बार्बी डॉल
बार्बी डॉल
टिम्सी के पास खिलौने तो बहुत सारे थे। चाभी से चलने वाला चूज़ा, विभिन्न प्रकार के चित्र दिखाने वाला नकली कैमरा, छोटे छोटे बर्तनों वाला किचन सेट, देसी गुड्डे एवं गुड़िया। नहीं थी तो बस एक बार्बी डॉल। जब भी टिम्सी माँ संग बाज़ार जाती तो उस विदेशी गुड़िया को देख उसका मन हिलोरें मारता। माँ से लाख मिन्नतें करती वह परंतु उन दिनों एक मध्यवर्गीय परिवार के लिए बार्बी डॉल खरीदना एक महँगा सौदा हुआ करता था। पैसे होते हुए भी बार्बी डॉल की कीमत सुन माँ के होश उड़ जाते। आखिर थी तो वो भी एक गुड़िया ही। ऊपर से पतले पतले हाथ पैर थे उसके। जल्दी टूटने का भी डर था। बस इसी डर से, विदेशी न सही देसी गुड़िया उसे थमा दी जाती, जो टिम्सी की ही तरह गोल-मटोल होती। फिर टिम्सी उस गुड़िया संग खेलने में रम जाती। एक बाल सुलभ मन की यही तो विशेषता होती है, वह अपना दुःख शीघ्र ही भूल जाता है परंतु उसकी इच्छाएं नहीं मरती। ठीक उसी तरह टिम्सी के मन में भी वह इच्छा आती-जाती रहती।
एक दिन तो उसे लगा उसकी यह इच्छा पूरी होने वाली थी, जब एक सहेली के घर पर उसे उस देवी-तुल्य गुड़िया के दर्शन हुए। चमचमाती शीशे की अलमारी में वह गुड़िया आसमान की परी प्रतीत हो रही थी। टिम्सी के आँखों में मानो चमक सी आ गयी परंतु शीघ्र ही वह चमक फीकी पड़ गयी, जब उसकी सहेली ने बताया की यह बार्बी डॉल तो सिर्फ अलमारी में सजाने के लिये थी। अगर उससे खेला तो मम्मी पिटाई करेगी। यह सुन टिम्सी का दिल तार-तार हो गया। मध्यवर्गीय परिवारों में यदि बार्बी डॉल ख़रीद भी ली जाती तो उसके साथ काफ़ी शर्तें व नियम भी लागू कर दिये जाते थे। इस तरह एक बार फ़िर बार्बी डॉल का सपना अधूरा रह गया।
जैसे जैसे टिम्सी बड़ी हुई, सपनों की दुनिया का हकीकत से सामना हुआ और बार्बी डॉल की छवि उसके मानस पटल से धूमिल हो गयी। पढ़ने में तो वह कुशाग्र थी ही, जल्द ही नौकरी भी लग गयी और कुछ दिनों में उसकी शादी भी तय हो गयी। अब शादी में सिर्फ एक हफ़्ता बचा था। मेहमानों ने भी आना शुरू कर दिया था। मेहमानों में टिम्सी के चचेरे भैया की एक छोटी सी बेटी भी थी, जिसका नाम था राधिका। राधिका का टिम्सी से बड़ा लगाव हो गया था। वह टिम्सी के साथ ही सोती, उसके साथ ही खाना खाती। राधिका की बाल-सुलभ क्रीड़ाएं देख टिम्सी भी विवाह पूर्व अपना बचपन दुबारा जी रही थी।
सभी लोग विवाह के कार्य में संलग्न थे। आँगन में बैठीं तारा बुआ और सुलोचना मौसी के बीच किसी रस्म अदायगी को लेकर बहस छिड़ी हुई थी। हलवाई शाम का नाश्ता परोस रहे थे और डायबिटीज के मरीज़ रमेश चाचा अपनी पत्नी से नज़र बचा कर मिठाइयां खाने में लगे थे। सबसे बड़े वाले भैया का बेटा हर्षित बाकी बच्चों का सरदार बना घूम रहा था। वहीं टिम्सी के कमरे से रह रहकर उसकी सहेलियों के ठहाकों की आवाज़ें आ रही थी। टिम्सी ट्रायल के तौर पर अपनी शादी का जोड़ा पहन सहेलियों से विचार विमर्श कर रही थी। नन्ही राधिका ये सब कौतुहलवश देख रही थी। हमेशा जीन्स टॉप पहनने वाली टिम्सी बुआ को आज नए अवतार में देख वह हतप्रभ थी। वह दौड़ कर टिम्सी के पास आयी और कहा, " बुआ आप तो बिलकुल मेरी बार्बी डॉल की तरह दिख रही हो।" ये कहकर उसने हाथ में पकड़ी हुई अपनी बार्बी की ओर इशारा किया। उस मनमोहक गुड़िया को देख आज फिर टिम्सी को अपना बचपन और उसकी एक अधूरी इच्छा याद आ गयी। एक फीकी सी मुस्कान उसके होंठों पर आयी और उसने राधिका के सर पर अपना हाथ फेर दिया। वहीं कमरे से गुज़र रही टिम्सी की माँ ने सब देख व सुन लिया।
पांच साल की टिम्सी के लाख जिद्द करने पर भी जो गुड़िया उसे नहीं दिलाई,आज उसी 25 वर्ष की टिम्सी की मौन उदासी को देख माँ का दिल दुख रहा था। माँ उस रात सो भी नहीं पायीं। रह-रहकर उन्हें अपनी मासूम गुड़िया का बालपन याद आ रहा था। जब टिम्सी सिर्फ डेढ़ वर्ष की थी, उसका छोटा भाई आ गया था। नन्ही टिम्सी बचपन में ही बड़ी हो गयी थी। जब छोटा भाई माँ की गोद में होता तो वो माँ की उँगली पकड़ पैदल ही चल पड़ती। महज तीन वर्ष की उम्र में खुद ही जूतों के लैस बाँध लेती और स्कूल के लिए भी खुद ही तैयार हो जाती। अपने छोटे भाई पर तो जान छिड़कती थी वह।
मजाल थी किसी की जो राकेश को कोई परेशान कर सके। अपने भाई की आँखों में आँसू देख न उम्र देखती सामने वाले की ना कद-काठी, सीधा भिड़ जाती उससे। "इतनी प्यारी और सयानी है मेरी टिम्सी।" यह सोचते हुए माँ की आँखें नम हो गयीं थीं। आज परत दर परत टिम्सी का बचपन माँ के आँखों के सामने मानों किसी चलचित्र की भाँति चल रहा था। न जाने कब उनकी आँख लगी और सुबह चिड़ियों की चहचहाहट पर खुली। आज शादी का दिन था। रीति-रिवाज पूरा करते करते शाम हो गयी और बरात आने का समय हो गया। सभी वर पक्ष के आगमन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। टिम्सी दुल्हन बनी अपने कमरे में बैठी थी। तभी माँ कमरे में आयी। अपनी बेटी को दुल्हन बना देख जहाँ एक ओर ख़ुशी थी वहीं दूसरी और उसके विदा होने का गम भी था। उन्होंने टिम्सी को गले से लगाया और यह क्या, उनके हाथ में एक बार्बी डॉल थी। वह बार्बी टिम्सी को बचपन में ना सही परंतु आज विदाई की घड़ी में एक सौगात की तरह मिली। टिम्सी की आँखों से मानो अश्रुधारा की कोंपलें फूट पड़ीं। माँ भी उसे गले से लगाकर रोये जा रहीं थीं। आज घर से एक नहीं दो गुड़ियाँ विदा ले रही थी "टिम्सी और उसकी बार्बी डॉल।"