छोटी छाती
छोटी छाती
"देखिए अब हम आपकी लड़की को वापस नहीं ले जा सकते।हमारे लड़के को आपकी लड़की पसंद नहीं आयी।वो लड़की है भी कि नहीं हमें तो शक़ हो रहा है।"
"ये आप लोग क्या कह रहे हैं।आप के लड़के और आप लोगों ने पहले भी बहुत बार हमारी लड़की को देखा था।तब तो आप सभी को वो बहुत पसंद आई थी।"
"हाँ! पर अब नहीं आ रही।हमारे लड़के को नहीं पसंद तो हम भी इसे नहीं ले जा सकते।"
"पर क्यों"?
"देखते नहीं, इसके शरीर में कुछ है ही नहीं।और इसकी कितनी छोटी छाती है।"कमरे से आस्था ये सब सुनकर रोये जा रही थी।
क्या वह इतनी बेकार है?कल तक जो आकाश उससे घण्टों फ़ोन पर प्यार भरी बातें करता था वह शादी के बाद दो दिन में ही कैसे बदल गया?क्या औरत का शरीर सिर्फ़ भोग के लिए बना है?क्या सिर्फ़ शरीर का महत्व है आत्मा का नहीं?
कमरे में अभी भी आस्था के माता-पिता ससुराल वालों के आगे गिड़गिड़ा रहे थे।उसके पिता ऐसी बात सुनकर शर्म से ज़मीन में गड़े जा रहे थे।
तभी आस्था तेज़ी से बाहर आयी और उन लोगों को लताड़ते हुए बोली, ' मेरी छाती छोटी नहीं छोटी आपकी सोच है और मेरी छाती चौड़ी है क्योंकि मैं अपने पैरों पर खड़ी हूँ।नौकरी करती हूँ।आपके बेटे की तरह पिता की दुकान को नहीं संभाल रही।मेरा खुद का अस्तित्व है और अब मैं आपके बेटे को छोड़ती हूँ क्योंकि उसकी और आपके परिवार की सोच मुझे पसंद नहीं आयी।अब आप यहाँ से जाते हैं या धक्के देकर भगाऊँ?"
