Ratna Pandey

Inspirational

4.8  

Ratna Pandey

Inspirational

बेटा यही सही है

बेटा यही सही है

6 mins
696


स्वाति के विवाह को दो वर्ष भी पूरे नहीं हुए थे कि दुर्भाग्य, सौभाग्य की हत्या कर उसके जीवन में हमेशा के लिए प्रवेश कर गया। जितना दुःख पूनम और अजय को अपने बेटे को खोने का था, उतना ही दुःख उन्हें स्वाति के विधवा होने तथा एक वर्ष के नन्हे मयंक के सर से पिता का साया उठने का भी था। स्वाति के भविष्य के लिए उनके मन में हज़ारों चिंतायें जन्म ले चुकी थीं। दोनों पति-पत्नी स्वाति से अपनी बेटी की तरह ही प्यार करते थे। स्वाति भी इस परिवार में बेहद ख़ुश थी लेकिन पति के जाते ही असुरक्षा और पराये पन की भावना उसके मस्तिष्क पर हावी होती जा रही थी।

इस डर और असुरक्षा की भावनाओं के चक्रव्यूह में फंसी स्वाति अब अपने मायके चली जाना चाहती थी। वह अपना आगे का जीवन वहाँ रहकर बिताना चाहती थी, किंतु यह बात कहने में उसे संकोच हो रहा था। ऐसे दुःख के समय वृद्ध सास-ससुर को छोड़कर जाना उसे स्वयं भी उचित नहीं लग रहा था। उसके मन में पल रहा असुरक्षा का डर उसके कर्त्तव्य पथ पर बाधा बनकर खड़ा हुआ था। विषम परिस्थितियों में अपना फर्ज़ पूरा करना बहुत ही चुनौती भरा क़दम होता है।

कर्त्तव्य और डर की दो कश्तियों पर सवार स्वाति डर के वशीभूत होकर कर्त्तव्य की कश्ती को डुबा चुकी थी। अब उसके मन में केवल और केवल अपने मायके जाने की ही धुन सवार थी।

आखिरकार एक दिन हिम्मत करके स्वाति ने अपनी सास पूनम से कहा, "माँ मुझे कुछ दिनों के लिए अपने मायके जाना है, दो-तीन माह रहकर वापस आ जाऊंगी।"

पूनम ने कहा, "हाँ जाओ स्वाति तुम्हें भी इस समय जाने से कुछ चेंज मिल जाएगा।"

मन ही मन पूनम सोच रही थी कि मायके जाएगी तो थोड़ा मन लग जाएगा। इस दुःख की घड़ी में माता पिता और भाई भाभी का साथ स्वाति को संभलने में अवश्य ही मददगार सिद्ध होगा। पूनम नहीं जानती थी कि स्वाति के मन में क्या चल रहा है।

अपने मायके आकर अब स्वाति इत्मीनान में थी कि दुःखों के साथ ही सही, कम से कम माँ के घर वह सुरक्षित रह सकेगी। माता-पिता और भाई-भाभी ने भी इस दुःख की घड़ी में स्वाति का बहुत ख़्याल रखा। समय अपनी गति से आगे बढ़ता जा रहा था। 

धीरे-धीरे घर में सभी को जब यह लगने लगा कि स्वाति तो हमेशा के लिए ही आ गई है तभी से सब के व्यवहार में बदलाव आने लगा। अब तक स्वाति को आए हुए तीन महीने बीत चुके थे और वह वापस जाने का नाम ले ही नहीं रही थी।

पूनम अक्सर ही स्वाति को फ़ोन कर उसके हाल चाल पूछती रहती थी। पूनम और अजय को अकेलापन खाये जा रहा था। वह तो स्वाति को शुरू से ही बहुत प्यार करते थे और अपने बेटे राहुल के जाने के बाद उनका यह प्यार और अधिक बढ़ गया। अपने पोते मयंक में उन्हें अपने बेटे राहुल की छवि नज़र आती थी, नन्हे मयंक की वज़ह से घर में उनका मन लग जाता था।

एक दिन उदास मन से पूनम ने फ़ोन पर पूछा, "स्वाति बेटा वापस कब आओगी?"

स्वाति ने बात को टालते हुए कहा, "माँ बस कुछ दिन और रह लूं, फिर आ जाऊंगी।"

"जल्दी आ जाओ बेटा तुम्हारे और मयंक के बिना घर सूना हो गया है, बिल्कुल मन नहीं लगता तुम्हारी बहुत याद आती है।"

पिछले कुछ दिनों से स्वाति महसूस कर रही थी कि घर में सब लोग अकेले में कुछ बातें करते हैं किंतु उसके आते ही वह सब चुप हो जाते हैं।

एक दिन स्वाति को उनकी बातें सुनाई दे गईं। स्वाति की माँ कह रही थी, "कोई दो चार महीने की बात तो है नहीं, आगे चलकर जीवन में बहुत-सी कठिनाइयाँ आएंगी। हमारा जीवन तो आज है कल नहीं, भाई-भाभी के साथ पूरा जीवन बिताना आसान नहीं। घर में छोटी-छोटी-सी बातों से बड़ी-बड़ी बातें जन्म ले लेती हैं और रिश्ते खराब होते हैं। हम सभी स्वाति को बहुत प्यार करते हैं किंतु इस समय सही निर्णय लेना बहुत ज़रूरी है। मैं सोचती हूँ कि हमें स्वाति को समझा कर उसे ससुराल वापस भेज देना चाहिए क्योंकि वही उसका असली घर है।" 

तभी बीच में भाई ने कहा, "एक और जवाबदारी का बोझ, मैं नहीं उठा सकता।"

स्वाति की भाभी ने कहा, "हाँ हमारे भी दो-दो बच्चे हैं और स्वाति का बेटा मयंक। बच्चों की लड़ाई झगड़े से भी मनमुटाव होते हैं। कभी-कभी आने से प्यार बना रहता है। हमेशा साथ रहना, ना बाबा मुझे तो यह ठीक नहीं लग रहा। वैसे भी स्वाति के सास ससुर तो कितने अच्छे हैं, कितनी बार उनका फ़ोन आता है कि स्वाति तुम कब वापस आओगी।"

स्वाति की भाभी की बात ख़त्म होते ही उसका भाई कहने लगा, "स्वाति अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ रही है माँ। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए, सास-ससुर के लिए भी तो उसका फ़र्ज बनता है ना। बूढ़े माँ बाप ने अपना बेटा खोया है, अब उनके पोते को भी उनसे अलग कर देना तो उन पर अत्याचार ही होगा।"

स्वाति के पिता ख़ामोश थे उनकी आँखों में अश्क भरे हुए थे, वह जानते थे उनकी पढ़ी-लिखी बेटी किसी पर बोझ नहीं बनेगी लेकिन वह भी बात की गंभीरता को समझते हुए ख़ामोश ही रहे। उनकी उदास आंखों में मजबूरी के अश्क साफ़ नज़र आ रहे थे।

सभी की बातें सुनकर स्वाति की आँखों से अपने आप ही आँसू बहने लगे और इन आँसुओं के साथ ही मायके में पूरी उम्र ख़ुशी से सुरक्षित रहने की उसकी भावनाएँ भी बह गईं। आज पहली बार उसने कड़वे किंतु सत्य को हक़ीक़त में अपने समक्ष महसूस किया। 

वह सोच रही थी कि किसी ने भी तो कुछ ग़लत नहीं कहा। सब ने सही बात ही कही, बुरा मानने या दुःखी होने की ज़रूरत ही नहीं है। भैया भी तो सही कह रहे थे, मैं अपने फ़र्ज से मुंह मोड़ रही हूँ और केवल अपने विषय में ही सोच रही हूँ। राहुल के माता-पिता को मैं अकेला कैसे छोड़ सकती हूँ? राहुल की आत्मा भी मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी। मैं ही ग़लत थी, मुझे अपनी ग़लती तुरंत ही सुधारना चाहिए।

सोचते हुए कमरे में जाकर स्वाति ने अपना सूटकेस तैयार कर लिया और पूनम को फ़ोन लगाकर बोला, "माँ, मैं आज ही वापस आ रही हूँ।"

पूनम और अजय के लिए यह वह ख़ुशी के लम्हे थे जो यदि उनके जीवन में नहीं आते तो शायद निराशा के काले बादलों का अंधकार उनके जीवन में कभी भी सूर्य की किरणों को आने ही नहीं देता।

स्वाति के घर वालों ने जब उसे सूटकेस तैयार करते देखा, तब उसके पिता ने उसके सर पर हाथ फिरा कर उसकी पेशानी का चुंबन लेकर कहा, "बेटा यही सही है, तुम्हारे इस निर्णय पर मुझे गर्व है।"

स्वाति ने अश्क भरी आँखों से पिता की तरफ़ देखा और इतना ही कह सकी, "पापा मैं बहुत बड़ी गलती कर रही थी।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational