Sonia Saini

Drama

4.9  

Sonia Saini

Drama

छाँव

छाँव

5 mins
461


लगभग सभी नाते रिश्तेदार औपचारिक शोक प्रकट करके जा चुके थे। अम्मा जी की इकलौती बेटी यानि की हमारी प्यारी ननद रानी भी अम्मा के तीजे के बाद जाने की तैयारी कर रही थी। गुड्डू दीदी को विदा करने के बाद घर सांय सांय बोल रहा था। अम्मा जी की खटिया उनका सामान सब ऐसा लगता मानों एक टक लगाए मुझे ही तक रहा हो। अजीब सा सन्नाटा पसरा था पूरे घर में। मेरे दोनों बेटे भी विदा लेकर अपने अपने देश अपनी संगिनी को लिए निकल पड़े थे। रह-रह कर आँसू आंखों से बरस रहे थे।


जब तक अम्मा थीं कभी समझ ही ना सकी मैं हम दोनों के बीच के एहसास को। उनकी सगी बिटिया से ज्यादा मेरी आँखे बरस रही थीं। मेरे आँसू को देखकर सभी यही समझा रहे थे कि बड़े-बुजुर्गों के जाने का इतना शोक नहीं मनाते। उनकी तो मानों मुक्ति हुई है लेकिन मैं अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी। बड़ा लम्बा साथ था मेरा और अम्मा का। जितने बरस अपनी माँ के साथ नहीं बिताए उससे ज्यादा समय अम्मा की बहू बन कर गुजारे थे। इन 30 बरस में अम्मा के कई रूप देखे मैंने।


18 की ही तो थी जब बहू बन कर इस घर में कदम रखा था। कितनी सख्त थीं अम्मा। सर्दी या गर्मी सुबह 5 बजे उठना पड़ता, नहाकर चौका बर्तन को छूने को मिलता। अम्मा के एक अकेले बेटे की पत्नी बनने की कीमत मुझे हर रोज चुकानी पड़ती थी। अम्मा कोई कमी ना छोड़तीं अपने लल्ला को मेरी गलतियां दिखाने में। उस समय तो नफरत होती थी अम्मा से। मुझे लगता कल की मरती आज मर जाएँ तो पीछा छूटे। लेकिन शायद मेरा बचपना ही था यह, अम्मा के इस व्यवहार के पीछे छिपे कारण को समझने में मुझे बहुत समय लगा। उनका बेटा कही हाथ से निकल कर बहू के पल्लू से ना उलझ जाए इसी डर से वो उल्टी-सीधी सासों वाली हरकत किया करतीं।


अम्मा के मन में कितना स्नेह था मेरे लिए ये अम्मा कभी जाहिर ना होने देती, अगर उस दिन अपने बेटे को दूसरी औरत के साथ रंगे हाथों ना पकड़ा होता। एक पल में सारी ममता ताक पर रखकर मेरे साथ मजबूती से खड़ी हो गई थीं वो। अम्मा के मजबूत इरादे और परिपक्वता ही थी जो इन्हें उस गलत रिश्ते से वापस खींच लायी थी। घर में कदम तक रखने की मनाही थी, अपने इकलौते बेटे की सूरत तक नहीं देखी थी अम्मा ने दो साल।


यूँ ही अम्मा के सानिध्य में वक़्त गुजरा जा रहा था। कुछ खट्टी कुछ मीठी यादों के साथ कि तभी मेरे जीवन में एक भूचाल आ गया। दो जवान बेटों की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ मेरे पति दुनिया को अलविदा कह गये। बड़ा कठिन समय था वह भी। समझ ना आता था अम्मा मुझे दिलासा दें कि मैं अम्मा को। अम्मा ज्यादा बात नहीं करती थीं। लेकिन इनके जाने के बाद से मुझसे अब नर्मी से पेश आती थीं।


अम्मा के आशीर्वाद से दोनों बेटों के हाथ पीले कर दिए थे। दोनों बेटे अपनी पत्नी के साथ दूसरे शहर रहते थे। शादी के बाद जब बेटे बहू को लेकर चले गए तो खुद को बहुत ठगा हुआ महसूस किया था मैंने। मेरी जीवन भर की मेहनत से पाले पोसे जवान कमाऊ बेटे, लगता था मानों मेरे रहे ही नहीं। मेरी आँखो में ही अम्मा ने मेरे एहसास पढ़ लिए थे। आँगन में लगे बूढ़े पेड़ के नीचे बैठी अम्मा ने मुझे बुलाया और पेड़ पर बैठे चिड़िया के जोडे़ की ओर इशारा करते हुए कहने लगीं, "शीला, ये चिड़िया का जोड़ा देख रही है, एक एक तिनका इकट्ठा करके ये अपना घोसला बनाते हैं फिर उसमें चिड़िया अंडे देती है। उन अंडों को कितने दिन तक अपनी गर्मी से सेंतती है, तब जाकर उसमें से बच्चे निकलते हैं। बच्चों को उड़ना सिखाती है यह जानते हुए भी कि एक दिन उसे छोड़ वो नन्हे उड़ जाएंगे, शायद कभी लौट कर ना आने के लिए। फिर भी चिडिया के स्नेह में कमी नहीं आती वो दाना चुग के लाती है बच्चों के मुंह में खिलाती है, कभी सोचा है तूने इतना बड़ा दिल कहाँ से लाती होगी।


बेटा अपने बच्चों की परवारिश करना हमारा कर्तव्य है क्योंकि हमने उनको जन्म दिया है। लेकिन इस डर से कि वो एक दिन उड़ना सीख कर लौट कर नहीं आएँगे उनके पैर में बेड़ियाँ डाल देना उचित है क्या? जो गलती मैंने की तू भी मत दोहराना, उड़ने दे बच्चों को, अपना घोंसला बनाने दे। यही दुनिया का दस्तूर है। किसी को दोष मत दे। भरोसा रख तेरे पंछी लौट कर तेरे घोंसले तक जरूर आएंगे। खुशी-खुशी जीवन में आगे बढ़”


“लेकिन अम्मा मेरा क्या?” मैंने सवाल किया।


“वक़्त आने पर तुझे खुद समझ आएगा इसका जवाब, अब जा एक कप चाय बना ला” मन कुछ हल्का तो हुआ था। अम्मा के आगे ज्यादा बोलने की हिम्मत भी नहीं थी सो बात यही ख़त्म हो गई।


अम्मा के जाने के बाद आंगन में लगा वो बूढ़ा पेड़ भी लगता मानों पहले से कुछ ज्यादा ही झुक गया हो। एक हफ्ते बाद छोटा बेटा मिलने आया, इस बार बहू भी साथ थी। आँगन में पेड़ को देखते हुए कहने लगी मम्मी ये पेड़ इतना बूढ़ा हो गया है झुक गया है इसको कटवा देते हैं। "मुझे करंट सा लगा बहू की बात से, बेटा पेड़ चाहे फल दे या ना दे छाँव तो देता ही है। इस बूढ़े पेड़ की छाँव में अम्मा की, तुम्हारे पापा की ढ़ेरों याद बसी हैं इसको काटने की बात कभी मत करना" मुझे भी जैसे उत्तर मिल गया था अपने प्रश्न का, अम्मा भी तो एक छायादार पेड़ ही थीं उनके जाने के बाद अब छाँव देने की बारी मेरी थी। मैंने इस बार बेटे के साथ चलने की मनुहार को स्वीकार कर लिया था। जिंदगी की धूप और बारिश से अपने परिवार को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी अब मेरी थी।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama