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Neelam Dubey

Comedy

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Neelam Dubey

Comedy

"चाचा चतुर्वेदी"

"चाचा चतुर्वेदी"

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चाचा चतुर्वेदी का पूरा नाम आज पता चला,वो भी तब जब चाचा चतुर्वेदी मंदिर के सामने वाले कुंए से लेकर पचास मीटर दूरी वाले बरगद तक कदम ताल मिलाते हुए जोर जोर से चीख रहे थे, राम राम दोस्तों हम हैं आप के अपने श्री चतुरानन चतुर्वेदी। 

जाने क्या रहस्य था!!  

चाचा के परिचय में क्या बताएं आपको, हमारे गांव "झंझटपुर" में मंदिर के इकलौते पुजारी हैं, पिछले पच्चीस तीस बरस से। हमारे बाबा कहते थे कि बस ना जाने कहां से एक दिन गांव में ये प्रकट हुए फिर यहीं के हो के रह गए।स्वयं को ब्राह्मण बताते थे तो लगा दिए गए गांव के पुरातन मंदिर में पुजारी के तौर पर। बरस पर बरस बढ़ते गए पर चाचा चतुर्वेदी की काया न घटी ना बढ़ी।

एक दम मानिए जस के तस। सांवला रंग,छोटा कद, सर पर बालों का साम्राज्य ना और पनपा न नष्ट हुआ,माथे पर चंदन का लेप, कांधे पर जनेऊ, गेरुआ हाफ कट कुर्ता,घुटने तक चढ़ी धोती, हवाई चप्पल तथा चेहरे पर चतुर मुस्कान सजाए बड़ी तल्लीनता से मंदिर की देख रेख किया करते थे चाचा। गांव का पुरातन मंदिर ही चाचा का घर, एक लोहे का बक्सा चाचा की जागीर और हर एकादशी - पूर्णिमा को मिलने वाला आटा - दाल - चावल चाचा के महीने भर का राशन। जीवन में ना किसी उतार पर अफसोस ना किसी चढ़ाव की इच्छा।चाचा चतुर्वेदी की जिंदगी भगवान के भरोसे बड़ी पर मस्त कट रही थी। पान खाने और चाय पीने की दो लत से ग्रसित थे चाचा और तरीके ऐसे ऐसे अपनाते की बाल गोपाल की प्रतिमा भी मुस्कुराती उनकी चतुराई पर। गांव भर को मन्नत पूरी करने के लिए मंदिर प्रांगण में टेढ़े बरगद के पेड़ को पांच पान चढ़ाने का उपाय बताते,तो सुबह - शाम किसी न किसी के द्वार पर पहुंच गिलास भर चाय पीने के बाद झाड़ - फूंक कर घर की बुरी बला टालते। उनके मंत्रोचारण की कला साधारण मनुष्य के समझ से परे थी। खराश वाली आवाज में जब ऊंचे सुर में भजन अलापते तो आस पास के घरों से दस - पांच श्रोता तो जुट ही जाते।

चाचा का कदम ताल जारी था, जो था हमारी समझ से परे, सो हमारी भी टकटकी जारी थी। तभी फुसफुसाहट सुनाई दी, बुटकी चाची और छुटकी चाची मंदिर की चौखट पर पांच बार मत्था टेकते टेकते बतीया रहीं थीं कि.... जीज्जी बंबई का रंग चढ गवा ई चाचा पर। छुटकी चाची अब सारे भेद से पर्दा उठाने लगीं कि.... जिज्जी प्रधान जी के बड़के भईया बैंकाक से पंद्रह बरस बाद आए हैं पिछले हफ्ते और भाई भतीजन के लाने लाए हेन मोबाइल फोन। अब जीज्जी चाचा ठहरेन भिनभिनात मक्खी,पहुंच गएन। अच्छा....... ई बात।

बड़ी देर से सांस रोक के सुन रहीं बुटकी चाची ने कहा। अरे हां जीज्जी, जानों जबसे ई मुहलौना मोबाइल हाथ लगा है हमरे लल्ला के पापा लाने उधारी में रीचारज होत है इनकर। गांव के छीछोरन के साथे इनकी बड़ी लंबी - लंबी बैठकी चलत है आजकल । लल्ला कहत रहा सब मिली के कछु "बिलोग" बनावत हेन। ऊ का बहिनी?? अब बुटकी चाची की जिज्ञासा भी बढ़ी जा रही थी और काम आ रहा था छुटकी चाची का आठ पास दिमाग । अरे जीज्जी बिलाेग में लोग आपन खात, पियत, उठत्त, बईठत ,घुमत ,चलत ,फिरत, डोलत, सब बात बतावत हैन और पईसा भी मिलत है जो हम जैसन लोग देखैं तो। तबै तो चाचा फैशनाए गएन।

      बुटकी और छुटकी चाची के वार्तालाप ने तो सारी दुविधा ही मिटा दी और दोनों के पीछे हमने भी प्रस्थान किया घर की ओर। तकरीबन महीने भर बाद सतुआन का दान लेकर जब हम मंदिर पहुंचे तो मंदिर से चाचा चतुर्वेदी नदारद। उनके स्थान पर नए पंडित जी पधार चुके थे तथा दान ग्रहण करने में व्यस्त दिखे। मन में हजारों विचार उमड़ पड़े कि आखिर ऐसा कैसे,हुआ क्या, कहीं मोबाइल के चक्कर में सही ढंग से कार्यभार ना संभालने की वजह से निकाला तो नहीं हो गया उनका! अफसोस हो रहा था सो अलग की भाई आखिर जरूरत ही क्या थी सत्तर की उमर में पान और चाय के साथ मोबाइल की लत लगाने की?इतना भी क्या बौराना? अब गए न काम से। इसी उथल पुथल के बीच हमसे टकराईं छुटकी चाची...बिन पूछे मेरा प्रश्न जान के बोलीं गए चाचा...हमने पूछा कहां और कब आयेंगे? बिजली सी चमक कर चमचमाती हँसी के साथ चाची बोलीं अरे..आवेंगे ना रोज शाम पांच बजे लाइव.. केसबुक पर अऊर जूं ट्यूब पर आठ बजे लाइव आरती मा सीधे बैंकाक से। चाचा चतुर्वेदी बिलाग से हीरो बन गएंन ।प्रधान जी के भईया उनका ले के उड़ गएन। यूं लगा सतुआंन के दान का सत्तू हमारे हाथों में पत्थर बन कर जम गया हो और सुन्न पड़े कानों अचानक आवाज गूंज रही हो कि - "राम - राम दोस्तों हम हैं आप के अपने " श्री चतुरानन चतुर्वेदी"।।



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