Priyanshu Mishra

Fantasy Inspirational

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Priyanshu Mishra

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भारत के एक महान सम्राट राजा भरत की कहानी

भारत के एक महान सम्राट राजा भरत की कहानी

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बहुत समय पहले की बात है, भारत के एक महान सम्राट राजा दुष्यंत थे। एक दिन वे वन में शिकार करने गए और वहां उनकी मुलाकात एक सुंदर कन्या शकुंतला से हुई। शकुंतला ऋषि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की पुत्री थीं और ऋषि कण्व के आश्रम में रहती थीं। दुष्यंत और शकुंतला की पहली ही मुलाकात में प्रेम हो गया और उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया। राजा दुष्यंत को अचानक राज्य के कार्यों के कारण महल लौटना पड़ा और उन्होंने शकुंतला को अपनी अंगूठी दी, यह कहते हुए कि वह वापस आकर उसे अपने साथ ले जाएंगे।

कुछ समय बाद, शकुंतला ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम भरत रखा गया। भरत बाल्यावस्था से ही अद्भुत शौर्य और साहस के धनी थे। वे वन्य जानवरों के बीच खेलते और अपनी वीरता से सभी को चकित करते। उनके बाल्यकाल की एक प्रसिद्ध कथा है, जिसमें वे शेर के साथ खेलते हुए देखे गए थे। यह देखकर सभी आश्चर्यचकित हो गए और उन्हें 'भरत' नाम दिया गया, जिसका अर्थ होता है 'पालक'।

वहीं दूसरी ओर, राजा दुष्यंत अपने महल में राज्य के कार्यों में व्यस्त हो गए और शकुंतला और भरत को भूल गए। शकुंतला ने बहुत इंतजार किया, लेकिन जब राजा दुष्यंत की कोई खबर नहीं आई, तो उन्होंने महल जाने का निर्णय लिया। यात्रा के दौरान, उन्होंने वह अंगूठी नदी में गिरा दी जो राजा ने उन्हें दी थी। जब वह राजा दुष्यंत के पास पहुँची, तो राजा ने उसे पहचाना नहीं, क्योंकि ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण वह उन्हें भूल गए थे। राजा ने शकुंतला को स्वीकार नहीं किया, जिससे वह बहुत दुखी हुईं। लेकिन बाद में, एक मछुआरे ने अंगूठी प्राप्त की और राजा के पास पहुंचाई। अंगूठी को देखकर राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने शकुंतला और भरत को स्वीकार कर लिया।

भरत को उनके पिता राजा दुष्यंत ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना। युवावस्था में ही उन्होंने अपने शौर्य और नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया। उन्होंने अनेक राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया और 'चक्रवर्ती सम्राट' की उपाधि धारण की। उनका शासन काल न्याय और धर्म के आधार पर था। वे अपने राज्य में प्रजा की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहते थे।

भरत की न्यायप्रियता के कारण उनका राज्य बहुत समृद्ध और शांतिपूर्ण था। उन्होंने अपने राज्य में कला, संस्कृति और शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने कई धार्मिक अनुष्ठान और यज्ञ किए, जिनसे राज्य में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ। भरत का जीवन आदर्श और प्रेरणादायक था।

भरत के शासनकाल में उनका एक महत्वपूर्ण निर्णय था कि उन्होंने अपने उत्तराधिकारियों के चयन में अपने पुत्रों के योग्य न होने पर उन्हें उत्तराधिकारी नहीं बनाया। उन्होंने योग्य और न्यायप्रिय पुत्रों को गोद लिया और राज्य का कार्यभार सौंपा। इस निर्णय से उन्होंने यह संदेश दिया कि राजा का चयन योग्यता के आधार पर होना चाहिए, न कि केवल रक्त संबंधों के आधार पर।

भरत की मृत्यु के बाद, उनके वंशजों ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया। उनका नाम भारतीय इतिहास में अमर हो गया और उनके नाम पर ही इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। भरत की कहानी एक वीर, न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ राजा की कहानी है, जो न केवल अपने समय के लिए आदर्श थे, बल्कि आज भी उनकी शिक्षाओं और आदर्शों का पालन किया जाता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा नेतृत्व केवल शक्ति में नहीं, बल्कि न्याय, धर्म और प्रजा के कल्याण में निहित होता है।


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