बीती बात
बीती बात
आज सुबह कुछ जल्दी ही शुरू हो गई थी। सब कुछ जल्दी बाज़ी में हो रहा था। नैना तैयार हो रही थी, समान पैक कर रही थी और न जाने क्या क्या काम एक साथ करने की कोशिश कर रही थी। वो बहुत खुश थी 12 बजे उसकी फ्लाइट है , आज वो पूनम की शादी के लिए उसके घर जाने वाली थी लखनऊ। कुछ छूट न जाए यही सब वो आखरी बार देख रही थी के उसके हाथ अचानक एक कान की चोटी सी बाली लगी , और मानो अचानक से उसकी सारी खुशी सारी एक्साइटमेंट गुम सी हो गई।
वो कान की बाली उसे प्रणय ने दी थी उनकी दूसरी दीवाली पे। और मानो कुछ देर के लिए नैना के आंखों के आगे उसके बीते कुछ 7 साल वापस आ गए जिनसे वो मुश्किल से बाहर निकली थी। वो 5 साल की शादी और उन सालों की कोशिशें और दर्द और उसके बाद खुद को संभालते हुए बीते साल। सब मानो उसने दिल को वापस जकड़ लिया हो।
उसकी भी कभी शादी हुए थी, कभी वो भी दुल्हन बनी थी । हर कोशिश की थी उसने उस शादी में फिर भी वो उसे बचा नहीं पाई। एक हाथ से तो ताली भी नहीं बजती हैं तो शादी कैसे टिक जाती। जैसे आम मौकों पे बोला जाता है कि लड़की को मारा गया , या उसके घर वालों से दहेज मांगा गया या लड़के का कही और संबंध था । पर नैना की शादी में यह सब कुछ भी नई था, इन सब की उसे कोई परेशानी नहीं थी। जिन बातों के बारे में बात नई की जाती है बस वही एक समस्या थी, मेंटल हैरेसमेंट। ना उस शादी में नैना को कभी रिस्पेक्ट मिला ना प्यार । बस मेंटल हैरेसमेंट और रोज अपमान मिलता था । उसे न ही उसके पति का साथ था न इसके ससुराल वालो का वो भी सब यही समझते थे , पति जो भी करे पत्नी को थोड़ा सह लेना चाहिए । सहन शीलता तो बस औरत को ही दिखाना पड़ता है इस समाज में । पति तो गुस्सा कर सकता है कुछ बोल भी सकता है । पर गुस्से में जो भी कहे उसको मन से नहीं लगाना चाहिए , थोड़ा सह लेने से क्या ही फरक पर जायेगा किसी लड़की का । संसार को बांधे रखने को जिम्मेदारी तो लड़कियों को आना चाहिए ।
पर यह सब नैना को समझ नहीं आता था , उसका मानना था जब शादी में दोनों पति पत्नी एक स्थान है तो एक की रिस्पेक्ट दूसरे से कम क्यों, क्यों एक के मान सम्मान को कैसे कोई चोट पहुंचा सकता है और हर बार माफ करना और दुबारा वो ही सब सहना क्या खुद के लिए भी तुम सम्मान खो नहीं रहे। वो रोज उस रिश्ते में तिल तिल कर मर रही थी पर वो किसी को नजर भी नहीं आ रहा था । लोगों को दिखाई भी देता तो क्या बस उसका चिड़चिड़ापन , उसका गुस्सा, उसकी परेशान आंखें , और सामाजिक मौकों पे खामोश बैठे रहना कही दूर। किसी को उसका दर्द, उसकी नम आंखें , उसका उदास चेहरा नहीं दिखता था। किसी ने कभी बैठ कर उसको समझने की कोशिश भी नहीं की।
अपने घर में वो कुछ कह भी नहीं पति थी उसके बूढ़े मां बाप का सोच के। उसके मायके में किसी भी चीज की कमी नहीं थी। वो अपने मां बाप की लाडली थी पर उसके मां बाबा की अब उमर करी हो चुकी थी। वो उनको किसी भी परेशानी में नहीं डालना चाहती थी । कई बार वो सोचती वो अपने घर वापस चली जाए , उसके मां बाप उसे खुशी से अपना भी लेंगे पर क्या वो अपने रिश्तेदारों के सवालों से खुद को बचा पाएंगे , एक जवान लड़की घर में बैठी है और उनके बाद वो क्या करेगी इस चिंता से खुद को संभाल पाएंगे । यही सब सोच नैना कभी अपने घर में कुछ बोल नहीं पाई बस एक सूखी गृहस्थी का ढोंग करती रही।
प्रणय को नैना के होने न होने से कुछ खास फरक नहीं पड़ता था । उसके सारे काम हो जाए तो वो किसी और चीज में ध्यान नहीं देता था। बस समाज में दिखाने को एक बीवी है एक सुंदर घर है । कभी उसका मन है तो कभी घूमने खाने चले जाते थे , सोशल मीडिया पे कोई पोस्ट दाल देता था । उसके पसंद की मूवी जाते थे वो अपडेट कर देता था बस , उसके हिसाब से वो सारी चीजे अपनी पत्नी को दे रहा था वो कोई भी पति कर सकता है । वो आज के ज़माने का होकर भी पार्टनरशिप, कंपेटिबलीटी, कंपनिएंशिप, इमोशनल कनेक्ट, कंपाशीन जैसे शब्दों से कोसो दूर था।
कभी नैना के साथ बैठ कर उसके बारे में बात नहीं की, ना कभी जानने की कोशिश की वो क्या चाहती हैं या सोचती है, उसके पास्ट के किस्से ना कभी जानने चाहे , ना वो नैना के किसी भी दोस्त को जनता था ना जानना चाहता था। उसे लगता था पति का काम एक शादी में सुविधाएं और चीज प्रोवाइड करना है और पत्नी का काम घर और उसे सुख से रखना और संभालना है ।शायद उसने कभी प्यार और सम्मान न समझा हैं न देखा हैं।
बस यूं ही एक दिन नैना को लगा अब बस हो गया वो और अब ऐसे नहीं जी सकती है, उसकी घुटन ना ही उसे बल्कि अब उसके काम और घर वालो पे असर करना शुरू कर चुका था । उसे बस अब अपने लिए एक कदम लेना था । उसे न किसी से कुछ कहा न और बहस की न लड़ाई ना सफाई दी किसको। वो एक वकील से मिली और तलक के पेपर्स अपने पति को दे कर वो घर छोड़ के चली गई।
ससुराल वालों ने बहुत सवाल उठाए, समझ में वो क्या बोलेंगे और अपने घर परिवार की दुहाई देने लगे, कितना मान देते है और नैना की क्या अहमियत हैं यह जताने की कोशिश करने लगे । पर अब नैना अपना मन बना चुकी थीं और न वो पीछे हटने वाली थी ना उसके मायके में कोई उसको बोल भी रहा था, बल्की अब उसे किसी बात का दर न था। पर ab उसके ससुराल वाले कारण जानने को बेचैन थे और सुलह करने की कोशिश करना चाहते थे और अपने बेटे को समझने को भी तैयार थे। क्योंकि अब समझ का उसको दर था , उनको कभी लगा ही नहीं था की नैना तलक ले भी सकती है। उस लिए उन लोगों ने यह शादी को अपने हाल पे छोड़ रखा था। प्रणय को भी कोई ज़्यादा फरक पर रहा ऐसा दिख रहा नहीं था , और जब जिससे रिश्ता है उसी से मोह न रहें तो उससे जुड़े रिश्तों के किसी भी बात का क्या दाम।
अब वो अपने जीवन के ऐसे परावह में है जहां वो समझ चुकी है, खुद खुश नहीं हो तो किसी और को खुशी भी नहीं दे सकते। और जहां सम्मान ना हो वहाँ रेहकर तुम खुद के लिए सम्मान खो रहे हो तो किसी और से उम्मीद भी क्यों।
नैना आईने में खुद को देखती है , आंखों में आंसू तो है पर अब होंठों पे मुस्कुराहट भी है। वो वापस पैकिंग खतम कर एयरपोर्ट के लिए निकल जाती है। अपनी दोस्त की खुशियों में खुश होने और अपने ज़िंदगी के नए रंग ढूंढने।
