागज़ अनुवादक ने दाहिने हाथ से, हौले से निकानोर इवानोविच के हाथ में ठूँसा और बाएँ हाथ से प्रमुख के दूसरे हाथ में करकराते करारे नोटों का मोटा-सा बण्डल थमा दिया। जैसे ही उस पर नज़र पड़ी निकानोर इवानोविच लाल हो गया और उसे अपने से दूर हटाने ल “ऐसा नहीं होता,” वह बड़बड़ाया “मैं कुछ सुनना नहीं चाहता,” कोरोव्येव बिल्कुल उसके कान में फुसफुसाया, “हमारे यहाँ नहीं होता, विदेशों में होता है। आप उसका अपमान कर रहे हैं, निकानोर इवानोविच, यह अच्छी बात नहीं है। आपने काम किया है।”

 “बड़ी कड़ी जाँच और सज़ा होगी,” बड़े हौले से प्रमुख ने कहा और कनखियों से इधर-उधर दे “और गवाह कहाँ हैं ?” दूसरे कान में कोरोव्येव फुसफुसाया, “मैं आपसे पूछता हूं, कहाँ हैं वे ? आप भी क्या बात करते हैं !”                                              

और तब, जैसा कि बाद में प्रमुख ने स्पष्ट किया, एक आश्चर्यजनक घटना घटी। नोटों का यह बण्डल अपने आप ही उसके ब्रीफकेस में घुस गया। तत्पश्चात् प्रमुख कुछ कमज़ोर, कुछ टूटा हुआ-सा सीढ़ियों पर आ गया। उसके मस्तिष्क में विचारों का बवण्डर छाया था। वहाँ नीत्से वाला बँगला घूम रहा था, और प्रशिक्षित बिल्ला, और यह ख़याल कि वास्तव में कोई गवाह नहीं थे, और यह कि पेलागेया अंतोनोव्ना टिकटें पाकर बड़ी ख़ुश होगी। ये सब बेतरतीब मगर ख़ुशगवार ख़याल थे। मगर फिर भी उसके मन में बहुत गहरे, कहीं कोई एक सुई भी चुभ रही थी। यह बेचैनी की चुभन थी। साथ ही, वहीं सीढ़ियों पर प्रमुख को इस ख़याल ने दबोच लिया कि आख़िर यह अनुवादक अध्ययन-कक्ष में पहुँच कैसे गया, जबकि दरवाज़ा सीलबन्द था! और उसने, निकानोर इवानोविच ने, इस बारे में उससे क्यों कुछ नहीं पूछा ? 

कुछ देर तक प्रमुख साँड की तरह सीढ़ियों की ओर देखता रहा, मगर फिर उसने इस बात को दिमाग से झटकने की ठानी और तय किया कि इन बेसिर-पैर के विचारों से अपने आपको विचलित नहीं ह…

जैसे ही प्रमुख फ्लैट में से बाहर निकला, शयनगृह से एक भारी आवाज़ आई, “मुझे यह निकानोर इवानोविच पसन्द नहीं आया। वह लालची और बेईमान है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वह फिर यहाँ न आए ?” “महोदय, आपके हुक्म की देर है!” कहीं से कोरोव्येव ने जवाब दिया, मगर काँपती, बेसुरी आवाज़ में नहीं, बल्कि स्पष्ट और खनखनाती आवाज़ में।

और तुरंत ही उस पापी अनुवादक ने बाहरी कमरे में आकर टेलिफोन के कुछ नम्बर घुमाकर न जाने क्यों भेदभरी आवाज़ में कहा, “हैलो! मैं यह बताना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ कि सादोवाया रास्ते के 302 बी नम्बर की बिल्डिंग की हाउसिंग सोसाइटी के प्रमुख निकानोर इवानोविच बासोय रिश्वत लेते हैं। इस क्षण उनके 35 नम्बर के फ्लैट के शौचालय के वातायन में अख़बारी कागज़ में लिपटे चार सौ डालर्स मौजूद हैं। मैं इसी बिल्डिंग में ग्यारह नम्बर के फ्लैट में रहने वाला तिमोफेई क्वास्त्सोव बोल रहा हूँ। मगर यह विनती है कि मेरा नाम गुप्त ही रखा जाए। मुझे डर है कि प्रमुख मुझसे बदला लेगऔर उस नीच ने टेलिफोन का चोंगा लटका दिया।

अपने फ्लैट में पहुँचने पर निकानोर इवानोविच नोटों के इस बण्डल को शौचालय के वेंटीलेटर में छुपा देता है, मगर न जाने क्यों और कैसे रुबल्स विदेशी मुद्रा में बदल जाते हैं, कोई गुप्त पुलिस को खबर कर देता है कि निकानोर इवानोविच ने रिश्वत ली है, और उसे विदेशी मुद्रा सहित गिरफ़्तार कर लिया जाता है।

वास्तव में, जैसा कि हमने देखा कि कोरोव्येव ने ही गुप्तचर पुलिस को हाउसिंग कमिटी के सेक्रेटरी तिमोफेई क्वास्त्सोव के नाम से फोन कर दिया था कि निकानोर इवानोविच ने विदेशी मुद्रा के रूप में रिश्वत ली है। निकानोर इवानोविच लाख समझाने की कोशिश करता है कि उसने किराए के रूप में रुबल्स लिए थे।वह उस रहस्यमय प्रोफेसर के साथ किए गए अनुबन्ध को दिखाने के लिए अपना ब्रीफ केस खोलता है, मगर ब्रीफकेस में न तो वह अनुबन्ध था, न प्रोफेसर का पासपोर्ट, न स्त्योपा का ख़त और न ही शाम की शो के वे दो टिकट जो कोरोव्येव ने उसे दिए थे।

यहाँ से मामला काफी उलझने लगता है। कई अविश्वसनीय और जादुई, रहस्यमय और खतरनाक घटनाएँ होने लगती हैं।वे जो किसी न किसी सामाजिक अपराध के दोषी हैं, उन्हें सज़ा मिलती है।जैसे कि स्त्योपा को सज़ा मिली अपनी अयोग्यता तथा सरकारी ओहदे का दुरुपयोग करने के लिए; निकानोर इवानोविच को सज़ा मिली रिश्वत लेने के जुर्म में। दिलचस्प बात यह है कि वोलान्द की मण्डली का हर शिकार चिल्लाता है कि मॉस्को में शैतान घुस गया है।।घटनाओं की कड़ी जो बेर्लिओज़ और इवान बेज़्दोम्नी से शुरू हुई थी उसकी लपेट में अब स्त्योपा, और निकानोर इवानोविच आ चुके हैं।

अगले अध्याय में हम वेरायटी के प्रशासनिक अधिकारियों के बारे में और उनके बीच चल रहे शीत युद्ध के बारे में देखेंगे।


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