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भद्रलोक

भद्रलोक

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वाह ..वाह अनुपमा ! कितनी सुंदर लग रही हो !" सूट बूटेड दादा ने यौवन की दहलीज छूती पोती को अर्धनग्न करती हुई शार्ट ,मिनी स्कर्ट आधुनिक ड्रेस में देखकर प्रसन्नता दिखाते हुए कहा। दादा भद्र पुरुष थे। परिवार पढ़ा लिखा और संम्पन्नता का प्रतिरूप था।

इतनी देर में बहू भी जीन्स- टॉप में बाहर आई, "डेड मैं किटी पार्टी में जा रही हूँ। रामू से बोल दिया है आप खाना खा लेना। मैं लेट हो जाऊँगी।" खूली जुल्फों को झटकते हुए बिना किसी को देखे वो टॉप हिल सेंडिल चटकाते निकल गई।

डेडी ने भी सर हिला दिया।

"मैं महिला मीटिंग में जा रही हूँ। शाम को लेट हो जाऊँगी।"

प्रौढ़ा दादी भी कहाँ पीछे रह जाती। गहरे रंग की लिपिस्टिक लगाये ढेर सारा मेकअप से तैयार होकर आई और खट खट करती ये आई वो गई।

भद्र लोक के सभी भद्र आनंदित महसूस कर रहे थे और भारतीयता सभ्यता घर में पौंछा कर रही थी।


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