बारिश
बारिश
मेरा और शारदा जी का उम्र का बहुत फासला था,
पर तकदीर शायद हम दोनों की एक जैसी थी।
वो एक विधवा थी, और मैं तलाकशुदा।
बो रिटायर शिक्षका, और मैं कार्यरत थी।
उनके बेटे और बहुओं ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया था,और मेरे पति और ससुराल बालों ने।
हम दोनों अक्सर शाम को बरामदे में बैठकर घण्टों बतियाते थे।शारदा जी एक अनुभवी महिला थी मैं उनसे बहुत कुछ सीखती थी ।
मैं उनसे बहुत सारे प्रश्न करती थी, मेरे प्रश्नों में जिज्ञासा रहती थी, और उनके उत्तर हमेशा सांत्वना और समाधान लिए होते थे।
उनका साथ मुझे बहुत अच्छा लगता था।
एक दिन शाम को शारदा जी बाहर नही दिखाई दी मैंने अंदर जाकर देखा, तो वो चारपाई पर लेटी हुई थी।
और एक हाथ पास ही स्टूल पर पड़े लिफाफे के ऊपर था। मैंने उन्हें उठाने की कोशिश की पर शायद बो भगवान के यहां जा चुकी थी,
उनके बेटे बहुओं को इत्तिला करने के लिए मैंने इधर उधर देखा कि शायद कहीं उनका नम्बर दिख जाए।
तो नजर उस लिफ़ाफ़े पर गयी। जिज्ञासा बस उसे खोलकर देखा तो उसमें लिखा था।
"कि मैं अपने अंतिम संस्कार का दायित्व तुम्हे सौंपती हूँ,
मेरी प्रॉपर्टी और मेरे घर पर सिर्फ तुम्हारा हक है, क्योंकि तुम ही मेरी वारिस हो"।
