भैंस का प्रेम
भैंस का प्रेम
उन दिनों की बात है जब मैं19 वर्ष का ही था। हमारे पास तीन भैंस थी। हम लोग भैंस को चरने के लिए डूंगर पर रखते थे।
वहाँ हमारा एक नोकर रोज शाम को डूंगर पर जाता और सुबह भैंसों का दूध लेकर आता था। भैंसों के बच्चों को घर पर ही रखा जाता था, इस डर से कि वह दूध न पी जावे।
एक दिन नौकर दूध नहीं लाया। पूछने पर उसने बताया कि भैंसों ने दूध नहीं दिया।
पाडे को हेत रही है यानी उसे अपने बच्चे की याद आ रही है। पाडे को पहाड़ पर ले जाना पडे़गा, दूसरे दिन मैं अपने नौकर के साथ पाडे को लेकर डूंगर की तरफ चल पड़े, मैं पाडे की रस्सी पकड़ कर आगे आगे चल रहा था व हमारा नौकर पाडे के पीछे डण्डा हाथ में लेकर चल रहा था, क्योंकि पाडे को धक्का देना पड़ता है उसको आगे खींचने पर भी वह अपने पैर जमा देता है इसी वजह से धक्का देना पड़ता है।
हम निश्चिंत होकर घने जंगल में से गुजर रहे थे कि अचानक ही पाडे ने चलना एकदम बन्द कर दिया। हमारा नौकर बीड़ी पीने मे व्यस्त था। मैंने पीछे मुडकर देखा तो मेरे पसीना आ गया।
मैंने देखा पाडे का एक पैर टाइगर ने पकड़ रखा है। थोडी देर तक तो मैं हतप्रभ रह गया। फिर मैंने हिम्मत कर नौकर को धीरे से आवाज दी- काका पाडे की टांग टाईगर ने पकड़ ली है।
काका ने पीछे मुड़कर देखा और आव देखा न ताव जोर से डण्डा टाईगर की खोपड़ी में मारा। टाईगर अचानक प्रहार से घबरा कर पाडे की टांग छोड़ कर भाग खड़ा हुआ और जंगल की ओर भागता हुआ ओझल हो गया। तब हमारी सांस मे सांस आयी तब हम पुनः अपने रास्ते पर चल पड़े और पाडे को लेकर उसकी मां के पास पहुंचे। वह मां बेटे का मिलन देखते नहीं बन रहा था। अपने बच्चे को दूध पिलाने के बाद भी भैंस ने हमारे लिए भी दूध छोड़ा था।