चैकमेट

चैकमेट

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आज सिद्ध (10) और सुहान (8), मेरे घर, यानी अपनी नानी के घर, पूरा दिन बिताने आए।

इतवार का दिन, स्कूल की छुट्टी ! तो चलो भाई नानी के घर की तो रौनक बढ़ गई। दोनों बच्चों के आने से मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा।

सिद्ध ने आते ही केक बनाने की फरमाइश की और सुहान ने टैंग पीने की।

सिद्ध ने केक बनाने में मेरी पूरी मदद की। ओवन में केक को पकने डाल हम बेडरूम में आ गए।

“सिद्ध, सुहान, देखो मेरा बेडरूम कितना अच्छा लग रहा है। पलंग, साइड बोर्ड, दीवार पर टीवी और स्टडी टेबल, सब कुछ कितने अच्छे से फिट हो गया, है न ?”

“हाँ नानी, यह सब हमारे घर से ही तो आया है।”

“बिल्कुल सही, आपके घर रेनोवेशन जो हो रहा है। मेरा एक कमरा खाली था इसलिए आपकी मम्मी ने यह सारा सामान यहाँ भेज दिया।”

पर सुहान के मुख पर दूसरे ही भाव थे।

“क्यों सुहान, आपको अच्छा नहीं लगा ?” मैंने प्यार से पूछा।

सुहान ने अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा, “वह सब तो ठीक है नानी, पर आप प्लीज मेरे घर का सामान वापिस दे दीजिए, मेरे पापा को जमीन पर सोना पड़ता है।”

उसकी बात सुनकर मुझे हँसी आ गई।

इससे पहले कि मैं कुछ बोलती हूँ सिद्ध फटाक से बोल उठा, “सुहान, गंदी बात, ऐसे नहीं बोलते, देखो मैं तुम्हें समझाता हूँ।”

मैं कमरे से बाहर आकर ओट में उनकी बातें सुनने लगी।

सिद्ध कह रहा था, “देखो सुहान, हमारा घर तो नया बन रहा है, यह सारा सामान पुराना था। मम्मी ने तो वैसे भी फेंकना था, तो उन्होंने सोचा चलो नानी को दे देते। हम तो और नया ले लेंगे।”

यह सुनकर तो मेरी हँसी का फुव्वारा छूट गया।

बच्चों की नानी तो पूरी तरह से हो गई, चैकमेट !


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