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Kailash Mathur

Drama

3  

Kailash Mathur

Drama

बाड़ा नम्बर 13

बाड़ा नम्बर 13

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सब चाय पी रहे थे, कुछ लोग ही ऐसे थे जिन्हें चाय नहीं पीनी थी। उनमें से एक मैं भी था, इसलिए मैं जेल के बरामदे में बैठकर कुछ सोच रहा था कि एक लगभग छब्बीस-सत्ताइस वर्ष का नवयुवक मेरे पास आकर बैठ गया और धीरे से मुझसे पूछा कि, सर आप आज चाय क्यों नहीं पी रहे है?


मन नहीं है... मैंने कहा। यहां मन का कोई अर्थ नहीं है, उसने कहा। काफी देर तक चुप रहने के बाद मैंने उसके चेहरे की तरफ ध्यान से देखा उतरा हुआ। निराशा साफ दिखाई दे रही थी। यहाँ लोग बाहर निकलने के बारे में कम सोचते है, जो आसान भी नहीं है।


यहाँ बन्द अपराधी जो अपराधी है या नहीं वो तो न्यायालय के निर्णय पर ही निर्भर करता है केवल इस प्रतीक्षा में रहते है कि किसी अपने का फोन या कोई समाचार या फिर कोई अपना मिलने आ जाये। मैंने उससे कहा कि, आज कोई फोन नहीं आया क्या?


मैं उससे पहले परिचित नहीं था लेकिन वो मेरे बारे में बहुत कुछ जानता था, ऐसा मुझे आभास हुआ। उसने बहुत ही मायूसी से कहा, सर आप फोन की बात कर रहे है! तीन महीने हो गए है कोई अपना रिश्तेदार मिलने भी नहीं आया। फिर थोडी देर रुक कर उसने याचना पूर्ण दृष्टि से मुझे देखा और पूछा, सर मैं यहां से कब तक निकल पाऊगां?


मैने उसके दयनीय चेहरे को देखा आश्चर्य से और कहा, मैं कैसे बता सकता हूँ? उसने बहुतही सहज भाव से कहा, मुझे पता चला है कि आप ज्योतिषि है। मेरा हाथ देखकर या कुछ भी देखकर बताईए ना! जब व्यक्ति संकट में होता है तो निश्चय ही भगवान या फिर ज्योतिषि के पास जाता है। उसे लगता है शायद यहां कुछ सहारा मिल सकता है।


हां, मैं कुछ इस विषय में जानकारी अवश्य रखता हूँ पर मैं स्वयं भी पूर्णतया विश्वस्त नहीं हूं। मैं भविष्य के बारे में जान पाता तो यहाँ क्यों होता? हम ज्योतिषि-मैं अनुमान लगा सकते या बता सकते है, पर निश्चित नहीं। हां निश्चित जो ईश्वर ने सोच रखा है वहीं होता है।


मैंने कहा, तुम कैसे जानते हो कि मैं एक ज्योतिषि हूँ? उत्तर देने के बजाए उसने फिर मिन्नत की, सर बताईये ना। मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया कि कल तुमसे मिलने कोई आयेगा। उसका चेहरा थोड़ासा खिला, क्षण भर में बन्द भी हो गया! बोला, पिता बहुत पहले ही गुजर गए भाई-बहन है नहीं, बस एक निष्ठूर व स्वार्थी सा मामा है।


दूसरे दिन उसका मामा मिलने आया और जमानत सम्बन्धित व कुछ बातें कर सान्त्वना देकर चला गया। वह बहुत ही कृतज्ञता व ऋद्धा भाव लिए हुये मुझे मिलने आया। उसने अपनी पूरी कहानी विस्तार से बताई। वह दोषी नहीं लगा! उसका निर्दोष चेहरा चीख चीख कर कह रहा था कि वह निर्दोष है। वह फफककर फफककर रोया पर मैं तो स्वयं विवश था। कहानी बहुत लम्बी है फिर कभी सुनाउंगा।


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