बगुला

बगुला

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एक बार एक बगुला था। वह रोज प्रातः उठते ही एक बार जाट की ज्वार में घुस जाता और देर शाम तक ज्वार खाता। यह देखकर बगुलन उसे मना भी करती और कहती कि जाट की ज्वार मत खाया करों। कहीं जाट ने तुमको देख लिया तो शामत आ जाएगी। जाट तुम्हें बख्शेगा नहीं। ईधर जाट ने भी देखा कि कोई जीव उसकी ज्वार को नुकसान पहुंचा रहा हैं।

एक दिन जाट ने देखा कि उसकी ज्वार को एक बगुला खाता हैं। उसने निश्चय किया कि वह उस बगुले को अवश्य पकड़ेगा। परन्तु वह बगुला बहुत चालाक था। हमेशा जाट से दो कदम आगे ही चलता एक दिन जाट ने कुछ गुड़ मंगवाया और पानी में घोलकर सारी ज्वार पर छिड़काव कर दिया। सुबह जब बगुला ज्वार खाने ज्वार में घुसा तो वह ज्वार के पेड़ों से चिपक गया और लगा कांव-कांय करने। इतने में ही बगुलन वहां आई ओर कहने लगी कि मैं अरजुं थी, मैं बरजुं थी। तु जाट की ज्वार मत खा बगुला। बगुला यह सुनकर बोला मैं जीऊं सूं, मैं जांगू सूं। तु बच्चा धोरे जा हे बगुलन।

जाट जब खेत में गया तो उसने ज्वार के पेड़ो से चिपके हुए बगुले को देखा तो उसे वहां से छुड़ाकर घर ले आया। घर लाकर उसको काट-छांट कर हांड़ी में चढ़ा दिया। तभी वहां बगुलन आई और कहने लगी। मैं अरजुं थी, मैं बरजुं थी। तु जाट की ज्वार मत खा रे बगुला। यह आवाज सुनकर बगुला हांड़ी के अन्दर से कहने लगा - मैं जीऊं सूं, मैं जांगू सूं। तु बच्चा धोरे जा हे बगुलन। जाट ने जब हांड़ी से यह आवाज सूनी तो उसने झट हांड़ी को नीचे उतारा और लगा उसे खाने पूरा का पूरा बगुला खा लेने पर जाट ने सांस लिया।

कुछ देर बाद फिर बगुलन आई और कहने लगी कि - मैं अरजुं थी, मैं बरजुं थी। तु जाट की ज्वार मत खा रे बगुला। अब बगुला जाट के पेट मैं बोलने लगा कि - मैं जीऊं सूं, मैं जांगू सूं। तु बच्चा धोरे जा हे बगुलन। जाट ने सोची हक यो तो तेरे पेट में भी बोले से। जाट ने तीन-चार तगड़े जवान इकट्ठे करे और बोला - कि मैं अब शौच के लिए चलता हूँ, तुम सभी लट्ठ ले लो। वहां पर एक बगुला निकलेगा। तुम निशाना न चुक जाना तुमने उस बगुले को मारना हैं। सभी जाट के पीछे-पीछे चलने लगे। जाट शौच के लिए बैठ गया। सभी युवक उसके ईर्द-गिर्द लट्ठ लिए चौकन्ने खड़े थे। जैसे ही वह फुर्र से उड़ गया। सभी युवक अपने-अपने लट्ठ दे मारे जाट को। अब तो बेचारे जाट का बुरा हाल था। सभी मिलकर जाट को उठाकर घर ले गए।


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