STORYMIRROR

Rashmi Mansinghani

Drama

3  

Rashmi Mansinghani

Drama

चारपाई

चारपाई

5 mins
1.3K

मेरी नानी की चारपाई उनके लिए बहुत खास थी। बचपन से मैंने हमेशा उस पर साफ सफेद रंग की चादर ही बिछी देखी। मेरी नानी विधवा थी। वह सफेद वेशभूषा ही धारण करती थी। नानी कहा करती थी कभी वह इस चारपाई पर अपने हाथों से कढ़ाई की हुई सुंदर रंगीन चादरें बिछाया करती थी। उस चारपाई पर 'मजाल है ' वो हम पाँचों भाई बहन में से किसी को भी बैठने नहीं देती थी। उस पर बस हमारी माँ बैठ सकती थी। उस चारपाई में उनकी जान बसती थी। जब वह अपने कमरे से बाहर निकलती एक बड़ा सा ताला दरवाजे पर लगाती थी ताकि हम बच्चे उस कमरे में ना जा सके। हम पाँचों भाई बहन इसी ताक में रहते थे कि कभी नानी ताला लगाना भूल गई या उनके कमरे का दरवाजा खुला है और वह कमरे में नहीं है और मौका मिलते ही हम बच्चे कमरे में घुसकर चारपाई पर चढ़कर वो उधम करते खूब मस्ती करते। जैसे ही उन्हें पता चलता वह दूर से ही जोर से चिल्लाती, " उतरो मेरी चारपाई से, निकलो मेरे कमरे से"। पतली सी छड़ी लेकर हमें पकड़ने की कोशिश करती और हम उन्हें चिढ़ाते हुए भाग जाते। नानी हाँफते हुए चारपाई पर बैठ जाती और बड़बड़ती, "आने दो तुम्हारी माँ को शाम को स्कूल से, फिर देखो कैसी शिकायत करती हूँ तुम्हारी।" माँ स्कूल में अध्यापिका थी। सच में उस शाम बहुत डाँट पड़ती और कभी-कभी तो मार भी पड़ जाती थी। मगर इन सब में सबसे ज्यादा दुखी मेरी माँ ही होती थी एक तरफ अपनी माँ को उदास देख कर, दूसरी तरफ अपने बच्चों को डाँट कर। रात में हम नानी से माफी माँग लेते और प्यार से मना भी लेते थे। मगर वह अपनी चारपाई पर बैठने न देती। उनका अपनी चारपाई में बड़ा मोह था। उस शैतानी में बड़ा मजा आता था अंदर से मन फिर से ऐसे ही मौके का इंतजार करता था।

मेरी नानी रोज तुलसी में पानी डालती थी। एक दिन तुलसी में पानी डालते वक्त उनका पैर फिसल गया और वह गिर गई उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और उस दिन जो वह चारपाई पर लेटी उसके बाद उठ न सकी। एक दिन वह हमेशा के लिए हम सब को छोड़ के चली गयी। ऐसा कहा जाता है कि मरे हुए इंसान का सारा सामान गरीबों में बाँट दिया जाता है। मेरी माँ ने भी नानी का सारा सामान बाँट दिया। मगर उनका घर से उस चारपाई को निकालने का बिल्कुल मन न हुआ। बड़ों के कहने पर उसे कमरे से निकालकर खुले बरामदे में रख दिया और वह कमरा मेरी दोनों भाइयों को मिल गया।

खुले बरामदे में बिना साफ सफेद चादर के पड़ी उस चारपाई पर हम जब चाहे बैठ सकते थे, उछल कूद कर सकते थे, लेकिन वो मजा नहीं था, वो बात, वो उल्लास महसूस नहीं होता था। पर हाँ चारपाई पर बैठकर नानी को याद करते हुए उनकी बातें किया करते।

मेरी माँ स्कूल जाते वक्त और वापस आते वक्त रोज पाँच -दस मिनट चारपाई पर बैठती। उनका उनकी माँ की चारपाई के प्रति गहरा लगाव साफ़ दिखता था।

इधर गली में कुछ दिनों से एक बूढ़ी अम्मा रोटी माँगने आने लगी थी। बड़ी डरावनी थी। एकदम काली, बाल पूरे बिखरे हुए और उसके मुंह से हमेशा एक लार सी टपकती रहती थी। उसको देख कर बड़ा डर लगता था। पहले तो नहीं आती थी। वह दरवाजा खटखटाती माँ उसे दो रोटी दे देती। धीरे-धीरे पता नहीं माँ के मन में क्या हुआ वह उस के लिए पूरी थाली निकालने लगी। घर के बाहर चबूतरे पर थाली रखती बूढ़ी अम्मा आती और खाना खाकर खाली थाली वही छोड़ देती। माँ के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून दिखने लगा था। बस काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा।

परंतु एक दिन जब हम स्कूल से वापस आये तो देखा बूढ़ी अम्मा चारपाई पर सो रही है। यह देखकर हमें बहुत गुस्सा आया। उतरो हमारी नानी की चारपाई से और जाओ यहाँ से। वह चुपचाप चली गयी। दूसरे दिन माँ ने उसे खाना देते वक्त प्यार से कहा, " अम्मा, खाना खाकर चली जाना चारपाई पर न लेटना। उसने तब भी कुछ ना कहा। काफी दिनों तक सब ठीक रहा।

फिर एक दिन बाद शाम को स्कूल से वापस आए तो देखा बूढ़ी अम्मा चारपाई पर सो रही थी। माँ ने गुस्से से कहा, "उठ जाओ यहाँ से, यह मेरी माँ की चारपाई है। उसने एक पल माँ को घूरा और चुपचाप बिना कुछ कहे चली गयी। चार-पांच दिन हो गए रोटी लेने भी नहीं आई। माँ चौराहे से स्कूल जाने के लिए बस पकड़ती थी। उस सड़क के एक कोने में माँ ने उसे सोते हुए देखा। माँ ने पास जाकर कहा, "अम्मा चबूतरे पर तुम्हारी थाली रख आई हूँ, जाकर खाना खा लो।"

उस दिन शाम को माँ स्कूल से वापस आयी जैसे उन्होंने उसे चारपाई पर सोते देखा गुस्से से बोली, " तुमसे कहा था न चारपाई पर नहीं सोना, तुम्हें खाना क्या देने लगी तुम तो घर के अंदर घुस गयी हो, उठो और अब यहाँ से जाओ। माँ के चिल्लाने की आवाज सुन मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। बात जानकर कहने लगे शांता बहन जी( माँ का नाम पुकारते हुए) आप ही ने इसकी आदत बिगाड़ी है अरे अम्मा, उठो अब जाओ यहाँ से। मगर वह न सुने और न ही हिले।

अब माँ ने काँपते हाथों से उसे छुआ वह तो एकदम ठंडी पड़ चुकी थी। थोड़ी देर एकदम शांति हो गई। फिर फुसफुस- आहट शुरू हो गई। कोई बोला पुलिस को बुलाना पड़ेगा। तभी माँ ने एक फैसला लिया किसी को भेजकर दुकान पर पिताजी को खबर पहुँचायी और एक सफेद चादर लाने को कहा। पिताजी ने आकर सफेद चादर उस बूढ़ी अम्मा के ऊपर डाली। माँ ने यह फैसला लिया इसी चारपाई पर अम्मा की अर्थी उठेगी। एक कन्धा पिताजी का था अब मोहल्ले में तीन और लोग भी राजी हो गए उसे कंधा देने के लिए। जब वह चारपाई घर से निकल रही थी तब माँ फूट-फूटकर रो रही थी। श्मशान से आकर पिताजी ने बताया उसी चारपाई पर उस बूढ़ी अम्मा को जलाया गया। माँ सकते से नीचे बैठ गयी और सुबक सुबक कर एक ही बात बोल रही थी" माँ तू भी चली गयी और अब तेरी चारपाई भी चली गयी।



Rate this content
Log in

More hindi story from Rashmi Mansinghani

Similar hindi story from Drama